दिल्ली के चुनाव जैसे-जैसे नज़दीक आ रहे हैं, सियासत के अजब रंग भी सामने आ रहे हैं। दिल्ली में जब पहली बार आम आदमी पार्टी (AAP) की सरकार बनी तो राजनीति के जानकार अचरज में रह गए थे। पार्टी दोबारा जीती और केजरीवाल दूसरी बार मुख्यमंत्री बने, तो जनता को लगा जैसे भारतीय राजनीति में एक नया विकल्प उभर रहा है। लेकिन तीसरी बार मुख्यमंत्री बनते-बनते अरविंद केजरीवाल के ऊपर ‘रंगे सियार’ वाली कहावत सही सिद्ध होती नज़र आने लगी है। कांग्रेस की भ्रष्ट सरकार के खिलाफ अन्ना हजारे की मुहिम से पनपा ये ‘बीज’, कांग्रेस की ‘फसल’ INDI गठबंधन का हिस्सा बन गया।
केजरीवाल ने एक के बाद एक ग़लत राजनीतिक कदम उठाए, जिसका नतीजा ये रहा कि अब उनके और उनकी पार्टी के लिए 2025 के चुनाव की राह आसान नहीं है। जीत हासिल करने के लिए चुनावी दंभ भरते अरविंद केजरीवाल किसी भी पक्ष को नाराज़ करने का खामियाजा नहीं उठा सकते। इसीलिए नई-नई योजनाओं की घोषणा का सहारा ले रहे हैं। इस लेख में ‘AAP’ के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल की ऐसी ही एक चाल से पर्दा उठाने का प्रयास किया गया है।
वर्ष था 2013, दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बस बनी ही थी कि नए नवेले मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रदेश की मस्जिदों में मौजूद इमामों/ मौलवियों को 18,000 रुपए प्रति माह वेतन देने का ऐलान कर दिया। उसके बाद से अब तक दिल्ली सरकार इस योजना के तहत 58 करोड़ 30 लाख रुपए से ज़्यादा राशि मौलवियों को दे चुकी है। 2013 से अब तक ‘AAP’ की सरकार बनाने के लिए केजरीवाल की सियासी गुणा-गणित में दिल्ली की गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली जनता और मुस्लिम वोटर ही थे । ‘AAP’ ने इन्हीं वोटर्स को लुभाने पर पूरी तरफ़ फ़ोकस भी किया। ‘मुफ्त’ वाली योजनाओं और इमामों को वेतन जैसी योजनाओं के ज़रिए वो इस वर्ग का वोट जुटाने में कामयाब भी रही।
जब से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई है, इसमें कोई संदेह नहीं कि पूरे देश में सनातन धर्म के प्रति श्रद्धा, समर्पण और सम्मान तो बढ़ा ही है, भारतीय सांस्कृतिक धरोहरों, और भारतीय परंपराओं के प्रति भी जनता का रुझान बढ़ा है। हिंदू जनजागरण के इस नए काल में सनातन के प्रति बढ़ती आस्था को केजरीवाल भी अच्छी तरह महसूस कर रहे हैं। इसीलिए अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा के बाद उनका राम मंदिर जाकर दर्शन करना, दिल्ली के प्राचीन हनुमान मंदिर जाकर हनुमान चालीसा का पाठ करना लोगों को एक राजनीतिक स्टंट ही लगा। ये कदम दिल्ली में बसने वाले हिंदू वोटरों को टारगेट करने के लिए था परंतु उसका विशेष प्रभाव नहीं दिखा।
अब जब 2025 के विधानसभा चुनाव में साफ- साफ दिख रहा है कि ‘AAP’ के लिए दिल्ली जीतना कोई ‘खाला जी का घर’ नहीं है और उन्हें यह भी आभास है कि केवल मुस्लिम पक्ष के साथ आने से वो दिल्ली में इस बार जीत हासिल नहीं कर सकते, ऐसे वो हिंदू वोटरों को लुभाने में भी जुट गए हैं। उन्हें उनकी नई योजना ‘पुजारी ग्रंथी सम्मान योजना’ भी इसी डर से ही उपजी है। केजरीवाल चुनाव से पहले इस योजना की घोषणा करते ही जनता और मीडिया के सवालों से घिर गए हैं। उन्होंने कैसे सोच लिया कि दिल्ली की जनता उनकी यह चाल नहीं समझेगी? इस बार केजरीवाल ने पुजारियों और गुरुद्वारे के ग्रंथियों को भी 18,000 रुपए प्रति माह देने की घोषणा कर दी, लेकिन दिल्ली की जनता उनसे सवाल कर बैठी कि आखिर उन्हें मंदिरों के पुजारी और गुरुद्वारे के ग्रंथियों की याद 11 साल के अंतराल के बाद क्यों आई?
इस पर भी केजरीवाल की मुसीबतें कम नहीं हुई बल्कि AIMIM, ऑल इंडिया इमाम संगठन के अध्यक्ष साजिद रशीदी ने अरविंद केजरीवाल के आवास के बाहर दिल्ली के 250 इमामों के साथ मिलकर धरना प्रदर्शन किया। उन्होंने इस राज से पर्दा उठाया कि ‘AAP’ सरकार बीते 17 महीनों से दिल्ली के इमामों को वेतन देने में नाकाम रही है। उन्होंने 17 महीनों के अपने बकाया वेतन की मांग उठाते हुए जोरदार प्रदर्शन किया और सरकार से ये प्रश्न पूछा कि जब केजरीवाल डेढ़ वर्ष से उनकी तनख़्वाह नहीं दे पा रहे हैं तो पुजारियों और ग्रंथियों के वेतन का पैसा कहां से लायेंगे?
AAP सरकार की इस चुनावी घोषणा से दिल्ली के पुजारी-ग्रंथी भी नाराज़ ही हैं, क्योंकि वो अच्छी तरह जानते हैं कि ये AAP सरकार की दूसरी मुफ्त योजनाओं की तरह ही झूठी साबित होने वाली है। हालांकि, इस तरह धार्मिक तुष्टिकरण कर उसका राजनीतिक लाभ लेने के लिए बुनी गई योजनाओं से अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी को कितना लाभ मिलेगा? ये तो वक्त ही बताएगा, लेकिन हम तो यही करेंगे कि ‘ये जनता है सब जानती है’।