भोपाल में भीख मांगने पर लगा प्रतिबंध; भारत में कितनी है भिखारियों की संख्या और भिक्षावृत्ति पर क्या कहता है कानून?

भोपाल के अधिकारियों का कहना है कि भिक्षावृत्ति में दूसरे राज्यों व शहरों के आपराधिक इतिहास वाले लोग शामिल हैं

भीख मांगते शख्स का प्रतीकात्मक चित्र

भीख मांगते शख्स का प्रतीकात्मक चित्र

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में भीख देने और भिक्षा लेने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। अधिकारियों ने कहा है कि अगर कोई ऐसा करता हुआ पकड़ा जाता है तो उस पर दंडात्मक और कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। भोपाल के ज़िलाधिकारी द्वारा जारी किए गए आदेश में कहा गया है कि ट्रैफिक सिग्नल पर भीख मांगने वाले कई भिखारी आपराधिक गतिविधियों और नशे की लत में लिप्त पाए गए हैं और उनकी मौजूदगी से हादसों का खतरा बढ़ रहा है। अधिकारियों का कहना है कि भिक्षावृत्ति में दूसरे राज्यों व शहरों के आपराधिक इतिहास वाले लोग शामिल हैं और अधिकांश भिखारी नशे जैसी गतिविधियों में लिप्त रहते हैं। इससे पहले इंदौर शहर में भी भिक्षावृत्ति पर इसी तरह के प्रतिबंध लगाए गए थे। दुनिया के कई देशों में भीख मांगने पर प्रतिबंध लगे हैं और इन आदेशों के बाद एक बार फिर भिक्षावृत्ति और भिखारियों की स्थिति को लेकर बहस तेज़ हो गई है।

भारत में कितने हैं भिखारी?

भारत में भिखारियों की गणना के ताज़ा आंकड़े मौजूद नहीं हैं। सरकार के पास मौजूद भिखारियों के आंकड़े भारत में हुई आखिरी जनगणना यानी 2011 की जनगणना से लिए गए हैं। केंद्र सरकार ने 2021 में राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में बताया था कि देश में 2011 की जनगणना के मुताबिक 4,13,670 भिखारी हैं इसमेें 2,21,673 पुरुष और 1,91,997 महिलाएं हैं। राज्यों की बात करें तो देश में सर्वाधिक 81,224 भिखारी पश्चिम बंगाल में हैं जिसके बाद उत्तर प्रदेश (65,835), आंध्र प्रदेश (30,218), बिहार (29,723), मध्य प्रदेश (28,695) और राजस्थान (25,853) का स्थान है। वहीं, राजधानी दिल्ली में 2,187 भिखारी हैं। हालांकि, इसमें इस तथ्य को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता है कि 13-14 वर्षों में इनकी संख्या बढ़ी होगी और बड़ी संख्या में ऐसे भी लोग होंगे जिनकी गणना तब भी नहीं हुई होगी।

संविधान सभा में भिक्षावृत्ति पर बहस

जब देश में संविधान के निर्माण को लेकर संविधान सभा में बहस चल रही थी तो उस दौरान भी भिक्षावृत्ति का मुद्दा चर्चा में आया था। 1 सितंबर 1949 को हुई बहस के दौरान एक सदस्य राज बहादुर ने ‘भिक्षावृत्ति के नियंत्रण और उन्मूलन’ को संघ सूची में शामिल करने की मांग की थी। राज बहादुर का तर्क था कि कुछ लोग केवल आलस्य के कारण भिखारी बन जाते हैं और ईमानदारी से काम करने के बजाय भीख मांगकर पेट भरते हैं और ऐसे लोग अंत में समाज पर बोझ बन जाते थे। राज बहादुर को जवाब देते हुए डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था कि भिक्षावृत्ति पहले ही ‘वाग्रेंसी’ के तहत समवर्ती सूची में आती है और इसे अलग से संघ सूची में जोड़ने की ज़रूरत नहीं है।

भिक्षावृत्ति पर क्या कहता है कानून?

दुनियाभर में भिक्षावृत्ति को रोकने के लिए चिंताएं लंबे समय से जारी हैं और भारत भी ऐसे देशों में शामिल है जो भिक्षावृत्ति को बंद करना चाहते हैं। भीख मांगने से रोकने के लिए मौजूदा समय में भारत के पास कोई केंद्रीय कानून नहीं है लेकिन 1959 का बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 20 से अधिक राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों में लागू है। इस कानून में भीख मांगने को अपराध घोषित किया गया है। इसमें ना केवल सड़कों पर भीख मांगना अपराध है बल्कि सार्वजनिक जगहों पर डांस, करतब, चित्रकारी करके लोगों से पैसे लिया जाना भी भीख की ही श्रेणी में आता है।

इस कानून में भीख मांगते हुए पकड़े जाने पर किसी शख्स को हिरासत में रखे जाने का अधिकार है और दूसरी बार पकड़े जाने पर उसी शख्स को 3 वर्षों तक हिरासत में रखने और तीसरी बार पकड़े जाने पर यह 10 वर्ष हिरासत में रखने का प्रावधान किया गया है। हालांकि, 2018 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने भिक्षावृत्ति को गैर-आपराधिक मानते हुए इससे संबंधित कानून के कई प्रावधानों को रद्द कर दिया था। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि कानून यह परिभाषित करने में अक्षम है कि भिक्षावृत्ति स्वैच्छिक है या अनैच्छिक है।

साथ ही, रेलवे एक्ट के तहत रेलवे स्टेशनों पर भीख मांगना अपराध है। जिसमें रेलवे स्टेशन पर भीख मांगने वाले लोगों को एक साल तक की कैद या 2,000 के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। वहीं, जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत बच्चों या किशोरों से भीख मंगवाना भी अपराध की श्रेणी में आता है। यदि भीख मंगवाने के मकसद से बच्चों को काम पर रखा जाए तो उसे भी अपराध माना जाता है। ऐसे मामलों में किसी शख्स को दोषी पाए जाने पर उसे तीन वर्ष तक की सज़ा का प्रावधान है और साथ ही उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।

भिक्षावृत्ति के पीछे क्या हैं प्रमुख वजह?

भारत में भिक्षावृत्ति को दो भागों में बांटा जा सकता है जिसमें एक तरफ वे लोग हैं जो आलस्य और काम ना करने की इच्छा के चलते भीख मांगते हैं। साथ ही, कुछ जनजातीय समुदाय अपनी आजीविका के लिए परंपरा के तौर पर भी भिक्षावृत्ति को अपनाते रहे हैं। वहीं, दूसरी और कुछ लोग भोजन और आवास जैसी आधारभूत सुविधाओं के अभाव में भीख मांगने के लिए मजबूर होते हैं। कई बार संगठित गिरोह भी लोगों से जबरन भीख मंगवाते हैं और लोगों को डरा-धमकाकर, नशीले ड्रग्स का लालच देकर और मानव तस्करी के द्वारा लाए गए लोगों को शारीरिक रूप से अपंग बनाकर भीख मांगने पर मजबूर करते हैं।

भारत में भिक्षावृत्ति से निपटने के लिए ज़रूरतमंदों को आवश्यकता की चीज़ें देना और पुनर्वास के प्रवास किए जाने चाहिए। वहीं, एक अपराध के तौर पर भिक्षावृत्ति करने वाले लोगों की रोकथाम के लिए भी केंद्रीय कानून बनाए जाने की ज़रूरत है। यह और जहां यह मामला संवेदना से जुड़ी हुआ है तो दूसरी और यह संगठित आपराधिक गिरोह और सड़क पर लोगों की सुरक्षा से जुड़ा मामला भी है।

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