22 फरवरी की तारीख थी और सन था 1994, इस दिन भारत की संसद ने जम्मू-कश्मीर को लेकर सर्वसम्मति से एक ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया था। इस प्रस्ताव की मुख्य बात यही थी कि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग रहेगा, यह दशकों पुरानी भारत की नीति पर एक बार फिर संसद की मुहर थी। तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य और वर्तमान जम्मू-कश्मीर व लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों के जिन हिस्सों पर हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान और चीन ने कब्ज़ा किया हुआ है, यह उसे वापस लेने के संकल्प की भी पुनरावृति थी। इस प्रस्ताव से भारत ने पड़ोसियों को सख्त संदेश देते हुए यह स्पष्ट कर दिया था कि भारत अपने अधिकारों पर किसी भी परिस्थिति में समझौता नहीं करेगा।
भारत सरकार लगातार अपने इस रुख को दोहराती रही है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र की मौजूदा सरकार भी इस मुद्दे को लेकर लगातार मुखर रही है। मौजूदा एनडीए सरकार ने अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में ही जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को भी हटा दिया था, जिसे हटाना एक वक्त पर लगभग नामुमकिन जैसा माना जाता था। इसके बाद अटकलें थीं POK को भी वापस लेने की कवायद की जाएगी। हालांकि, यह सुनने में जितना आसान में असल में उतना भी मुश्किल भी है। यह सीधे तौर पर पाकिस्तान के साथ युद्ध करने जैसी स्थिति को निमंत्रण देना है और इसके लिए देश में ज़मीनी स्तर पर माहौल तैयार किए जाने की भी ज़रूरत है।
इसके लिए ज़मीनी स्तर पर माहौल तैयार करने का ज़िम्मा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने भी उठाया है। RSS से जुड़े संगठन, विचारक और चिंतक कई तरह के आयोजनों के ज़रिए ज़मीन पर जम्मू-कश्मीर को लेकर वर्तमान स्थिति और POK को वापस लेने से जुड़े संकल्पों की जानकारी दे रहे हैं। RSS और इसके सहयोगी संगठनों द्वारा देशभर में कई सेमिनार और सम्मेलनों के ज़रिए आम जनता, युवाओं, शिक्षाविदों और नीति-निर्माताओं को यह बताया जा रहा है कि POK ऐतिहासिक रूप से भारत का हिस्सा था और इसे भारत में वापस लाना राष्ट्रीय दायित्व है। जम्मू-कश्मीर पीपल्स फोरम और मीरपुर (POJK) बलिदान भवन समिति द्वारा 22 फरवरी 1994 के प्रस्ताव के पुनर्स्मरण के लिए 28 फरवरी को दिल्ली में ‘संकल्प दिवस’ का आयोजन किया जाएगा। ऐसे आयोजनों के ज़मीनी स्तर पर POK वापस लेने की रणनीति तैयार की जा रही है।
प्रस्ताव में क्या कहा गया था?
करीब 31 साल पहले पारित किए गए इस प्रस्ताव में पाकिस्तान पर आतंकवाद को बढ़ावा देने के आरोप लगाए गए थे। इसमें कहा गया था, “सदन पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर (POK) में स्थित शिविरों में आतंकवादियों को प्रशिक्षण देने, हथियारों और धन की आपूर्ति करने, जम्मू-कश्मीर में विदेशी भाड़े के सैनिकों सहित प्रशिक्षित आतंकवादियों की घुसपैठ में सहायता करने में पाकिस्तान की भूमिका पर गहरी चिंता व्यक्त करता है, जिसका घोषित उद्देश्य अव्यवस्था, असामंजस्य और तोड़फोड़ पैदा करना है।”
प्रस्ताव में कहा गया, “सदन इस बात पर पुनः जोर देता है कि पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षित आतंकवादी लोगों के विरुद्ध हत्या, लूट और अन्य जघन्य अपराधों में लिप्त हैं, उन्हें बंधक बना रहे हैं और आतंक का माहौल बना रहे हैं। पाकिस्तान द्वारा भारतीय राज्य जम्मू एवं कश्मीर में विध्वंसकारी एवं आतंकवादी गतिविधियों को लगातार समर्थन एवं प्रोत्साहन दिए जाने की कड़ी निंदा करता है।पाकिस्तान से आतंकवाद को अपना समर्थन तत्काल बंद करने का आह्वान करता है, जो शिमला समझौते एवं अंतर-राज्यीय आचरण के अंतर्राष्ट्रीय सहयोगी स्वीकृत मानदंडों का उल्लंघन है तथा दोनों देशों के बीच तनाव का मूल कारण है।”
संसद ने पाकिस्तान को लड़ाते हुए कहा गया, “पाकिस्तान द्वारा भारत के खिलाफ चलाए जा रहे झूठे प्रचार और बदनाम करने के अभियान को अस्वीकार्य और निंदनीय मानता है। पाकिस्तान से आ रहे उकसाने वाले बयानों पर गहरी चिंता व्यक्त करता है, जो माहौल को बिगाड़ते और लोगों की भावनाओं को भड़काते हैं। साथ ही, उन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की दुखद परिस्थितियों, मानवाधिकारों के उल्लंघन और लोकतांत्रिक स्वतंत्रता के हनन पर खेद और चिंता व्यक्त करता है, जो कि भारत के जम्मू-कश्मीर राज्य का हिस्सा हैं लेकिन पाकिस्तान के अवैध कब्जे में हैं।”
प्रस्ताव में कहा गया, “भारत की जनता की ओर से, दृढ़ता से घोषणा करता है कि-
अ) जम्मू-कश्मीर राज्य हमेशा से भारत का अभिन्न हिस्सा रहा है, है और रहेगा, और इसे देश से अलग करने के किसी भी प्रयास का सभी आवश्यक उपायों से विरोध किया जाएगा।
ब) भारत में अपनी एकता, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के खिलाफ किसी भी साजिश को मजबूती से नाकाम करने की इच्छाशक्ति और क्षमता है।
और मांग करता है कि-
स) पाकिस्तान को उन सभी क्षेत्रों को खाली करना होगा, जो उसने आक्रमण करके भारतीय राज्य जम्मू-कश्मीर के हिस्से के रूप में अवैध रूप से कब्जा कर रखे हैं।
और संकल्प लेता है कि-
द) भारत के आंतरिक मामलों में किसी भी तरह के हस्तक्षेप का पूरी दृढ़ता से जवाब दिया जाएगा।”
कई दशकों से RSS के एजेंडे में शामिल POK
POK लंबे वक्त से RSS के एजेंडे में शामिल रहा है, RSS की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा (ABPS) और अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल (ABKM) ने भी बार-बार POK के मुद्दा को उठाया है। 1960 में RSS के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल ने कहा था कि भारत सरकार ने पाकिस्तान-अधिकृत कश्मीर में मंगला डैम के निर्माण पर अपनी चुप्पी साधकर परोक्ष रूप से सहमति दे दी, जिससे यह प्रतीत होता है कि सरकार उस रणनीतिक क्षेत्र पर अपने दावे को छोड़ने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो चुकी है। इसके बाद 1963 में अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने कहा था कि भारत-पाकिस्तान वार्ता में कश्मीर का मूल मुद्दा पाकिस्तान द्वारा किए गए आक्रमण के परिणामस्वरूप कश्मीर के एक-तिहाई हिस्से को वापस पाने का होना चाहिए।
इसके बाद 1990, 1994, 1995 और 1997 में भी संघ के केंद्रीय स्तर द्वारा POK को वापस लेने या पाकिस्तान के अनधिकृत कब्ज़े को खाली करने की मांग उठाई गई है। हाल के वर्षों में भी संघ के प्रमुख मोहन भागवत समेत कई बड़े अधिकारियों द्वारा इस तरह की मांग की जाती रही हैं। 2012 में संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने RSS के वार्षिक प्रशिक्षण शिविर के समापन समारोह में नागपुर में कहा था कि पाकिस्तान के कब्ज़े वाला कश्मीर भारत का है और अब तक उस पर कब्ज़ा कर लिया जाना चाहिए था। भागवत ने 2016 में यह बात दोहराई और कहा कि भारत को जम्मू-कश्मीर के उन हिस्सों को वापस पाने के लिए प्रयास करना चाहिए जो पाकिस्तान और चीन के कब्ज़े में हैं। 2022 में RSS के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने कहा था कि पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर के लोग पाकिस्तान से आज़ादी के लिए भारत की ओर देख रहे हैं।
J&K और लद्दाख: किसका कितनी ज़मीन पर है कब्ज़ा?
2019 में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद जम्मू-कश्मीर राज्य को ‘जम्मू-कश्मीर और लद्दाख’ दो केंद्र शासित प्रदेशों में बांट दिया गया था। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेशों का कुल क्षेत्रफल लगभग 2,22,236 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से 78,114 वर्ग किलोमीटर पर पाक ने कब्ज़ा किया हुआ है और यह हिस्सा POK के अंतर्गत आता है। वहीं, लद्दाख में भारत की लगभग 37,555 वर्ग किलोमीटर ज़मीन पर चीन ने कब्जा किया हुआ है। इसके अलावा, 5180 वर्ग किलोमीटर जिस पर पाक का कब्ज़ा था उसे पाकिस्तान ने चीन को दे दिया है।
1947 में पाकिस्तान के गठन के बाद ही पाकिस्तान ने जम्मू और कश्मीर पर हमला कर दिया था और युद्ध विराम के समय उसने जम्मू-कश्मीर के पश्चिमी हिस्से पर कब्ज़ा कर लिया था। वहीं, चीन ने 1962 के युद्ध में लद्दाख की ज़मीन पर कब्ज़ा जमाया था। इसके अलावा, 1963 में पाकिस्तान और चीन के बीच एक समझौते के तहत पाकिस्तान ने शक्सगाम घाटी में अपने कब्जे वाले कश्मीर का 5,180 वर्ग किलोमीटर हिस्सा चीन को सौंप दिया।
J&K पर भारतीय कूटनीति
भारत का जम्मू-कश्मीर को लेकर रुख हमेशा स्पष्ट रहा है लेकिन अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान ने इसे विवादित क्षेत्र बताने की लगातार कोशिश की है। पाकिस्तान वैश्विक संस्थाओं और इस्लामी देशों के सहयोग से इसे एक राजनीतिक मुद्दा बनाकर अंतर्राष्ट्रीय समर्थन जुटाने का प्रयास करता रहा है। हालांकि, भारत ने हमेशा यह स्पष्ट किया है कि जम्मू-कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है और इसमें किसी तीसरे देश के हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।
1994 के संसदीय प्रस्ताव के बाद से भारत की कूटनीति लगातार इस दिशा में मजबूत हुई है, जिससे वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान की स्थिति कमज़ोर होती गई है। संयुक्त राष्ट्र सहित कई वैश्विक संगठनों में भारत ने पाकिस्तान द्वारा फैलाए जा रहे प्रचार और झूठी सूचनाओं का सटीक जवाब दिया है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर विदेश मंत्री एस जयशंकर तक देश और दुनिया में इसे लेकर मज़बूती से अपना पक्ष रखते आए हैं। खासकर हाल के वर्षों में, कई देशों ने पाकिस्तान के अधिकृत कश्मीर (POK) में हो रहे मानवाधिकार उल्लंघनों पर सवाल उठाए हैं, जिससे पाकिस्तान की स्थिति और कमज़ोर हुई है।
अनुच्छेद 370 हटने के बाद बदले हालात
2019 में केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 हटाने और जम्मू-कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद राज्य के हालात तेज़ी से बदलते नज़र आए हैं। जहां पहले अलगाववादी गुटों और आतंकवादी संगठनों का प्रभाव था, वहीं अब धीरे-धीरे शांति और विकास की ओर कदम बढ़ाए जा रहे हैं। निवेश बढ़ा है, पर्यटन ने नया उछाल लिया है और सरकार की ओर से बुनियादी ढांचे को मज़बूत करने के प्रयास किए जा रहे हैं। हालांकि, पाकिस्तान इस बदलाव को पचा नहीं पा रहा है और बार-बार आतंकवादियों की घुसपैठ करवाने की कोशिश कर रहा है। भारतीय सेना और सुरक्षाबलों ने इन प्रयासों को लगातार विफल किया है और भारत अपने संप्रभु क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर कोई समझौता करने को तैयार नहीं है।
POK को वापस लेने की रणनीति
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के लिए POK को वापस लेना अब केवल एक संकल्प नहीं बल्कि भारत की रणनीतिक योजना का हिस्सा भी बनता जा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में RSS में अलग-अलग स्तरों पर व्यापक चर्चा हुई है। POK को भारत में शामिल करवाना UCC, राम मंदिर, अनुच्छेद 370 हटाने के मुद्दों की तरह RSS के मुख्य एजेंडे का हिस्सा रहा है। संघ से जुड़े विचारक, लेखक, इतिहासकार और रणनीतिकार इस विषय पर सेमिनार, सम्मेलनों और विचार मंचों के ज़रिए जनता को जागरूक कर रहे हैं। केंद्र सरकार पर भी संघ और उससे जुड़े संगठनों का अप्रत्यक्ष प्रभाव रहता है और POK को लेकर संघ लगातार राजनीतिक नेतृत्व को संदेश दे रहा है। वहीं, संघ से जुड़े संगठन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी इस मुद्दे को प्रमुखता से उठा रहे हैं। POK में मानवाधिकारों के उल्लंघन को लेकर लगातार अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के सामने उसकी पोल खोली जा रही है और बताया जा रहा है कि क्यों POK को भारत में शामिल किया जाना ज़रूरी है।