कहते हैं किसी एक व्यक्ति का क्रांतिकारी, दूसरे व्यक्ति के लिए आतंकी भी हो सकता हैI ये जुमला जब सुनाया जाता है, तो ये नही जोड़ा जाता कि जो आज क्रांतिकारी है, वो कल को देशद्रोही भी कहला सकता है– इसे भी जोड़ लिया जाना चाहिएI अफगानिस्तान की भारत से दूरी शायद अधिक है, इसलिए वहाँ जब ऐसा होता दिख रहा था, तो भारतीय लोगों का उतना ध्यान नही गयाI कभी बामियान बुद्ध की मूर्तियों को तोपों से उड़ा देने वाले तालिबान ने जब फिर से सत्ता हथियाई तो टीवी पर समाचारों में, यही तो होता दिखा थाI जो अमेरिकी दखल के बाद स्त्री अधिकारों, शिक्षा, बच्चों के रक्षक के रूप में उभरे थे, वो अफगानिस्तान छोड़कर भागे और जो कभी दरिंदे बताये जाते थे वो राष्ट्र प्रमुखों के मकानों से लेकर म्यूजियम तक में नाचते दिखेI अब बांग्लादेश में भी बिलकुल उसी तरह इतिहास बदला जा रहा हैI
कभी बंग-बन्धु कहलाने वाले शेख मुजीबुर रहमान के ढाका के धानमोंडी स्थित मकान को राष्ट्रीय स्मारक और एक म्यूजियम बनाया गया थाI प्रोटोकॉल के तहत दूसरे राष्ट्राध्यक्ष जब बांग्लादेश जाते तो वहाँ भी जाया करते थेI बीते बुधवार को बांग्लादेश की पूर्व प्रमुख शेख हसीना रेडियो-इन्टरनेट के माध्यम से एक भाषण देने वाली थींI अपनी प्रतिबंधित कर दी गयी पार्टी की छात्र इकाई को वो संबोधित करने वाली थींI इसके विरोध में वहाँ की कट्टरपंथी-इस्लामिस्ट ताकतें अपनी भीड़ के साथ उतर आयींI इस भीड़ के मुख्य आयोजक कट्टरपंथी अब्दुल हन्नान मसूद ने ‘बुलडोजर एक्शन’ का आह्वान किया थाI पहले तो दीवारों पर तोड़ फोड़ कर ‘अब 32 नहीं रहेगा’ लिखा गया और बाद में 32 धानमोंडी, ढाका के पते वाली ईमारत को लूटकर जला डाला गयाI अब भीड़ जुटाने वाले कट्टरपंथी अब्दुल हन्नान मसूद नए क्रांतिकारी हैंI
किसी दौर में बंग-बन्धु कहलाने वाले मुजीबुर रहमान क्रांतिकारी थेI करीब साठ साल पहले, 1960 के दशक में उन्होंने पाकिस्तान से अलग होने के लिए आन्दोलन की शुरुआत की थी, जो 1969 तक जोर पकड़ चुका थाI तब इसी मकान पर उस दौर के क्रांतिकारियों की बैठकें होती थीI इस वजह से बांग्लादेश के निर्माण के इतिहास में इस मकान की भूमिका थीI बाद में नए बने बांग्लादेश की ही सेना के अधिकारियों ने 15 अगस्त 1975 को शेख मुजीबुर रहमान की तख्तापलट के दौरान हत्या कर दी थीI तब शेख हसीना जर्मनी में अपनी बहन के साथ थी, इसलिए उनकी हत्या नहीं हुईI अभी जो तख्तापलट हुआ है, उसके सरगनाओं में से एक अब्दुल हन्नान मसूद ने शेख हसीना की पार्टी के सभी पूर्व सांसदों के मकानों-घरों को गिरा देने की बात की हैI यानी इतिहास से पुराने नाम मिटाकर नए नाम लिखे जाने की कवायद बांग्लादेश में भी वैसे ही जारी है, जैसे अफगानिस्तान में हाल में दिखी थीI
पुराने इतिहास को मिटाकर, जनता को उसके मूल से, पूर्वजों से बिलकुल काटकर अलग करने की इस्लामिक नीति कोई नयी नहीं होती हैI इसके इतिहास को जितनी बार देखेंगे, उतनी बार एक ही पैटर्न दोहराया जाता हुआ दिख जायेगाI उदाहरण के लिए ईरान का 1979 का तख्तापलट देखेंगे तो उस समय भी यही दिख जायेगाI मार्च 30-31 को खोमीनी ने ईरान की जनता से सीधा हाँ या ना में जवाब देने कहा– क्या ईरान को इस्लामिक मुल्क होना चाहिए? करीब 99 प्रतिशत जनता ने हाँ में जवाब दिया और नतीजा? फौरन पुराना संविधान खारिज करके एक नया संविधान लिखे जाने की कवायद शुरू हो गयीI मुहम्मद रजा पहलवी के दौर वाले संविधान को जैसे गैर इस्लामिक करार दिया गया था, वैसे ही बांग्लादेश में भी हो रहा हैI पुराने 71 के दौर वाले संविधान को गैर-इस्लामिक ‘मुजीबी संविधान’ बताकर बदलने की बातें शुरू हो चुकी हैंI बांग्लादेश के पुराने राष्ट्रगान को भी बदलने की बात हैI
एक ईनामी पक्षकार जो कभी पूछा करते थे, “क्या होगा इस्लामिक मुल्क बन गया तो?” ये स्थितियां उनके प्रश्नों का जवाब हैंI सबसे पहले तो भारत अगर इस्लामिक मुल्क बन गया, तो यहाँ का संविधान बदल जायेगाI फिर जैसे लड़कियों के लिए शिक्षा, या नौकरी करना, अपनी पसंद के कपड़ों में बाहर निकलना आदि भारत में हो सकता है, वैसा नहीं रहेगा, क्योंकि शिक्षा प्रतिबंधित रहेगी और नकाब-हिजाब के बिना बाहर निकलने पर तो ईरान की तरह ‘मोरल पुलिस‘ या अभी के बांग्लादेश जैसे हालात झेलने पड़ेंगेI बल्कि जब शिक्षित ही नहीं होंगी तो भला बाहर निकलने और नौकरी करने, अपने पास स्वयं की संपत्ति होने जैसे सवाल कहाँ से पैदा होते हैं? सामाजिक आधार पर जो बदलाव होंगे उन्हें छोड़कर केवल इतिहास की बात करें तो पूर्वजों का नाम लेना संभव नही होगाI पुराने क्रांतिकारी याद नहीं किये जायेंगेI बांग्लादेश में चिटागोंग विद्रोह के क्रांतिकारियों को याद नही किया जाताI पाकिस्तान वाले हिस्से में भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा याद नहीं किये जाते हैंI
इतिहास की अपनी जड़ों से कटा हुआ समुदाय कितना गुलाम हो जाता है, इसका अनुमान लगाना भी कठिन है क्योंकि शारीरिक दासता में आप केवल बेड़ियों में जकड़े जा सकते हैंI मानसिक गुलामी आपकी सोच तक को प्रतिबंधित करती हैI आप क्या सोच सकते हैं, क्या नहीं, क्या पूछेंगे या पूछेंगे भी या नहीं, ये सब कोई और तय करे, क्या ऐसे मनुष्यों की आप कल्पना कर सकते हैं? भेड़ों की झुण्ड जैसा केवल गड़रिया जो कहे, जिधर हांके, उधर हांकने पर चल देने वालों को क्या मनुष्य कहा जाए? पड़ोसी देश में आप एक ऐसी ही पूरी जमात को बनते देख रहे हैंI
भारत के लिए ऐसे देशों का पड़ोस में उदय होता जाना एक बड़ी समस्या हैI पहले ही बांग्लादेशी घुसपैठ से भारत परेशान रहा है और लगातार अपराधों या आतंकी गतिविधियों में भी ऐसे लोगों की संलिप्तता पायी जा रही हैI भारत और बांग्लादेश के बीच लगभग 4096 किलोमीटर की साझा सीमाएं हैं जिसमें से करीब 865 किलोमीटर पर कोई बाड़ नहीं हैI इस सीमा में से लगभग 175 किलोमीटर का इलाका तो ऐसा है, जिसपर बाड़ लगाना संभव ही नहींI वर्षों से इस्लामिक आतंकवाद झेल रहा भारत क्या ऐसी स्थिति में है कि इसके बाद भी पड़ोस में ऐसा मुल्क पनपने दे? बीते वर्ष के 5 अगस्त से ही दोनों देशों के बीच तनाव भी बढ़ रहे हैंI इस वर्ष 12 जनवरी को भी सीमाओं पर बाड़ लगाने सम्बन्धी बात दूतावास स्तर के अधिकारियों में शुरू हुई थीI
बाकी इतिहास के होने का उद्देश्य ही यही होता है कि उससे सबक लेकर भविष्य में गलतियों को दोहराया न जाएI भारत 1971 में हुई अपनी गलतियों से या विश्व भर में हुई दूसरी घटनाओं से कितना सबक लेता है, इसपर भारत का भविष्य भी निर्भर हैI