केजरीवाल की शराब नीति से सरकार को हुआ ₹2000000000 का घाटा, CAG रिपोर्ट से हुए कई खुलासे

सरकार ही नहीं, लोगों की सेहत से भी केजरीवाल सरकार ने किया खिलवाड़

दिल्ली शराब CAG

CAG रिपोर्ट से हुए कई खुलासे

विधानसभा में भारी हंगामे के बीच दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने CAG रिपोर्ट पेश की है। इस रिपोर्ट से कई खुलासे हुए हैं। हालांकि सबसे बड़ा खुलासा केजरीवाल सरकार की शराब नीति को लेकर हुआ है। CAG ने रिपोर्ट में कहा है कि पिछली सरकार की शराब नीति के चलते सरकार को 2002 करोड़ रुपए के राजस्व का नुकसान हुआ था। CAG रिपोर्ट पेश किए जाने को लेकर AAP विधायकों ने विधानसभा में जमकर हंगामा किया। इसके चलते AAP के 12 विधायकों को पूरे दिन के लिए निलंबित कर दिया गया।

दिल्ली की सत्ता में एक दशक से अधिक समय तक रहने वाली अरविंद केजरीवाल सरकार ने  नई आबकारी नीति लागू की थी। इस शराब नीति में हुई कथित अनियमितताओं को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सीसोदिया समेत AAP के कई नेताओं को जेल जाना पड़ा था। हालांकि विवाद बढ़ने के बाद तत्कालीन AAP सरकार ने शराब नीति वापस लेने का फैसला किया था। अब इस शराब नीति को लेकर ही CAG रिपोर्ट सामने आई है।

दिल्ली की नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता द्वारा विधानसभा में पेश की गई CAG रिपोर्ट में 2017-18 से 2020-21 तक का जिक्र किया गया है। इसमें कहा गया है कि केजरीवाल सरकार की शराब नीति में गंभीर अनियमितताएं मिली हैं। शराब नीति के चलते AAP सरकार के समय सरकार को 2002 करोड़ रुपए से अधिक का नुकसान हुआ। इसके अलावा, सरेंडर किए गए लाइसेंसों के लिए दिल्ली सरकार फिर से टेंडर नहीं करवा सकी, इसके सरकार को करीब 890 करोड़ रुपए के राजस्व नुकसान हुआ। इतना ही नहीं, कार्रवाई में देरी के चलते जोनल लाइसेंस धारकों को छूट दी गई थी, इससे भी सरकार को 941 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।

इसके अलावा CAG रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि कोविड-19 महामारी के दौरान हुए लॉकडाउन को लेकर शराब बेचने वालों को लाइसेंस शुल्क के रूप में 144 करोड़ रुपए की छूट दी गई थी। यह नुकसान भी दिल्ली सरकार को हुआ। साथ ही सिक्योरिटी डिपॉजिट सही ढंग से से इकट्ठा नहीं करने के कारण सरकार को 27 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।

इतना ही नहीं, रिपोर्ट में सामने आया है कि शराब लाइसेंस के नियमों में हुए उल्लंघन के कारण भी सरकार को चपत लगी। दिल्ली एक्साइज नियम, 2010 के तहत नियम 35 को सही तरीके से लागू नहीं किया गया, जिससे न केवल सरकार को नुकसान हुआ बल्कि शराब व्यापार में अनियमितताएं भी सामने आईं। वास्तव में देखें तो दिल्ली एक्साइज नियम, 2010 के तहत नियम 35 एक से अधिक लाइसेंस जारी करने पर रोक लगाता है।

नियमों को ताक में रखकर शराब नीति बनाने के चलते कुछ खुदरा विक्रेताओं ने नीति की समाप्ति तक लाइसेंस बनाए रखा, वहीं कुछ ने जल्द ही लाइसेंस सरेंडर कर दिया था। चूंकि लाइसेंस सरेंडर करने से पहले अग्रिम सूचना देने का कोई प्रावधान नहीं था, ऐसे में शराब की आपूर्ति में भी असर देखने को मिला। इसके अलावा, मैन्युफैक्चरिंग और रिटेल में दिलचस्पी रखने वाले कारोबारियों को थोक विक्रेता वाले लाइसेंस दिए गए, जिससे शराब की पूरी सप्लाई चेन में कुछ खास कारोबारियों को ही फायदा हुआ। इतना ही नहीं, इसके चलते ही थोक विक्रेताओं का मार्जिन 5% से बढ़कर 12% हो गया था।

CAG रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि कई मामलों में टेस्टिंग रिपोर्ट भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) के निर्धारित मानकों को पूरा नहीं करती थीं। इसके बावजूद, आबकारी विभाग ने लाइसेंस जारी करने में कोताही बरती। कई ब्रांड्स ने पानी की शुद्धता, हानिकारक पदार्थों, भारी धातुओं, मिथाइल अल्कोहल और माइक्रोबायोलॉजिकल टेस्टिंग से संबंधित रिपोर्ट जमा ही नहीं की थी। इसके अलावा, विदेशी शराब से जुड़ी 51% परीक्षण रिपोर्ट या तो एक साल से अधिक पुरानी थीं, या उपलब्ध ही नहीं थीं, या फिर उनमें तारीख का जिक्र नहीं था।
166 पन्नों की इस रिपोर्ट में पेज 47 से 55 तक विस्तार से बताया गया है कि कैसे गुणवत्ता जांच और सार्टिफिकेट की अनदेखी करते हुए दिल्ली में शराब की बिक्री को मंजूरी दी गई। CAG की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि लाइसेंस जारी करते समय विभाग यह सुनिश्चित करने में नाकाम रहा कि शराब की जांच रिपोर्ट BIS के मानकों के अनुरूप हैं या नहीं।
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