‘खुदा पानी में नहीं है’… फिर मक्का का आब-ए-ज़मज़म क्या है फारूक अब्दुल्ला जी? महाकुंभ में आपको किसी ने नहीं बुलाया

संभल पर क्या बोले थे अब्दुल्ला

"मेरा खुदा पानी में नहीं रहता"- फारूक अब्दुल्ला, फिर आब-ए-ज़मज़म में क्या खोजते हैं वो?

"मेरा खुदा पानी में नहीं रहता"- फारूक अब्दुल्ला, फिर आब-ए-ज़मज़म में क्या खोजते हैं वो?

जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फारूक अब्दुल्ला ने मंगलवार को एक बयान दिया, जिसने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ में जाने के सवाल पर उन्होंने कहा, “मैं तो घर में नहाता हूं। मेरा खुदा पानी में नहीं है। मेरा खुदा न मंदिर में है, न मस्जिद में, न गुरुद्वारे में। मेरा खुदा मेरे दिल में है।”

यह बयान और भी दिलचस्प हो जाता है जब हम देखें कि फारूक अब्दुल्ला जनवरी 2024 में उमरा के लिए मक्का गए थे। इसके अलावा, 2023 में भी उन्होंने मक्का की यात्रा की थी। इस दौरान, इस्लामिक परंपराओं के अनुसार, आब-ए-ज़मज़म पानी लाने की रस्म निभाना अनिवार्य माना जाता है। इस पानी को इस्लाम में बेहद पवित्र और विशेष माना जाता है, जिसे बीमारियों के इलाज में शिफा देने वाला माना जाता है और इसे अक्सर रिश्तेदारों और दोस्तों को तोहफे के रूप में दिया जाता है।

अब सवाल यह उठता है कि अगर फारूक अब्दुल्ला का यह मानना है कि उनका खुदा पानी में नहीं है, तो फिर आब-ए-ज़मज़म के बारे में उनकी क्या राय होगी? अगर उनका खुदा किसी मस्जिद में नहीं बस्ता, तो मक्का में वह क्या तलाशते हैं? इसके अलावा, जब सरकार अवैध मस्जिदों के खिलाफ जांच कर रही है, तो उनका मुस्लिम समुदाय के लिए प्रेम क्यों सामने आता है?

आब-ए-जमज़म का इतिहास और इसका इस्लाम में महत्व

आब-ए-जमज़म का पानी मुसलमानों के लिए बेहद पवित्र माना जाता है। हज यात्रा के दौरान जब हाजी अपने घर लौटते हैं, तो वे इस पानी को अपने साथ जरूर ले आते हैं। इसे अल्लाह की एक विशेष नेमत के रूप में देखा जाता है, जो मक्का के पवित्र कुएं से निकलता है और इस्लाम धर्म में इसका एक गहरा मजहबी और सांस्कृतिक महत्व है।

इस्लामी मान्यता के अनुसार, जमजम का कुआं हजरत इब्राहीम की पत्नी हजर (जो हजरत इस्माइल की मां थीं) द्वारा खोजा गया था। यह तब हुआ जब हजरत इब्राहीम ने अल्लाह के आदेश पर अपनी पत्नी और बेटे को मक्का के रेगिस्तान में छोड़ दिया था। उस समय हजरत इस्माइल की प्यास बढ़ती जा रही थी, और उनकी मां हजर ने सफा और मरवा पहाड़ियों के बीच पानी की तलाश में दौड़ना शुरू किया। सातवीं दौड़ में उन्हें अचानक जमीन से पानी निकलते हुए दिखाई दिया। उन्होंने कहा, “जमजम” यानी “रुक जाओ,” और पानी बहना रुक गया। तभी से इस पानी का नाम “आब-ए-जमज़म” पड़ा।

समय के साथ जब मक्का के लोग धार्मिक रूप से भटक गए, तो जुरहम कबीला मक्का छोड़कर चला गया और उसने जमजम के कुएं को छुपा दिया ताकि लोग इस पानी के लाभ से वंचित हो जाएं। इसके बाद कई सदियों तक लोग यह भूल गए कि जमजम का कुआं कहां था, लेकिन हजरत मोहम्मद के दादा अबू मुत्तलिब को अल्लाह की ओर से एक संकेत मिला और उन्होंने जमजम के कुएं को फिर से खोज निकाला।

अबू मुत्तलिब ने इस पानी को लेकर मक्का के अन्य लोगों को नकारते हुए जमजम के पानी का अधिकार अपने खानदान को दिलवाया। इसके बाद उनका परिवार हाजियों को जमजम का पानी पिलाने लगा।

संभल पर क्या बोले थे अब्दुल्ला

फारूक अब्दुल्ला ने संभल में चल रहे कानूनी सर्वे को लेकर सरकार पर तीखी प्रतिक्रिया दी थी। रिपोर्टर्स से बात चीत के दौरान उन्होंने कहा था , ‘इस तरह की घटनाओं को रोकने की आवश्यकता है। मैं भारत सरकार से यह आग्रह करूंगा कि ऐसे कृत्यों को तुरंत रोका जाए, क्योंकि क्या वे भारत के 24 करोड़ मुसलमानों को समुद्र में फेंक देंगे? मुसलमानों को समान रूप से व्यवहार किया जाना चाहिए, यही हमारे संविधान का मूल उद्देश्य है। यदि संविधान के साथ छेड़छाड़ की जाएगी, तो भारत कैसे बनेगा?’ अब्दुल्ला ने सरकार से सवाल किया, ‘आखिर वे 24 करोड़ मुसलमानों को कहां फेंकेंगे?’ इस बयान से उन्होंने संविधान की रक्षा और समानता की महत्वपूर्ण बात को उजागर किया।

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