पंजाब में पगड़ी वाले ईसाइयों की बढ़ती संख्या के बारे में आपने जरूर सुना होगा। पगड़ी वाले ईसाई अर्थात वे सिख जो अब ईसाइयत को मानने लगे हैं। लेकिन न तो उन्होंने पगड़ी त्यागी और ही सरकारी कागज में अपना धर्म बदलवाया। यही हाल छत्तीसगढ़ का है, जहां धर्मांतरण कराने वाले मुस्लिम हैं और धर्मांतरण का शिकार बने लोग जनजातीय। पूरा का पूरा गांव धर्मांतरित हो चुका है। लेकिन चुनाव लड़ने के लिए ये लोग अब भी जनजातीय ही हैं। वर्तमान सरपंच भी जनजातीय है लेकिन वह भी अब नमाजी हो चुका है।
छत्तीसगढ़ के जिस गांव की हम बात कर रहे हैं, उसे सूबे का आखिरी गांव भी कहा जाता है। जशपुर जिले के आखिरी छोर पर स्थित साईं टांगर टोली गांव में पंचायत चुनाव की तैयारियां जोरों पर हैं। ग्राम पंचायत जनजातीय वर्ग के लिए आरक्षित है और यह आरक्षण सिर्फ कहने के लिए है क्योंकि गांव तो मुस्लिम बाहुल्य हो चुका है। वर्तमान सरपंच-उपसरपंच सब मुस्लिम हैं। अगला सरपंच भी मुस्लिम ही होगा। यह पूरा खुलासा भास्कर की रिपोर्ट में हुआ है।
गांव के लोग खुद बताते हैं कि साल 1970 में इस ग्राम पंचायत में 32 घर जनजातीय वर्ग के थे। वहीं मुस्लिमों के 30 परिवार थे। लेकिन धीरे-धीरे सब धर्मांतरण के जाल में फंस गए और अब कोई भी जनजातीय नहीं बचा है।
इस गांव में कुल 1760 वोटर हैं। इसमें से 90 वोटर ही ईसाई हैं, बाकी मुस्लिम हैं। आखिरी जनजातीय परिवार प्रसन्नराम नामक व्यक्ति का था, लेकिन अब वह भी धर्मांतरित होकर बारिस अली बन चुका है और अब खुद को 5 वक्त का नमाजी बताता है। बीते 25 सालों में 15 साल उसके परिवार के लोग ही सरपंच रहे। फिलहाल प्रसन्नराम उर्फ बारिस का बेटा दुबराज गांव का सरपंच है।
लंबी दाड़ी रखे प्रसन्नराम कहता है, “मैं जाति से गौड़ जनजातीय हूं और पांच टाइम का नमाजी भी। हज नहीं जा पाया, लेकिन जब ऊपर वाला बुलाएगा तो जरूर जाऊंगा। मैं 50 साल पहले यहां आया था। मेरे 2 बेटे और 4 बेटियां हैं। बेटा जुमे की नमाज पढ़ता है। अभी वो सरपंच है, लेकिन मैं उसके कामों से खुश नहीं हूं। पंचायत इस बार महिला आरक्षित हो गई है इसलिए पत्नी जयमुनी बाई और बेटी शगुफ्ता को चुनाव लड़ा रहा हूं। कुल चार लोगों ने नामांकन किया है। अन्य प्रत्याशी जब्बार की दूसरी आदिवासी पत्नी सुमंती बाई और पहले सरपंच रह चुकी अहमद की पत्नी मार्सेला एक्का हैं।”
गांव के उपसरपंच नावेद का कहना है कि 1999 से पहले ये ग्राम पंचायत सामान्य थी। मतलब यह कि इस सीट से सभी वर्ग के लोग चुनाव लड़ सकते थे, फिर जनजातीय वर्ग के लिए आरक्षित हो गई। उस समय गांव में केवल प्रसन्नराम ही जनजातीय वर्ग से था। इसलिए वह सरपंच बन गया। साल 2004 में अहमद ने मार्शेल एक्का नामक जनजातीय लड़की से निकाह किया, फिर उसे चुनाव लड़ाया और वह जीत गई।
साल 2009 में प्रसन्नराम की पत्नी सरपंच बनी। साल 2013 में जब्बार ने जनजातीय महिला प्रवीण कुजूर को लड़ाया और वह सरपंच बन गईं। अब प्रसन्नराम का बेटा दुबराज सरपंच है। इस पंचायत में 6 मुस्लिम ऐसे हैं जिन्होंने जनजातीय लड़कियों से शादी की है। जब्बार की तो 4 बीवियां हैं। अभी चुनाव में ये मुस्लिमों से निकाह करने वाली जनजातीय महिलाएं या प्रसन्नराम का परिवार ही लड़ता और जीतता है।
इस गांव को लेकर जशपुर के एसपी शशिमोहन सिंह कहते हैं कि साईं टांगरटोली गांव गौतस्करी का शेल्टर होम था। पूरे प्रदेश से गायें यहां लाकर रखी जाती थीं और फिर वहां से बांग्लादेश भेजी जाती थीं। जब वह SP के रूप में जशपुर आए तो उन्हें पता चला कि इस गांव में पुलिसकर्मी नहीं जाते, क्योंकि वहां जो भी जाता है उस पर गांव के लोग हमला कर देते हैं।
SP शशिमोहन सिंह ने आगे कहा, “मैंने ऑपरेशन शंखनाद प्लान किया। इसके बाद गोतस्करों को संरक्षण देने वाले मुखिया को जेल भेजा। गोतस्करी में पकड़ी जाने वाली गाड़ियों को राजसात करना शुरू किया। एक दिन लंबी प्लानिंग के बाद हम लोग उस गांव में गए तो महिलाओं ने हमला कर दिया। किसी तरह महिलाओं को कंट्रोल किया और फिर सारी गायें जब्त कर लीं। अब गांव के हालात ठीक हैं।”