तमिलनाडु के कोयंबटूर स्थित सद्गुरु जग्गी वासुदेव की संस्था ईशा फाउंडेशन एक बार फिर महाशिवरात्रि के अवसर पर सुर्खियों में है। मगर इस बार वजह उनका भव्य उत्सव नहीं, बल्कि इसे रोकने की कोशिश है। दरअसल, एक याचिकाकर्ता ने मद्रास हाईकोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर कर अधिकारियों से 26 और 27 फरवरी को आयोजित महाशिवरात्रि कार्यक्रम की अनुमति न देने की मांग की थी। तर्क वही पुराना—ध्वनि प्रदूषण का हवाला, वही दलील जो अक्सर हिंदू त्योहारों के समय ही दी जाती है। हालाँकि, सोमवार को मद्रास हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज करते हुए ईशा फाउंडेशन को अपने महाशिवरात्रि उत्सव के आयोजन की अनुमति दे दी।
लेकिन सवाल सिर्फ यही नहीं है। सोचिए, जैसे ही कोई हिंदू पर्व नजदीक आता है, तथाकथित ‘आंदोलनजीवी’ और ‘पर्यावरण रक्षक’ अचानक सक्रिय हो जाते हैं। सोशल मीडिया और यूट्यूब पर सालभर चुप रहने वाले ये लोग अचानक हिंदू आयोजनों पर सवाल उठाने लगते हैं। उदाहरण के लिए, महाशिवरात्रि से ठीक पहले ईशा फाउंडेशन के खिलाफ PIL दायर की जाती है और यही नहीं सोमवार को इस याचिका के ख़ारिज होने वाले दिन ही यूट्यूबर श्याम मीरा सिंह जैसे लोग वीडियो जारी कर ईशा फाउंडेशन के गुरुओं पर यौन शोषण के आरोप लगाने लगते हैं। सवाल ये है—क्या यह सब महज संयोग है या इसके पीछे कोई खास मंशा छिपी है?
मद्रास हाईकोर्ट ने खारिज की याचिका
हर साल की तरह इस बार भी ईशा फाउंडेशन महाशिवरात्रि के पावन अवसर पर भव्य आयोजन करने जा रहा है। मीडिया सूत्रों के अनुसार, इस बार केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी इस आयोजन में शिरकत करने वाले हैं। शायद यही कारण है कि सद्गुरु के आश्रम के बहाने अब पूरे हिंदू धर्म और उसकी सांस्कृतिक परंपराओं को निशाना बनाते हुए अप्रत्यक्ष रूप से भारतीय जनता पार्टी (BJP) को संदेश देने की कोशिश की जा रही है।
दरअसल, महाशिवरात्रि के इस आयोजन को रोकने के इरादे से एक याचिकाकर्ता एस.टी. शिवगनन ने मद्रास हाईकोर्ट में जनहित याचिका (PIL) दायर कर अधिकारियों को 26 और 27 फरवरी को होने वाले कार्यक्रम के लिए अनुमति देने से रोकने की मांग की थी। अपनी याचिका में उन्होंने ईशा फाउंडेशन की सीवेज उपचार क्षमताओं, अनुपचारित सीवेज के निर्वहन और पिछले साल के उत्सव के दौरान कथित ध्वनि प्रदूषण का हवाला दिया—वही पर्यावरण का बहाना जो प्रायः हिंदू त्योहारों के विरोध में ही सुनाई देता है।
हालांकि, अदालत के पहले के निर्देशों के तहत तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (TNPCB) ने ईशा फाउंडेशन का निरीक्षण कर पर्यावरण नियमों के अनुपालन की जांच की। बोर्ड के सदस्य सचिव आर. कन्नन द्वारा प्रस्तुत जवाबी हलफनामे में स्पष्ट किया गया कि फाउंडेशन के पास कार्यक्रम के दौरान उत्पन्न कचरे के प्रबंधन के लिए पर्याप्त सीवेज उपचार सुविधाएं उपलब्ध हैं। उन्होंने यह भी पुष्टि की कि आयोजन स्थल पर ध्वनि का स्तर कानूनी सीमाओं के भीतर है और वायु, जल या ध्वनि प्रदूषण को लेकर जनता द्वारा कोई शिकायत दर्ज नहीं की गई थी।
न्यायमूर्ति एस.एम. सुब्रमण्यम और न्यायमूर्ति के. राजशेखर की खंडपीठ ने इन निष्कर्षों पर गौर करते हुए याचिका को खारिज कर दिया। इस फैसले के साथ ईशा फाउंडेशन को अपने नियोजित महाशिवरात्रि उत्सव के आयोजन की अनुमति मिल गई है।
श्याम मीरा सिंह की वीडियो की टाइमिंग: महज संयोग या साजिश?
अब ज़रा सोचिए, एक तरफ सोमवार को मद्रास हाईकोर्ट ने महाशिवरात्रि के आयोजन को रोकने वाली याचिका खारिज कर दी, और उसी दिन, श्याम मीरा सिंह नामक एक यूट्यूबर ने ईशा फाउंडेशन के खिलाफ वीडियो जारी किया, जिसमें सद्गुरु और संस्था के अन्य गुरुओं पर पॉक्सो एक्ट के तहत यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए। इन आरोपों में कितनी सच्चाई है, यह तो कानून और न्यायपालिका ही तय करेगी लेकिन याद दिला दें कि यह वही श्याम मीरा सिंह हैं जिनपर पहले भी फेक न्यूज फैलाने के आरोप लगे हैं।
जनवरी 2024 की बात करें तो दिल्ली हाईकोर्ट ने श्याम मीरा सिंह को डेरा सच्चा सौदा प्रमुख राम रहीम सिंह पर बनाए गए उनके वीडियो को सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से हटाने का निर्देश दिया था। न्यायमूर्ति जसमीत सिंह ने कहा था कि वीडियो प्रथम दृष्टया वादी (गुरमीत राम रहीम सिंह) के प्रति मानहानिकारक प्रतीत होता है और आरोपों के स्रोतों के बारे में कोई अस्वीकरण नहीं दिया गया था। कोर्ट ने आदेश दिया कि वीडियो को 24 घंटे के भीतर हटाना होगा। यह मामला उदाहरण के तौर पर दिखाता है कि उनके खिलाफ फेक न्यूज के आरोप पहले भी लग चुके हैं। ऐसे में ईशा फाउंडेशन के खिलाफ जारी किए गए इस वीडियो की भी जांच होनी चाहिए। अगर आरोप सत्य पाए जाते हैं, तो कानून के अनुसार आरोपित को कड़ी सजा मिलनी चाहिए लेकिन अगर इन आरोपों में कोई सच्चाई नहीं मिलती तो ऐसे नफरत फैलाने वाले यूटुब्रों को भी कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
सवाल सिर्फ यहीं खत्म नहीं होते। याद कीजिए जब सैकड़ों पुलिसकर्मियों को ईशा फाउंडेशन पर छापेमारी के लिए भेजा गया था, मानो यह कोई आतंकी ट्रेनिंग सेंटर हो। बाद में सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप कर कार्रवाई रुकवानी पड़ी। वहीं, तमिलनाडु के डिप्टी सीएम खुले मंच से हिंदू धर्म को ‘डेंगू-मलेरिया’ बताकर इसे खत्म करने की बात कह चुके हैं। राज्य में हिंदी भाषा के बोर्ड्स भी हटाए जा रहे हैं। ऐसे में सवाल उठना लाज़मी है—क्या ईशा फाउंडेशन के कंधे पर बंदूक रखकर सीधे हिन्दू पर्व ‘महाशिवरात्रि’ को निशाना बनाया जा रहा है? या फिर यह द्रविड़ ध्रुवीकरण की राजनीति का एक हिस्सा है?