वो 5 कारण जिनके चलते दिल्ली में लगी AAP पर झाड़ू, केजरीवाल-सिसोदिया-जैन सब हारे

अरविंद केजरीवाल दिल्ली चुनाव रिजल्ट

अरविंद केजरीवाल

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे सामने आ रहे हैं। अब तक सामने आए रुझानों में BJP बड़ी बढ़त के साथ सत्ता में वापसी करती नजर आ रही है। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सौरभ भारद्वाज, सत्येन्द्र जैन समेत AAP के कई बड़े नेताओं को हार का सामना करना पड़ा है। यहां तक कि मुस्लिम बहुल सीटों पर भी आम आदमी को अपेक्षाकृत कम वोट मिला है। इस चुनाव में AAP के पिछड़ने के कई फैक्टर रहे हैं। इसमें सबसे बड़ा कारण भ्रष्टाचार रहा है, जिसके चलते AAP के कई बड़े नेताओं को जेल की हवा खानी पड़ी। इसके अलावा विकास के मुद्दे में भी कहीं न कहीं AAP से जनता नाराज नजर आई।

आंकड़ों को देखें तो साल 2015 में आम आदमी पार्टी AAP ने 67 सीटें मिली थीं। इसके बाद साल 2020 के विधानसभा चुनाव में यह संख्या घटकर 62 रह गई थी। वहीं इस दौरान, भाजपा की सीटों में बढ़ोतरी देखने को मिली। साल 2015 में BJP के खाते में 3 सीटें गई थीं, वहीं साल 2020 में भाजपा 8 सीटें जीतने में कामयाब रही थी। वहीं इन चुनावों में कांग्रेस का खाता नहीं खुला था।

साल 2025 के विधानसभा चुनावों में अब तक सामने आए रुझान में भाजपा 27 सालों का सूखा खत्म कर सरकार में वापसी करती नजर आ रही है। इस वापसी में पार्टी नेताओं के प्रयास, मोदी की गारंटी और चुनाव के दौरान किए गए वादों के साथ ही AAP की खामियां BJP के लिए फायदेमंद साबित हुईं। दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी (AAP) के खराब प्रदर्शन के कई बड़े कारण रहे हैं:

1.) भ्रष्टाचार: 

दिल्ली की सत्ता में आने से पहले अरविंद केजरीवाल ने खुद को और आम आदमी पार्टी को साफ-सुथरी छवि वाली पार्टी के रूप में पेश किया था। लेकिन इसके बाद हुए खुलासों और भ्रष्टाचार के आरोपों ने AAP की लुटिया डुबोई है। शराब घोटाले से लेकर पानी और विज्ञापन तक में हुए भ्रष्टाचार की रिपोर्ट केजरीवाल की छवि पर बदनुमा धब्बे की तरह हैं। सत्येन्द्र जैन से लेकर संजय सिंह, मनीष सिसोदिया और खुद अरविंद केजरीवाल का जेल जाना और फिर कोर्ट का जमानत से इनकार करना यह दिखा रहा था कि मामला गंभीर है।

इतना ही नहीं, चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पार्टी द्वारा महिलाओं को हर महीने पैसे देने का भी ऐलान किया गया था। यहां तक कि इसे योजना बताकर महिलाओं के फॉर्म भी भरवाए जा रहे थे। इसमें भी भ्रष्टाचार और जनता का डाटा गलत तरीके से इकट्ठा करने की बातें सामने आईं। इसके बाद उपराज्यपाल को जांच तक के आदेश देने पड़े थे। कुल मिलाकर AAP भर भ्रष्टाचार करना भारी पड़ गया।

2.) अधूरे वादे-अधूरा काम:

सत्ता में आने के लिए अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली को पेरिस बनाने का वादा किया था। लेकिन पहली बारिश में ही दिल्ली की सड़कें तालाब की तरह नजर आती थीं। इसके अलावा मोहल्ला क्लीनिक का जितना प्रचार किया गया था, उसे दिल्ली समेत दूसरे प्रदेश की जनता भी जानती है। साथ ही सबको मोहल्ला क्लीनिक के हालात भी पता हैं। यमुना नदी के प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। इसको लेकर भी जनता AAP सरकार से नाराज चल रही थी।

इसके अलावा, दिल्ली में प्रदूषण इतना अधिक होता है कि सांस लेना भी बेहद मुश्किल हो जाता है। दिलचस्प बात यह रही कि इन सभी चीजों के लिए केजरीवाल लगातार दूसरे राज्यों को दोषी ठहराते रहे। इसके चलते भी उन्हें लगातार किरकिरी झेलनी पड़ी। इसके अलावा, टूटी सड़कें, खराब स्कूल, गंदा पानी जैसे तमाम कारण ऐसे हैं जिनका आम जन के जीवन में सीधा प्रभाव होता है।

3.) आंतरिक कलह:

आम आदमी पार्टी (AAP) की हार के सबसे बड़े कारणों में पार्टी और सहयोगियों के बीच कलह भी रही। एक ओर जहां AAP ने कांग्रेस के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव लड़ा था। वहीं अब विधानसभा चुनाव में AAP और कांग्रेस अलग-अलग चुनाव लड़ रहे थे। इस दौरान दोनों तरफ से जमकर वार-पलटवार देखने को मिल रहे थे। ऐसे में जनता को यह समझ आ गया था कि कांग्रेस और AAP में अधिक अंतर नहीं है। यहां तक कि दोनों पार्टियों पर अवसर देखकर हाथ मिलाने और फिर वार करने की भी बातें की जा रही थीं।

इसके अलावा, पार्टी के भीतर भी आंतरिक विवाद देखने को मिल रहे थे। एक ओर AAP की राज्यसभा सांसद स्वाती मालिवाल खुलकर केजरीवाल का विरोध कर रही थीं। वहीं, कैलाश गहलोत, राज कुमार आनंद समेत आखिरी वक्त में 8 विधायकों का पार्टी छोड़कर BJP में शामिल होना भी AAP के लिए घातक साबित हुआ।

4.) शीशमहल:

अरविंद केजरीवाल हमेशा जनता के सामने सामान्य कपड़े और आम आदमी बनने का दिखावा करते नजर आते थे। लेकिन इसके बाद, CM हाउस को ‘शीशमहल’ में बदलने के लिए जिस तरह से करोड़ों रुपए खर्च करने के आरोप ने केजरीवाल की सबसे बड़ी फजीहत की थी। वास्तव में देखें तो सत्ता में आने से पहले केजरीवाल ने सरकारी गाड़ी, सुरक्षा गार्ड, सरकारी घर लेने समेत तमाम सरकारी सुविधाएं लेने से इनकार किया था। लेकिन सत्ता में आने के बाद वह यही सब करते इनके लिए लड़ते नजर आए।

चूंकि BJP नेताओं ने शीशमहल के मुद्दे को जमकर उठाया था। CM हाउस के अंदर के फोटो-वीडियो भी लगातार सामने आते रहे हैं। ऐसे में जनता के सामने AAP और केजरीवाल की पोल खुल चुकी थी। इसका परिणाम ही EVM में वोट के रूप में पड़ा और फिर आज परिणाम के रूप में सामने आया।

5.) कांग्रेस ने जमकर काटे वोट:

इस चुनाव में कांग्रेस भले ही एक भी सीट जीतने में कामयाब नहीं हो पाई। लेकिन कांग्रेस प्रत्याशियों ने पिछले चुनाव की अपेक्षा अधिक वोट हासिल किए हैं। चूंकि भाजपा का भी वोट बैंक बढ़ा है, ऐसे में अगर किसी का वोट कटा तो वह आम आदमी पार्टी ही थी। ऐसी कई सीटें रहीं जहां हार और जीत का अंतर काफी कम है। लोकसभा चुनाव की तरह यदि आम आदमी पार्टी ने विधानसभा में भी कांग्रेस से गठबंधन किया होता तो शायद स्थिति कुछ और होती। हालांकि ऐसा हुआ नहीं और परिणाम सबके सामने है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी की हार के ये तो सिर्फ कुछ उदाहरण ही हैं। वास्तव में सच्चाई यह है कि AAP हर मोर्चे पर पिछड़ती चली गई। यही कारण है कि 55 सीटें जीतने का दंभ भरने वाले अरविंद केजरीवाल अपनी सीट तक नहीं बचा पाए। यहां तक कि केजरीवाल ने कहा था कि उन्हें हराने के लिए PM मोदी उन्हें इस जन्म में नहीं हरा पाएंगे, हराने के लिए फिर से जन्म लेना पड़ेगा। सीधे शब्दों में कहें तो अति-आत्मविश्वास छोड़ यदि जमीनी स्तर पर काम करने का प्रयास किया गया होता तो जनता आरोप-प्रत्यारोप को भूल जाती और आज एक बार फिर AAP सत्ता में होती।

 

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