साइकल से दफ्तर जाने वाला दिल्ली का वो सीएम जिसकी प्याज की कीमतों के चलते गई कुर्सी; कहानी साहिब सिंह वर्मा की

साहिब सिंह वर्मा पर अपने गांव के एक शख्स की हत्या करने का भी आरोप लगा था

मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद साहिब वर्मा डीटीसी बस में सवार होकर अपने घर मुंडका गए थे (चित्र: आज तक)

मुख्यमंत्री पद से इस्तीफे के बाद साहिब वर्मा डीटीसी बस में सवार होकर अपने घर मुंडका गए थे (चित्र: आज तक)

दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 में आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक एवं पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को नई दिल्ली सीट से हराकर प्रवेश वर्मा चर्चा के केंद्र में हैं। कई राजनीतिक विश्लेषक उन्हें दिल्ली का अगला मुख्यमंत्री भी बता रहे हैं। लोग उन्हें दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री एवं भाजपा नेता साहिब सिंह वर्मा के उत्तराधिकारी के रूप में देख रहे हैं। साहिब सिंह वर्मा दिल्ली भाजपा के वरिष्ठ नेता थे। एक समय ऐसा आया कि वे राजनीति की बुलंदी पर पहुँच गए, लेकिन प्याज ने ऐसा रुलाया कि उनकी सरकार चली गई और आखिरकार उन्हें दिल्ली परिवहन निगम (DTC) की बस से अपने घर जाना पड़ा था।

साहिब सिंह वर्मा का जन्म 15 मार्च 1943 को दिल्ली के मुंडका गाँव में हुआ था। उनके पिता मीर सिंह वर्मा एक किसान थे और उनकी माँ भरपाई देवी एक घरेलू महिला थीं। उनकी शिक्षा दीक्षा दिल्ली में हुई। कहा जाता है कि सिर्फ 11 साल की उम्र में उनकी शादी 1954 में हो गई। उन्होंने अपनी पढ़ाई अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से पूरी की। उन्होंने पुस्तकालय विज्ञान में पीएचडी की। इसके बाद दिल्ली के शहीद भगत सिंह कॉलेज में लाइब्रेरियन की नौकरी शुरू की। पढ़ाई के दौरान ही उनका झुकाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ओर हो गया। आगे चलकर वे संघ के कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगे और RSS के कर्तव्यनिष्ठ कार्यकर्ता बन गए।

संघ से होते हुए वे भाजपा में आए और अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की। सन 1977 में वर्तमान भाजपा ने उन्हें पहली बार दिल्ली नगर निगम के चुनाव में केशवपुरम से उतारा और वे जीतकर पार्षद बने। आगे चलकर वे पार्टी के विभिन्न पदों पर रहे और दिल्ली में भाजपा को मजबूत बनाने में अपना योगदान दिया। वे आगे भी जीतकर पार्षद बने। इससे उनका कद पार्टी में बढ़ता गया। इसके बाद सन 1991 के लोकसभा चुनावों में भाजपा ने उन्हें बाहरी दिल्ली लोकसभा से टिकट दिया। उनके सामने थे कांग्रेस के शक्तिशाली नेता सज्जन कुमार। इस चुनाव में सज्जन कुमार 85,000 वोटों के अंतर से जीतने में कामयाब रहे। हालाँकि, साहिब वर्मा निराश नहीं हुए।

इसके बाद सन 1993 के दिल्ली विधानसभा चुनावों में पार्टी ने उन्हें उम्मीदवार बनाया। विधानसभा का यह चुनाव 37 साल बाद हो रहा था। दरअसल, दिल्ली का पहला विधानसभा चुनाव 1952 में हुआ था। उस दौरान कांग्रेस के ब्रह्म प्रकाश पहले मुख्यमंत्री बने। साल 1955 में उनकी जगह गुरमुख निहाल सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया। इसके अगले ही साल 1956 में दिल्ली विधानसभा को भंग करके दिल्ली को केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया। लोगों की माँग पर 1991 में फिर से दिल्ली विधानसभा का गठन किया गया और विधानसभा क्षेत्रों का परिसीमन किया गया। अब दिल्ली विधानसभा की सीटें 48 से बढ़कर 70 हो गईं। इसके बाद साल 1993 में दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी बनाया गया और विधानसभा चुनाव कराने की घोषणा की गई।

इस ऐतिहासिक चुनाव में साहिब सिंह वर्मा शालीमार बाग से चुनाव जीतकर विधायक बन गए। उन्होंने कांग्रेस नेता एससी वत्स को 21 हजार वोटों से हराया था। चुनाव में मदनलाल खुराना के नेतृत्व में भाजपा ने 70 में से 49 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया था। वहीं, विपक्षी दल कांग्रेस को सिर्फ 14 सीटें मिलीं थीं। इसके बाद मदनलाल खुराना मुख्यमंत्री बने। मदनलाल ने अपनी सरकार में साहिब वर्मा को शिक्षा एवं विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी दी। वर्मा ने इस पद पर रहते हुए कई महत्वपूर्ण कार्य किए और कई योजनाओं को अमली जामा पहनाया था। दिल्ली सहित पार्टी में भी उनकी पहचान एक कुशल प्रशासक की बन गई।

इसी दौरान मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना पर भ्रष्टाचार के आरोप लगने लगे। सुब्रह्मण्यम स्वामी ने खुराना को जैन हवाला कांड में शामिल होने का आरोप लगाया था। इसके बाद खुराना पर कांग्रेस भी हमलावर हो गई। आखिरकार चौतरफा हमले से घिरने के बाद केंद्रीय नेतृत्व के कहने पर कुर्सी सँभालने के सिर्फ 2.5 साल बाद ही सन 1996 में मदनलाल खुराना को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। उस समय भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी थे। उन पर जैन हवाला कांड में शामिल होने का आरोप लगा तो उन्होंने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया और घोषणा की कि खुद के बेदाग साबित होने तक वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। हालाँकि, बाद में जैन हवाला कांड से भाजपा नेता बेदाग निकल आए। तब तक खुराना की मुख्यमंत्री पद की कुर्सी जा चुकी थी।

मदनलाल खुराना ने दिल्ली चुनावों में जो माइक्रो मैनेजमेंट करके कांग्रेस को मात दी थी और मुख्यमंत्री के रूप में दिल्ली की जनता पर छाप छोड़ी थी, उसकी भरपाई करना भाजपा के लिए जरूरी था। ऐसे में केंद्र ने तत्कालीन शिक्षा एवं विकास मंत्री साहिब सिंह वर्मा को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद की कमान दी। 26 फरवरी 1996 को मुख्यमंत्री की शपथ लेने वाले साहिब सिंह वर्मा ने खुराना की नीतियों को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। उनकी कार्य-प्रणाली से प्रदेश की जनता और भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी खुश था। सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था।

उस समय केंद्र में विरोधी एचडी देवेगौड़ा और बाद में इंद्र कुमार गुजराल की सरकार बनी। साहिब सिंह वर्मा ने केंद्र सरकार पर आरोप लगाया कि वह दिल्ली को फंड नहीं दे रही है। विरोध के तौर पर साहिब सिंह वर्मा ने सरकारी गाड़ी लेने से इनकार कर दिया और साइकिल से कार्यालय और घर आने-जाने लगे। वे साइकिल से चलते और उनकी सिक्योरिटी के जवान जीप में साइकिल के आगे-पीछे चलते थे। यह सिलसिला कई दिनों तक चला। इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री बनने के बाद वे अपने शालीमार बाग के DDA फ्लैट में ही रहते थे। हालाँकि, उनकी सुरक्षा में लगे जवानों के रहने के लिए वहाँ जगह नहीं थी। फिर हुआ कि उनके फ्लैट के बाहर कॉलोनी के पार्क में टेंट लगाकर जवान रहने लगे। इससे स्थानीय लोग नाराज हो गए और साहिब सिंह वर्मा से मिलकर कहा कि उनका पार्क में वॉक करना मुश्किल हो गया है। वर्मा ने कहा कि उन्होंने सुरक्षा लेने से मना कर दिया है, फिर भी जवान लगे हैं। हालाँकि, बाद में साहिब सिंह वर्मा श्यामनाथ मार्ग के बंगले में चले गए।

यह सब कुछ चलता रहा। इसी दौरान अगले साल यानी 1997 तक जैन हवाला कांड कोर्ट में फुस्स साबित हो गया और मदनलाल खुराना सहित अन्य आरोपित कोर्ट से बरी हो गए। खुराना गुट ने उन्हें एक बार फिर से दिल्ली का मुख्यमंत्री बनाने के लिए मुहिम शुरू कर दी, लेकिन लालकृष्ण आडवाणी ने साहिब सिंह वर्मा को बदलने से इनकार कर दिया। लालकृष्ण आडवाणी ने खुराना को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़ने के बदले में दिल्ली भाजपा विधायक दल का अध्यक्ष बना दिया। ये एक ऐसा पद था, जिसका जिक्र ना तो भाजपा के पार्टी संविधान में था और ना ही यह पद किसी पहले मिला था। उसके बाद भी आज तक किसी को यह पद नहीं मिला।

हालाँकि, मदनलाल खुराना की नाराजगी जारी। अगले साल यानी 1998 में मार्च में लोकसभा चुनाव तय हुआ और भाजपा नेतृत्व ने खुराना की नाराजगी दूर करने के लिए उन्हें दिल्ली सदर लोकसभा क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया। खुराना इस चुनाव में विजयी रहे और केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में वे मंत्री बनाए गए। कहा जाता है कि मंत्री बनने के बाद भी मदनलाल खुराना के मन में साहिब सिंह वर्मा के लिए नाराज़गी कम नहीं हुई। साहिब सिंह वर्मा के शासन काल में दिल्ली में कई बड़े कांड हो गए। इनमें उपहार सिनेमा अग्निकांड, वजीराबाद में यमुना में स्कूली बच्चों से भरी बस का गिरना, मिलावटी तेल से ड्रॉप्सी महामारी का फैलना, पानी के टैंकर में मरा हुआ जहरीला साँप वाला पानी पीने से कई लोग बीमार हुए आदि शामिल है। इससे साहिब वर्मा की सरकार परेशान थी।

इसी बीच त्योहारों का मौसम आया और राजधानी में प्याज की भयानक किल्लत हो गई। आलम ये गया कि प्याज 60 से 80 रुपए किलो तक बिकने लगा। इसके बाद तो दिल्ली की भाजपा सरकार विरोधियों के निशाने पर आ गई। जगह-जगह विरोध होने लगे। उस समय पत्रकारों ने मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा से पूछा कि गरीब आदमी इतना महंगा प्याज खाने के बारे में तो सोच ही नहीं सकता। इस पर साहिब वर्मा ने कहा, ‘गरीब आदमी तो प्याज खाता नहीं, मिडिल क्लास और अमीर लोग प्याज खाते हैं’। उनके इस बयान की तीखी आलोचना हुई। कांग्रेस की शीला दीक्षित ने साहिब सिंह सरकार के खिलाफ हमले तेज कर दिए। कांग्रेस नेता प्याज की माला पहनकर भाजपा के खिलाफ प्रदर्शन करने लगे।

हालात देखकर भाजपा नेतृत्व सतर्क हो गया, क्योंकि दो महीने बाद ही दिल्ली विधानसभा चुनाव होने थे। आखिरकार भाजपा नेतृत्व ने प्रदेश में मुख्यमंत्री बदलने का निर्णय लिया। उस दौरान दो नामों पर चर्चा हुई। पहला, तत्कालीन राज्यसभा सांसद सुषमा स्वराज और दूसरा डॉक्टर हर्षवर्धन का। अटल बिहारी वाजपेयी ने सुषमा स्वराज के नाम पर अपनी मुहर लगाई और वह 12 अक्टूबर 1998 को दिल्ली की मुख्यमंत्री बन गईं। हालाँकि, उनके इस्तीफे के विरोध में लगभग 5,000 जाट किसान दिल्ली सीएम आवास के सामने आ गए और इस्तीफे का विरोध करने लगे। साहिब सिंह वर्मा ने अपना सरकारी आवास तुरंत खाली कर दिया और डीटीसी की बस में बैठकर पूरे परिवार सहित अपने गाँव मुंडका जाने लगे। तभी किसानों ने रोक लिया। इस पर साहिब सिंह वर्मा ने एक बुजुर्ग से कहा, “ताऊ जाने दे।” तब उस बुजुर्ग ने कहा, “ऐसे कैसे वो (भाजपा वाले) इस्तीफा ले लेंगे। तू जाट है…तू कैसे चला जावेगा? हम तुझे जाने ही नहीं देंगे।” हालाँकि, साहिब वर्मा ने उन्हें समझाया और डीटीसी बस में सवार होकर अपने घर मुंडका चले गए

इस साल हुए दिल्ली विधानसभा के चुनाव साहिब सिंह वर्मा ने नहीं लड़े। 1998 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले ही साहिब वर्मा के गाँव मुंडका में एक व्यक्ति की हत्या हो गई। मरने वाले का नाम वेद सिंह उर्फ लालू पहलवान था। उन्हें साहिब वर्मा का करीबी कहा जाता था। वे भाजपा से विधायकी का टिकट माँग रहे थे, लेकिन पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दी तो केंद्र में NDA की गठबंधन समता पार्टी (वर्तमान में नीतीश कुमार की जदयू) की टिकट पर नांगलोई जाट विधानसभा से मैदान में उतर गए। भाजपा और समता पार्टी का दिल्ली चुनावों में गठबंधन नहीं हुआ था। उस समय वेद सिंह के सामने भाजपा सरकार के परिवहन मंत्री देवेंदर सिंह शौकीन थे। शौकीन भी साहिब सिंह के करीबी थी।

इसमें मृतक वेद सिंह के परिजनों ने हत्या का आरोप साहिब सिंह वर्मा के परिवार पर लगाया। इस हत्या के कारण भाजपा और तत्कालीन समता पार्टी में कलह बढ़ गई। समता पार्टी के तत्कालीन अध्यक्ष जॉर्ज फर्नांडिस घटनास्थल पर गए और मृतक के परिजनों से मुलाकात की। समता पार्टी की महासचिव जया जेटली ने तो मामले की सीबीआई जाँच नहीं होने पर केंद्र की वाजपेयी सरकार से समर्थन वापस लेने की घोषणा कर दी। उन्होंने आरोप लगाया कि साहिब सिंह वर्मा और उनके भाई समता पार्टी के उम्मीदवार वेद सिंह पर नामांकन वापस लेने का दबाव बना रहे थे। हालाँकि, साहिब सिंह वर्मा ने इसे अपने खिलाफ राजनीतिक साजिश बताया।

इस तरह भाजपा में अब तीन गुट बन चुके थे। मदनलाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा और सुषमा स्वराज। सबकी अपनी-अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षा थी। इस हत्याकांड के 15 दिन बाद दिल्ली विधानसभा के लिए मतदान हुए और भाजपा सरकार गिर गई। भाजपा को सिर्फ 15 सीटें मिलीं और कांग्रेस ने 51 सीटों के साथ प्रचंड बहुमत हासिल किया। इसके बाद सुषमा स्वराज की 52 दिन सरकार का अंत हो गया। कांग्रेस की ओर से शीला दीक्षित दिल्ली की मुख्यमंत्री बनीं और लगातार तीन कार्यकाल यानी 2013 तक मुख्यमंत्री बनी रहीं। इसके बाद आम आदमी पार्टी की सरकार बनी और आखिरकार 2025 में भाजपा ने 27 साल पुराने अपने वनवास को खत्म किया। वहीं, 30 जून 2007 को दिल्ली जयपुर हाईवे पर एक कार दुर्घटना में साहिब सिंह वर्मा का देहांत हो गया था। उस समय वे भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष थे।

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