कार्यकर्ता नहीं, सांसद-विधायक के पसंदीदा बनेंगे भाजपा जिलाध्‍यक्ष

यूपी में बीजेपी के 1819 मंडलों के सापेक्ष अब तक 1510 मंडलों के अध्‍यक्ष एवं प्रतिनिधि ही घोषित हो सके हैं

संभावना है कि इस बार 50 से 55 नये जिलाध्‍यक्ष बनाये जाएंगे तथा बाकी जिलों में पुराने जिलाध्‍यक्षों को ही जिम्‍मेदारी दी जायेगी

संभावना है कि इस बार 50 से 55 नये जिलाध्‍यक्ष बनाये जाएंगे तथा बाकी जिलों में पुराने जिलाध्‍यक्षों को ही जिम्‍मेदारी दी जायेगी

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में भाजपा का सांगठनिक चुनाव मजाक बनता जा रहा है। आधे-अधूरे मंडल अध्‍यक्षों की घोषणा के बाद अब जिलाध्‍यक्षों का चुनाव कराने में चुनाव अधिकारियों को मुश्किल हो रही है। विवाद के चलते शामली जिले में 10 जनवरी को जिलाध्‍यक्ष पद के लिए होने वाली नामांकन प्रक्रिया को निरस्‍त कर दिया गया है। ऐसे ही हालात भाजपा के सांगठनिक समस्‍त 98 जिलों में देखने को मिल रहे हैं, जिसके बाद चुनाव प्रक्रिया को बदल दिया गया है। अब जिलाध्‍यक्ष बनने के लिए कार्यकर्ताओं की पसंद नहीं, बल्कि जिले के सांसद एवं विधायक का प्रिय होना जरूरी शर्त बन गया है। भाजपा के दिग्‍गज नेताओं की जिलों में दिलचस्‍पी ने चुनाव अधिकारियों की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं।

इस बार, उत्तर प्रदेश भाजपा के सांगठनिक चुनाव में वह नेता भी जिलाध्‍यक्ष बन सकेगा, जिस के पास मंडल का एक भी प्रस्तावक नहीं होगा। जिलाध्‍यक्ष चयन में मंडल अध्‍यक्षों एवं प्रतिनिधियों के दस फीसदी प्रस्‍तावक की अनिवार्यता समाप्त कर दी गई है। अब तक जिलाध्‍यक्ष का नामांकन करने के लिए जिले के मंडल अध्‍यक्ष एवं प्रतिनिधि के दस फीसदी समर्थन की आवश्‍यकता अनिवार्य होती थी। भाजपा के सांगठनिक चुनाव के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है, जब बिना प्रस्‍तावक के भी दो बार का सक्रिय सदस्य जिलाध्‍यक्ष के लिए नामांकन कर सकेगा। वह जिले के सांसद और विधायक का जेबी हुआ तो जिलाध्‍यक्ष भी बन जाएगा।

दरअसल, जिलाध्‍यक्ष चुनाव में मंडल अध्‍यक्षों एवं प्रतिनिधियों को जिला पंचायत एवं ब्‍लॉक प्रमुख चुनाव की तर्ज पर प्रत्‍याशियों द्वारा प्रलोभन देने, अपने साथ दबाव डालकर ले जाने, लाइजनिंग करने जैसी शिकायतों के बाद नामांकन में दस फीसदी प्रस्‍तावक की अनिवार्यता समाप्‍त कर दी गई। भाजपा के सांगठनिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब कार्यकर्ताओं की पसंद के बजाय सांसद और विधायकों की पसंद को तवज्‍जो दी जा रही है। ऐसी स्थिति में जमीनी कार्यकर्ता परेशान हैं कि उन्‍हें सांसद और विधायकों की जी हुजूरी करनी पड़ेगी। कैडर बेस पार्टी होने के बावजूद ऐसा पहली बार हो रहा है कि पार्टी सांसद एवं विधायकों के पसंद पर समर्पित हो गई है।

विवाद एवं गुटबाजी के चलते भाजपा यूपी में अब तक अपने समूचे मंडल के अध्‍यक्ष नहीं घोषित कर सकी है। संगठन के 1819 मंडलों के सापेक्ष अब तक 1510 मंडलों के अध्‍यक्ष एवं प्रतिनिधि ही घोषित हो सके हैं। उत्तर प्रदेश में शामली समेत कई जिलों के 309 मंडल अध्‍यक्षों एवं प्रतिनिधियों की नियुक्ति विवाद एवं वर्चस्‍व की लड़ाई के चलते रूक गई है। शामली में भी प्रदेश अध्‍यक्ष भूपेंद्र चौधरी के करीबी वर्तमान अध्‍यक्ष तेजिंदर सिंह निर्वाल एवं पूर्व मंत्री सुरेश राणा के बीच वर्चस्‍व को देखते हुए चुनाव प्रक्रिया को आगे लिए टाल दिया गया है। दस फीसदी की अनिवार्यता समाप्‍त होने के बाद तमाम जिलों पर कई दर्जन लोग जिलाध्‍यक्ष पद के लिए नामांकन कर रहे हैं।

जिलाध्‍यक्ष पद के लिए 7 से 10 जनवरी के बीच में नामांकन किया जाना था, लेकिन विवाद के चलते कई जिलों में यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है। दूसरी तरफ दस फीसदी मंडल प्रतिनिधियों के समर्थन की अनिवार्यता समाप्‍त होने के बाद जिलाध्‍यक्ष पद के दावेदारों की बाढ़ आ गई है। सहारनपुर में 74, बलिया में 56, वाराणसी में जिलाध्‍यक्ष के लिए 90 एवं महानगर अध्‍यक्ष के लिए 78 लोगों ने नामांकन किया। औरैया में 49, इटावा में 64, एटा में 46 लोगों ने जिलाध्‍यक्ष पद के लिए पर्चा भरा। लगभग सभी जिलों में ऐसी ही स्थिति है। नये जिलाध्‍यक्षों के नेतृत्‍व में ही 2027 के विधानसभा चुनाव होंगे, लिहाजा जिले के विधायकों ने अपना जिलाध्‍यक्ष बनवाने की रणनीति तेज कर दी है

भाजपा ने पिछली बार संगठन के चुनाव में प्रदेश के 65 जिलाध्‍यक्षों को बदल कर बाकी जिलों में मौजूदा जिलाध्‍यक्षों को ही बरकरार रखा था। इस बार भी पहली बार जिलाध्‍यक्ष बने लोगों को पार्टी फिर से जिम्‍मेदारी दे सकती है, लेकिन जिन जिलाध्‍यक्षों का विरोध है या सांसद-विधायक की पसंद नहीं हैं, उन्‍हें बदला जा सकता है। 60 वर्ष से ज्‍यादा उम्र एवं दो बार जिलाध्‍यक्ष रह चुके लोगों को हटाया जाएगा। संभावना है कि इस बार 50 से 55 नये जिलाध्‍यक्ष बनाये जाएंगे तथा बाकी जिलों में पुराने जिलाध्‍यक्षों को ही जिम्‍मेदारी दी जायेगी। साथ ही एक पूर्व संगठन मंत्री के कृपा पात्र लोगों को भी संगठन से बाहर का रास्‍ता दिखाया जाएगा, जिनकी निष्‍ठा पार्टी से अ‍धिक व्‍यक्ति विशेष के प्रति है।

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