काश पटेल ने गीता पर हाथ रख कर ली FBI डायरेक्टर पद की शपथ, लिबरल गैंग को जड़ा करारा तमाचा

आप पहली पीढ़ी के भारतीय से बात कर रहे हैं — काश पटेल

काश पटेल ने गीता पर हाथ रखककर ली FBI डायरेक्टर पद की शपथ

काश पटेल ने गीता पर हाथ रखककर ली FBI डायरेक्टर पद की शपथ(image Source: X)

भारतीय संस्कृति और सनातन धर्म की वैश्विक पहचान अब एक बार फिर दुनिया के सामने है। इसका ताजा उदाहरण तब देखने को मिला जब भारतीय मूल के अमेरिकी काश पटेल ने वॉशिंगटन डीसी में आयोजित समारोह में संघीय जांच ब्यूरो (FBI) के 9वें निदेशक के रूप में शपथ ली। लेकिन यह केवल एक साधारण शपथ ग्रहण नहीं था। काश पटेल ने भगवद्गीता पर हाथ रखकर शपथ ली, जिसने अमेरिका में हिंदू संस्कृति की स्वीकार्यता को दर्शाने के साथ-साथ भारत के उन वोक लिबरल गैंग के दिलों में भी खलबली मचा दी है, जो धर्म और आस्था के नाम पर अपना प्रोपेगेंडा चलाते आए हैं।

जरा सोचिए, वही लोग जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अयोध्या में श्रीराम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने को धर्मनिरपेक्षता पर हमला बताते थे। वही लोग जो उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा महाकुंभ में श्रद्धालुओं की सुविधा और भीड़ प्रबंधन के लिए किए गए खर्च को ‘राजसी व्यय का दुरुपयोग’ कहकर आलोचना करते थे। उनके लिए अमेरिका जैसे सुपरपावर की शीर्ष सुरक्षा एजेंसी के प्रमुख का गीता पर हाथ रखकर शपथ लेना किसी तमाचे से कम नहीं होगा।

आप पहली पीढ़ी के भारतीय से बात कर रहे हैं — काश पटेल

जब काश पटेल ने वॉशिंगटन डीसी के ऐतिहासिक मंच पर खड़े होकर भगवद्गीता पर हाथ रखकर शपथ ली, तो यह सिर्फ एक औपचारिकता नहीं थी—यह उनकी जड़ों, मूल्यों और सनातन संस्कृति के प्रति उनके सम्मान का प्रतीक था। भारतीय समुदाय के लिए यह गर्व का क्षण था, लेकिन इससे कहीं अधिक यह उन विचारधाराओं के लिए एक जवाब था, जो धर्म और परंपराओं को आधुनिकता के खिलाफ मानते हैं। इस पल ने यह दिखा दिया कि भारतीय संस्कृति न केवल भारत में बल्कि वैश्विक मंच पर भी अपनी छाप छोड़ रही है।

समारोह के बाद, अपनी आंखों में आत्मविश्वास और आवाज में गर्व लिए पटेल ने कहा, “मैं अमेरिकी सपने को जी रहा हूं। जो कोई भी सोचता है कि अमेरिकी सपना मर चुका है, वो मुझे देखे। आप पहली पीढ़ी के भारतीय से बात कर रहे हैं जो दुनिया के महानतम राष्ट्र की कानून प्रवर्तन एजेंसी का नेतृत्व करने वाला है। ऐसा कहीं और नहीं हो सकता। मैं वादा करता हूं कि FBI के भीतर और बाहर जवाबदेही सुनिश्चित की जाएगी।”

इस ऐतिहासिक क्षण पर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी उनकी प्रशंसा करते हुए कहा, “काश पटेल को इस पद पर नियुक्त करने का एक कारण यह है कि FBI के एजेंट उनका सम्मान करते हैं। वह इस पद पर सर्वश्रेष्ठ साबित होंगे। वह एक सख्त और बेहद मजबूत व्यक्ति हैं।” ट्रंप के इन शब्दों ने न केवल पटेल की क्षमताओं पर मुहर लगाई बल्कि उनके इस कदम ने उन आलोचकों के लिए भी एक संदेश छोड़ा है, जो भारतीय परंपराओं को पिछड़ा या संकीर्ण दृष्टि से देखते आए हैं।

महाकुंभ को बताया था राजस्व की बर्बादी—अब आंकड़े दिखा रहे हैं लिबरल गैंग को आईना

ये वही लिबरल गैंग है जिसने हिन्दू आस्था के इस महापर्व को लेकर नकारात्मक बातें कही थीं। इन्हीं लोगों ने महाकुंभ में श्रद्धालुओं की सुविधा और मेले के प्रबंधन पर खर्च किए गए राजस्व को धन की बर्बादी करार दिया था। लेकिन ज़मीन पर हकीकत कुछ और ही कहानी बयां कर रही है। 13 जनवरी से शुरू हुए इस विश्व के सबसे बड़े मेले ने आस्था और आर्थिक समृद्धि का ऐसा संगम रचा है, जिसे अब अनदेखा करना संभव नहीं। विरोधियों के तमाम दावों के बावजूद महाकुंभ ने साबित कर दिया है कि यह आयोजन केवल धार्मिक नहीं, बल्कि लाखों लोगों के जीवन में आर्थिक बदलाव लाने वाला उत्सव है।

मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि इस महाकुंभ में अब तक(22 जनवरी 2025) 59 करोड़ से अधिक श्रद्धालु आस्था की डुबकी लगा चुके हैं। कल्पना कीजिए, इतनी बड़ी भीड़ का आना कितने लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार देता है। ठेलेवाले, दुकानदार, होटल व्यवसायी, परिवहन सेवा देने वाले और छोटे-बड़े व्यापारियों के लिए यह आयोजन किसी वरदान से कम नहीं है। अनुमान है कि इस महाकुंभ में 4 लाख करोड़ रुपये से अधिक का व्यापार होगा, जिससे भारत की नाममात्र और वास्तविक GDP दोनों में 1% से अधिक की वृद्धि की उम्मीद है। क्या अब भी कोई इसे धन की बर्बादी कहेगा? या फिर तथाकथित सेक्युलरिज्म के चोले में छिपे आलोचक अब आंखें खोलेंगे और इस आर्थिक चमत्कार को स्वीकार करेंगे?

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सलाहकार अवनीश अवस्थी ने बताया कि सरकार ने इस आयोजन में करीब 16,000 करोड़ रुपये का निवेश किया है। इसके बदले सिर्फ GST से ही 50,000 करोड़ रुपये की कमाई की उम्मीद है, जबकि आयकर और अन्य अप्रत्यक्ष करों को मिलाकर कुल राजस्व 1 लाख करोड़ रुपये से भी अधिक हो सकता है। सोचिए, जो आयोजन लाखों लोगों के जीवन में समृद्धि लाए और सरकार के खजाने को भर दे, उसे राजस्व की बर्बादी कैसे कहा जा सकता है? शायद इसी सच्चाई ने लिबरल गैंग की जुबान बंद कर दी है।

हिंदू आस्था पर दोहरे मापदंड क्यों?

ये वही लिबरल गैंग है, जिसके लिए अगर भारत के प्रधानमंत्री राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होते हैं, तो वो इनके कथित सेक्युलरिज्म पर हमला बन जाता है। इतना ही नहीं, जब देश के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ के आवास पर आयोजित गणपति पूजा समारोह में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहुंचे, तब भी इनकी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता को चोट पहुंच गई। सच तो यह है कि हिंदू आस्था और परंपराओं का सम्मान करना इनकी सोच के दायरे में आता ही नहीं है। लेकिन अब, जब अमेरिका जैसे सुपरपावर के FBI चीफ ने भगवद गीता पर हाथ रखकर शपथ ली है, तो शायद इन्हें समझ आ जाए कि आस्था का सम्मान न केवल व्यक्तिगत बल्कि वैश्विक स्तर पर भी स्वाभाविक और स्वीकार्य है।

 

 

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