वक्फ (संशोधन) बिल पर चर्चा कर रही संयुक्त संसदीय समिति (JPC), जिसकी अध्यक्षता सांसद जगदंबिका पाल कर रहे हैं, 31 जनवरी 2025 को अपनी अंतिम रिपोर्ट बजट सत्र में पेश करेगी। लखनऊ में आयोजित समिति की अंतिम बैठक में शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड, यूपी के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री, कानूनी विशेषज्ञ और अन्य प्रतिनिधि शामिल हुए। लेकिन AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और सहारनपुर के कांग्रेस सांसद इमरान मसूद ने ‘वक्फ बाय यूजर’ क्लॉज को हटाने के प्रस्ताव पर कड़ा विरोध जताया है।
इस क्लॉज को वक्फ संपत्तियों के विवादित कब्जों को वैधता देने का जरिया माना जाता है। हिंदू संगठनों और भाजपा ने लंबे समय से इस क्लॉज को हटाने की मांग की है, यह आरोप लगाते हुए कि इसका दुरुपयोग कर सार्वजनिक और निजी संपत्तियों पर अधिकार जमाया जा रहा है। अब सवाल यह उठता है कि आखिर ‘वक्फ बाय यूजर’ क्लॉज इतना विवादास्पद क्यों है ?
क्या है ‘वक्फ बाय यूजर’?
‘वक्फ बाय यूजर’ एक ऐसा प्रावधान है जिसके तहत किसी संपत्ति को बिना औपचारिक घोषणा या दस्तावेजी प्रमाण के केवल उसके उपयोग के आधार पर वक्फ संपत्ति घोषित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी स्थान पर लंबे समय से मुस्लिम समुदाय द्वारा मजहबी गतिविधियाँ की जा रही हैं, तो उसे ‘वक्फ बाय यूजर’ के तहत वक्फ संपत्ति माना जा सकता है। यह प्रावधान विवादास्पद इसलिए है क्योंकि इसके माध्यम से बिना कानूनी दस्तावेजों के भी संपत्तियों पर दावा किया जा सकता है, जिससे संपत्ति मालिकों के अधिकारों का हनन होता है और कानूनी विवाद उत्पन्न होते हैं।
वक्फ और ‘वक्फ बाय यूजर’ में अंतर
वक्फ: वक्फ का अर्थ है किसी मुस्लिम व्यक्ति द्वारा अपनी चल या अचल संपत्ति को धार्मिक या परोपकारी उद्देश्यों के लिए अल्लाह के नाम समर्पित करना। यह समर्पण स्थायी होता है और संपत्ति से होने वाली आय समाज के कल्याण में लगाई जाती है। वक्फ की स्थापना के लिए औपचारिक घोषणा और कानूनी दस्तावेज आवश्यक होते हैं।
‘वक्फ बाय यूजर’: इसके विपरीत, ‘वक्फ बाय यूजर’ में किसी संपत्ति को केवल उसके उपयोग के आधार पर वक्फ संपत्ति माना जाता है, भले ही उसके लिए कोई औपचारिक घोषणा या कानूनी दस्तावेज मौजूद न हों। यह प्रावधान संपत्ति मालिकों के अधिकारों के दुरुपयोग और विवादों का कारण बन सकता है।
विवाद का कारण
‘वक्फ बाय यूजर’ प्रावधान के कारण कई बार धार्मिक, सार्वजनिक, या निजी संपत्तियों पर बिना उचित कानूनी प्रक्रिया के वक्फ बोर्ड द्वारा दावा किया जाता है, जिससे संपत्ति मालिकों के अधिकारों का उल्लंघन होता है। इस प्रावधान के दुरुपयोग की संभावनाओं के चलते इसे हटाने की मांग की जा रही है। हालांकि, कुछ राजनीतिक नेता, जैसे असदुद्दीन ओवैसी और इमरान मसूद, इस प्रावधान को हटाने का विरोध कर रहे हैं, जो उनके राजनीतिक स्वार्थों और तुष्टिकरण की नीति को दर्शाता है।
उत्तर प्रदेश में 78% वक्फ संपत्तियां सरकारी जमीन पर स्थित
वक्फ (संशोधन) विधेयक पर संयुक्त संसदीय समिति (JPC) ने मंगलवार (21 जनवरी 2025) को लखनऊ में अपने क्षेत्रीय दौरे की अंतिम बैठक आयोजित की। इस बैठक की अध्यक्षता JPC प्रमुख और भाजपा सांसद जगदंबिका पाल ने की, जिसमें शिया और सुन्नी वक्फ बोर्ड के सदस्य, अल्पसंख्यक आयोग के प्रतिनिधि और अन्य संबंधित पक्ष शामिल हुए।
रिपोर्ट के मुताबिक, योगी सरकार के अल्पसंख्यक कल्याण आयोग की अतिरिक्त मुख्य सचिव, मोनिका गर्ग ने JPC को बताया कि वक्फ बोर्ड का दावा है कि राज्य में उसके पास कुल 14,000 हेक्टेयर भूमि है। हालांकि, आधिकारिक रिकॉर्ड के अनुसार, इनमें से 11,700 हेक्टेयर भूमि सरकारी है। मोनिका गर्ग ने यह भी बताया कि सच्चर कमिटी की रिपोर्ट में यह स्पष्ट किया गया था कि वक्फ बोर्ड जिन 60 संपत्तियों पर दावा कर रहा है, वे सभी सरकारी संपत्तियां हैं।