नई दिल्ली। कांग्रेस भले ही धुरविरोधी पार्टी हो लेकिन भाजपा दिल्ली में इस बार उसे मजबूत होते देखना चाहती है। क्योंकि दिल्ली में कांग्रेस की मजबूती में ही बीजेपी की मजबूती छिपी है। भाजपा की कोशिश है कि इस बार दिल्ली में आमने-सामने की लड़ाई की जगह त्रिकोणीय लड़ाई हो, जिससे उसके लिए कुछ संभावनाएं बन सकें।
दिल्ली में 2013 जैसा प्रदर्शन दोहरा पाएगी कांग्रेस?
भाजपा नेताओं के मुताबिक, अगर कांग्रेस 2013 की तरह 20%से ज़्यादा वोट पाने में सफल रही तो फिर आम आदमी पार्टी को सत्ता से हटाया जा सकता है। लेकिन कांग्रेस इतनी मजबूती से लड़ पाएगी, इस पर संशय भी है। कांग्रेस की मशीनरी इन चुनावों में उस तरह एक्टिव नहीं दिख रही है। यहां तक कि कांग्रेस चुनाव से पहले उम्मीद लगाए बैठी थी कि आम आदमी पार्टी के साथ उसका गठबंधन हो जाए तो उसे कुछ सीटें मिल सकती हैं। ‘आप‘ ने जब इसके लिए मना किया तो कांग्रेस को शुरू से अपनी रणनीति बनाने पर मजबूर होना पड़ा है।
लगातार बढ़ा है भाजपा का वोट, कांग्रेस का वोट AAP में शिफ्ट हुआ
आंकडों पर गौर करें तो दिल्ली में बीजेपी का वोट लगातार बढ़ा है लेकिन कांग्रेस का वोट आम आदमी पार्टी में चले जाने से की वजह से अंतर इतना बढ़ गया कि पार्टी सीटों के मामले में काफी पीछे छूट गई। 2013 में जब सत्ताधारी कांग्रेस 8 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर रही थी, तब भी उसे 24.6 प्रतिशत वोट मिले थे। कांग्रेस के 20% से ज़्यादा वोट पाने के कारण भाजपा 33 % वोट शेयर के साथ 32 सीटें लेकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी और 29.5 % वोट के साथ नई-नवेली आम आदमी पार्टी 28 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर रही थी।
उस समय मायावती की BSP को भी 5% से अधिक वोट मिला था लेकिन 2015 के चुनाव में कांग्रेस और BSP का वोट भी आम आदमी पार्टी में शिफ्ट होता दिखा, जिसकी वजह से इस चुनाव में आम आदमी पार्टी 50% वोट के आंकड़े को पार करने में सफल रही। उस चुनाव में AAP ने 54.3% वोट हासिल कर 70 में 67 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया। भाजपा का वोट बैंक पिछले चुनाव के आसपास ही यानी 32.3% रहा, जबकि कांग्रेस का 14% से भी ज़्यादा वोट कम होकर 9.7% तक सिकुड़ गया।
वहीं, 2020 के विधानसभा चुनाव में पिछली बार के मुकाबले भाजपा 6.21 % वोट बढ़ाने में सफल हुई, लेकिन बुरी हार का सिलसिला जारी रहा। भाजपा इसलिए हार गई थी, क्योंकि कांग्रेस का वोट फिर आम आदमी पार्टी में शिफ्ट हो गया था। कांग्रेस के मतदाताओं को लगा कि दिल्ली में उनकी पार्टी कमजोर हो चुकी है तो आम आदमी पार्टी ही भाजपा को हरा सकती है। यही वजह है कि कांग्रेस का वोट शेयर 2015 से भी 5.44% गिरकर 4.26% हो गया। जबकि आम आदमी पार्टी के पास पिछली बार की ही तरह 53.57 % वोट बरकरार रहा।