आज, 25 जनवरी को भारत राष्ट्रीय पर्यटन दिवस मना रहा है, और इस अवसर पर आज हम उन लिबरल गैंग को करारा जवाब देंगे जो कहते थे कि मंदिरों और धार्मिक स्थलों पर सरकारी खर्च राजस्व की बर्बादी है। उनका मानना था कि मंदिर रोजगार नहीं देंगे और सांस्कृतिक धरोहरों पर खर्च से भारतीय अर्थव्यवस्था को कोई लाभ नहीं होगा लेकिन आज हमारे द्वारा रखे गए आकड़ों की सच्चाई उनके इस कुंठित विचारधारा पर एक कड़ा प्रहार साबित होगी।
एक तरफ जहां लोक पर्व के सबसे बड़े समागम में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या 10 करोड़ को पार कर चुकी है वहीं इसके साथ ही देश के अन्य धार्मिक स्थलों पर बढ़ते श्रद्धालुओं की भीड़ ने न केवल पर्यटन को उछाल दिया है बल्कि सरकारी राजस्व में बड़ा योगदान दिया है।
2023 में भारत ने 18.89 मिलियन अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों का रिकॉर्ड दर्ज किया। वहीं, मई 2024 में प्रकाशित ‘एशिया पैसिफिक डेस्टिनेशन फोरकास्ट्स 2022-2024: इंडिया रिपोर्ट’ के अनुसार, 2024 में भारत 1.33 करोड़ अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों का स्वागत करने की उम्मीद कर रहा है। 2023 में पर्यटन से 28.07 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा आय हुई, और 2028 तक भारत का पर्यटन और आतिथ्य उद्योग 50,000 करोड़ रुपये से अधिक का राजस्व उत्पन्न करने की ओर अग्रसर है।
60% से अधिक पर्यटन धार्मिक और आध्यात्मिक स्थलों से जुड़ा
भारत में तीर्थयात्राएं हमेशा से ही लाखों लोगों की आस्था का केंद्र रही हैं और साथ ही देश की अर्थव्यवस्था में भी इनका बड़ा योगदान रहा है। कई छोटे-बड़े शहर और गांव तो पूरी तरह से मंदिरों में आने वाले श्रद्धालुओं पर निर्भर करते हैं। हालांकि, इतिहास में विदेशी आक्रमणों और बाद में सरकारी उपेक्षाओं ने इस मंदिर-आधारित अर्थव्यवस्था को झटका दिया, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में इसमें फिर से जबरदस्त सुधार हुआ है।
2022 में राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत का मंदिर अर्थतंत्र आज देश की अर्थव्यवस्था में 3.02 लाख करोड़ रुपये का योगदान कर रहा है। यह भारत के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का लगभग 2.32 प्रतिशत है। तीर्थयात्री हर दिन लगभग 1316 करोड़ रुपये खर्च कर रहे हैं, जो सालाना 4.74 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचता है।
मंदिरों की आर्थिक शक्ति को इसी से समझा जा सकता है कि 2022-23 में देश के केवल छह बड़े मंदिरों ने 24,000 करोड़ रुपये का चढ़ावा अर्जित किया। वहीं, 2019 में प्रयागराज में आयोजित कुंभ मेले ने लगभग 1.2 लाख करोड़ रुपये की आय उत्पन्न की। ये आंकड़े दिखाते हैं कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत केवल आस्था का ही नहीं, बल्कि आर्थिक समृद्धि का भी स्तंभ है।
पिछले कुछ सालों में मोदी सरकार के प्रयासों ने धार्मिक और आध्यात्मिक पर्यटन को नई ऊर्जा दी है। चारधाम परियोजना, जैन और बौद्ध तीर्थ सर्किट का विकास और मंदिरों के पुनरुद्धार ने श्रद्धालुओं और पर्यटकों की संख्या में बड़ी बढ़ोतरी की है। मई 2024 में जारी ‘एशिया पैसिफिक डेस्टिनेशन फोरकास्ट्स 2022-2024: इंडिया रिपोर्ट’ के मुताबिक, 2024 में भारत में 1.33 करोड़ अंतरराष्ट्रीय पर्यटकों के आने की उम्मीद है। 2023 में पर्यटन से 28.07 अरब डॉलर की विदेशी मुद्रा आय हुई थी, और 2028 तक यह राजस्व 50,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है।
भारत में लगभग 60% पर्यटन धार्मिक और आध्यात्मिक स्थलों से जुड़ा हुआ है। यह भारत को न केवल एक आध्यात्मिक केंद्र बना रहा है बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी इसकी पहचान को मजबूत कर रहा है। भारतीय मंदिरों और तीर्थ स्थलों की बढ़ती लोकप्रियता देश की सांस्कृतिक धरोहर को आर्थिक ताकत में बदलने का अद्भुत उदाहरण है।
यहां 2024 में सबसे अधिक देखे गए आध्यात्मिक स्थलों की सूची है, जिसमें उनके आगंतुक और राजस्व का विवरण दिया गया है
मंदिर का नाम | स्थान | आगंतुक (2024) | राजस्व (2024) |
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तिरुमला तिरुपति देवस्थानम | तिरुपति, आंध्र प्रदेश | 2.55 करोड़ | ₹1,365 करोड़ |
मथुरा-वृंदावन | उत्तर प्रदेश | 6.8 करोड़ | उल्लेख नहीं |
कोणार्क सूर्य मंदिर | भुवनेश्वर, ओडिशा | 24 लाख | ₹1.48 करोड़ (दिसंबर 2024) |
माता वैष्णो देवी मंदिर | जम्मू और कश्मीर | 94.83 लाख | उल्लेख नहीं |
राम मंदिर, अयोध्या | उत्तर प्रदेश | 13.55 करोड़ (जनवरी-सितंबर 2024) | ₹20,000–25,000 करोड़ (अनुमानित) |
चार धाम यात्रा | उत्तराखंड | 54.2 लाख (सर्वकालिक उच्च) | उल्लेख नहीं |
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग | उज्जैन, मध्य प्रदेश | 5.28 करोड़ | उल्लेख नहीं |
संगम नगरी (प्रयागराज) | उत्तर प्रदेश | 4.5 करोड़ (जनवरी-जून 2024) | ₹2 लाख करोड़ (महाकुंभ 2025 अनुमानित) |
वाराणसी | उत्तर प्रदेश | 4.59 करोड़ | उल्लेख नहीं |