‘देशविरोधी’ बयानबाजी पर राहुल गाँधी के खिलाफ ओडिशा में FIR, IG हिमांशु का ऐलान – थमाएंगे नोटिस: कहा था – इंडियन स्टेट से है लड़ाई

कभी इंडियन स्टेट से लड़ाई, तो कभी भारत पर चीनी कब्ज़ा—RAGA की बयानबाजी का असली एजेंडा क्या है?

Odisha: FIR registered against Rahul Gandhi for 'anti-national' remarks

Odisha: FIR registered against Rahul Gandhi for 'anti-national' remarks (Image Source: x)

लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर विवादों के केंद्र में हैं। ओडिशा के झारसुगुड़ा टाउन पुलिस स्टेशन में उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 और 197(1)(D) के तहत FIR दर्ज की गई है। उन पर जानबूझकर ऐसे बयान देने का आरोप है, जो देश की अखंडता और एकता पर सवाल खड़े करते हैं।

हालांकि राहुल गांधी का विवादित बयान देना कोई नई बात नहीं है। कभी भारतीय राज्यों के खिलाफ लड़ाई का ऐलान, तो कभी भारत को राष्ट्र मानने से इनकार—ऐसे बयानों को अब “नासमझी” कहकर खारिज नहीं किया जा सकता। यह घटनाएं कोई संयोग नहीं, बल्कि एक सुनियोजित एजेंडा का हिस्सा प्रतीत होती हैं।

ऐसे में सवाल उठ रहा है: क्या राहुल गांधी के बयानों के पीछे कोई बड़ा एजेंडा छिपा है? क्या यह बयान भारत की छवि को कमजोर करने और दुश्मनों को फायदा पहुंचाने के लिए दिए जा रहे हैं? अब वक्त आ गया है कि इन बयानों की न केवल गंभीरता से जांच हो, बल्कि इसके पीछे की मंशा को भी उजागर किया जाए।

राहुल गाँधी पर FIR 

5 फरवरी 2025 को झारसुगुड़ा जिले में भाजपा, भाजपा युवा मोर्चा, आरएसएस, बजरंग दल और भाजपा लीगल सेल के सदस्यों ने आईजी श्री हिमांशु कुमार लाल, आईपीएस को एक शिकायत सौंपी। शिकायत में आरोप लगाया गया कि राहुल गांधी ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सारी हदें पार कर दी हैं और जानबूझकर भारत की संप्रभुता और अखंडता को कमजोर करने की कोशिश की है। उन्होंने राहुल गांधी पर भारतीय राज्य के खिलाफ युद्ध छेड़ने और जनता को इसके खिलाफ उकसाने का आरोप लगाया।

आईजी हिमांशु कुमार लाल, आईपीएस ने इस शिकायत को गंभीरता से लेते हुए तुरंत एसपी झारसुगुड़ा, श्री परमार स्मित परशोत्तमदास, आईपीएस को इस मामले की गहन जांच करने के निर्देश दिए। निर्देशानुसार, एसपी परमार ने 7 फरवरी 2025 को राहुल गांधी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152 और 197(1)(d) के तहत झारसुगुड़ा थाने में एफआईआर (झारसुगुड़ा पीएस केस नंबर 31) दर्ज की।

FIR Filed Against Rahul Gandhi in Odisha

शिकायतकर्ता राम हरि पुजारी (42), पुत्र आदित्य पुजारी, निवासी सरबहाल, थाना/जिला-झारसुगुड़ा, ने अन्य शिकायतकर्ताओं के साथ मिलकर एक याचिका दायर की। इस याचिका में भाजपा, भाजपा युवा मोर्चा, आरएसएस, बजरंग दल और झारसुगुड़ा जिले के भाजपा विधिक प्रकोष्ठ के सदस्यों ने राहुल गांधी पर गंभीर आरोप लगाए हैं।

शिकायत के अनुसार, राहुल गांधी ने जानबूझकर ऐसे देशविरोधी बयान दिए, जो न केवल भारत की संप्रभुता और अखंडता को चोट पहुंचाते हैं, बल्कि प्रत्येक भारतीय के सम्मान को भी ठेस पहुंचाते हैं।

एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि राहुल गांधी ने कथित तौर पर “भारतीय राज्य के खिलाफ लड़ाई” की बात कहकर देशवासियों को उकसाने और विद्रोही तथा उपद्रवी गतिविधियों को प्रोत्साहित करने का प्रयास किया। उनके बयानों को राष्ट्र के हितों के खिलाफ और खतरनाक बताते हुए कहा गया है कि उन्होंने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमाओं को लांघते हुए ऐसा माहौल तैयार करने की कोशिश की, जो देश के लिए घातक है

‘देशविरोधी’ बयानबाजी का असली एजेंडा क्या है?

कांग्रेस नेता राहुल गांधी एक बार फिर अपने ‘देशविरोधी’ बयानों को लेकर कटघरे में हैं। उन्होंने दिल्ली में कांग्रेस के नए मुख्यालय के उद्घाटन(15 जनवरी 2025) के दौरान खुलेआम यह कहा कि वह सिर्फ भाजपा और आरएसएस से नहीं, बल्कि “भारतीय राज्य (Indian State)” से भी लड़ रहे हैं। उनकी टिप्पणी कि “हम भारतीय राज्य से लड़ाई कर रहे हैं,” एक तरह से यह घोषणा है कि वह भारतीय राज्य के हर स्तंभ के खिलाफ हैं—चाहे वह राष्ट्रपति हो, प्रधानमंत्री हो, सुप्रीम कोर्ट हो, सेना हो या भारत के लाखों नागरिक हों। बताते चलें कि यह पहली बार नहीं है जब राहुल गांधी ने ऐसा बयान दिया हो इन्हीं राहुल गाँधी ने कहा था कि ‘मैं नहीं मानता भारत एक राष्ट्र है, भारत सिर्फ राज्यों का संघ है।’ आखिर क्यों वह बार-बार ऐसी बयानबाजी करते हैं जो राष्ट्रवाद के खिलाफ जाती है? क्या यह अज्ञानता में दिए गए बयान हैं, या फिर इसके पीछे एक गहरी और खतरनाक साजिश छिपी है?

राहुल गांधी की ‘माओवादी’ प्रवृत्ति

कांग्रेस पार्टी के भीतर वामपंथी विचारधारा का प्रभाव कोई नई बात नहीं है। आजादी से पहले ही पार्टी में दो गुट बन गए थे—एक दक्षिणपंथी और दूसरा वामपंथी। हालांकि, लंबे समय तक दक्षिणपंथी विचारधारा वाले नेता पार्टी पर हावी रहे, जिससे कांग्रेस करीब पांच दशकों तक सत्ता में बनी रही। लेकिन जैसे ही वैश्विक स्तर पर कम्युनिज़्म का प्रभाव कमजोर हुआ, वामपंथियों ने अपने लिए नए ठिकाने तलाशने शुरू कर दिए।

भारत में कम्युनिस्ट पार्टियों के कमजोर होने पर इस विचारधारा के लोग कांग्रेस में समा गए। ठीक वैसे ही जैसे अमेरिका में वामपंथियों ने डेमोक्रेटिक पार्टी को अपने एजेंडे का माध्यम बना लिया। ‘डीप स्टेट’ की परिकल्पना भी बहुत हद तक कम्युनिस्टों का बदला हुआ स्वरूप मानी जाती है। यही कारण है कि राहुल गांधी की बयानबाजी में वामपंथी विचारधारा का स्पष्ट प्रभाव दिखता है। संपत्ति के समान वितरण, अरबपतियों को खत्म करने और “जिसकी जितनी आबादी, उसकी उतनी हिस्सेदारी” जैसी बातें राहुल गांधी के भाषणों में अक्सर सुनाई देती हैं। यह सब उनके वामपंथी प्रभाव में होने का संकेत देता है।

राहुल गांधी की माओवादी सोच तब पहली बार उजागर हुई, जब उन्होंने अपनी ही पार्टी की केंद्र सरकार का कैबिनेट प्रस्ताव सार्वजनिक रूप से फाड़ दिया। यह उस समय की घटना है जब चीन के राष्ट्रपति और राहुल गांधी की मां सोनिया गांधी की मौजूदगी में चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी के साथ एक दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए गए थे। यह दस्तावेज़ आज भी देश के नागरिकों के लिए एक रहस्य है। सवाल यह है कि कांग्रेस के नेता ने दुश्मन देश की सत्ताधारी पार्टी के साथ आखिर क्या डील की, और इसकी जरूरत क्यों पड़ी?

चीन प्रेम और संसद में हंगामा

बजट सत्र 2025 के दौरान राहुल गांधी का चीन प्रेम फिर से झलका। उन्होंने लोकसभा में अपने भाषण में यह दावा किया कि चीन ने भारत की सीमा के 4,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। इस बयान से संसद में हंगामा मच गया। एनडीए के सांसदों और लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने राहुल गांधी से इस दावे के लिए ठोस सबूत पेश करने की मांग की। लेकिन यह पहली बार नहीं था जब राहुल गांधी ने चीन को लेकर विवादास्पद बयान दिया।

सीआईए और राहुल गांधी की संदिग्ध मुलाकात 

राहुल गांधी की मुलाकातें भी सवालों के घेरे में हैं। 10 सितंबर, 2024 को उन्होंने डोनाल्ड लू से मुलाकात की। डोनाल्ड लू को सीआईए के इशारे पर दूसरे देशों में सत्ता परिवर्तन करवाने के लिए कुख्यात माना जाता है। पाकिस्तान और बांग्लादेश इसके ताजा उदाहरण हैं। राहुल गांधी ने बांग्लादेश में हिंसक सत्ता परिवर्तन के बाद डोनाल्ड लू से क्यों मुलाकात की? यह सवाल अब भी अनुत्तरित है।

राहुल गांधी की लगातार वामपंथी बयानबाजी और संदिग्ध गतिविधियां सिर्फ नासमझी नहीं, बल्कि एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा लगती हैं।

 

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