महाकुंभ के पोस्टर-बैनर फाड़े, हरे झंडे सलामत… फिर भी लौटा ‘ह्यूमन चेन’ भूत, ग्राउंड से देखिए हमारी रिपोर्ट

फिर ये कौन लोग हैं, जो चुन-चुन कर महाकुंभ और हिन्दू देवी-देवताओं से जुड़े पोस्टर-बैनर फाड़ रहे हैं? क्या ये वही मानसिकता तो नहीं जिसने नालंदा विश्वविद्यालय में लाखों पुस्तकों वाली लाइब्रेरी को जला दिया था?

प्रयागराज महाकुंभ, पोस्टर फाड़े

प्रयागराज महाकुंभ में धार्मिक पोस्टर-बैनर फाड़े जा रहे, मुस्लिम बहुल इलाक़े में मोदी-योगी के पोस्टर-बैनर भी सुरक्षित नहीं

देश में जब भी कोई घटना सामने आती है, मीडिया का एक धड़ा ‘ह्यूमन चेन’ थ्योरी में लग जाती है। अब भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया भर में इस सिद्धांत को आजमाया जा रहा है। आइए, आपको समझाते हैं कि ये ‘ह्यूमन चेन’ थ्योरी क्या है, फिर हम ग्राउंड से आपको कुछ ऐसी फुटेज दिखाएँगे जो आपकी आँखें खोल देंगी। अगस्त 2020 में जब बेंगलुरु में सांप्रदायिक हिंसा हुई थी, तब ये ख़बर चलाई गई थी कि एक मंदिर को बचाने के लिए मुस्लिम युवकों ने ‘ह्यूमन चेन’ बनाई है।

इसी तरह, फरवरी 2020 में जब दिल्ली में हिन्दू विरोधी दंगे हुए तब भी ये ख़बर चलाई गई कि चाँदबाग स्थित मंदिर को मुस्लिम युवकों ने ‘ह्यूमन चेन’ बना कर बचाया। इसी तरह, जब अगस्त 2024 में बांग्लादेश में हिन्दुओं का नरसंहार हुआ, तब भी सोशल मीडिया पर तस्वीरें फैला कर कहा गया कि मुस्लिम ‘ह्यूमन चेन’ बना कर मंदिरों को बचा रहे हैं। हालाँकि, अगर इन ख़बरों को सच मान लें फिर भी इस दौरान ये नहीं बताया जाता कि आखिर किनलोगों से मंदिरों को बचाने के लिए ये ‘ह्यूमन चेन’ बनाई जाती है। एलियंस से? मंगल गृह या प्लूटो से उतरे प्राणियों से? अब बारी महाकुंभ की है।

प्रयागराज में भगदड़ और लाशों की राजनीति

हम सबको पता है कि मौनी अमावस्या के दिन 29 जनवरी, 2025 को रात डेढ़ बजे प्रयागराज में भगदड़ की वजह से मौतें हुईं। इसके बाद सोशल मीडिया में कई तरह की स्टोरीज चलने लगीं। जैसे, कहीं अब्दुल किसी महिला को CPR देकर बचाते हुए दिखने लगा, कहीं अहमद मुफ्त में बुजुर्गों को अपनी बाइक से छोड़ते हुए देखा गया तो कहीं सारे मस्जिदों-मदरसों ने अपने दरवाजे श्रद्धालुओं के लिए अपने दरवाजे खोल दिए। तो ये उस तरह के नैरेटिव हैं, जिन्हें प्रसारित किया गया। TFI की टीम ने ग्राउंड पर जाकर इसकी पड़ताल की।

महाकुंभ के रास्ते में हमें मिले फटे हुए पोस्टर-बैनर

प्रयागराज शहर में घुसने से ठीक पहले, फाफामऊ से 2 किलोमीटर पहले, हमने महाकुंभ से जुड़े कई पोस्टर-बैनर फ़टे हुए मिले। ये मुस्लिम बहुल इलाक़ा है जहाँ इन पोस्टरों-बैनरों को फाड़ डाला गया था। संगम वाले मार्ग की तरफ कई पोस्टर-बैनर फाड़ डाले गए थे।

मुस्लिम बहुल इलाक़े में महाकुंभ से जुड़े सारे पोस्टर-बैनर फाड़ दिए गए हैं। कौन हैं वो लोग जिन्हें हिन्दू धर्म और हमारे धार्मिक आयोजनों से दिक्कत है? क्या ये वही लोग तो नहीं जो ‘वन्दे भारत’ ट्रेनों पर पत्थरबाजी करते हैं? क्या ये वही लोग हैं जो रेल की पटरियों पर ईंट-पत्थर रख कर दुर्घटना की साजिश रचते हैं। क्या ये वही लोग तो नहीं जो मंदिरों को अपवित्र कर देने के लिए वहाँ मांस के टुकड़े फेंक देते हैं?

ये वो गिरोह है, जिसे महाकुंभ और शोभा यात्रा जैसे हिन्दू आयोजनों ही नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं के पोस्टर-बैनर भी फाड़ डाले। वैसे, अब आप कह रहे होंगे कि ये तो एक ऐसी ही घटना हो गई। इसके लिए आखिर कैसे मुस्लिमों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

दिक्कत हिन्दू आयोजनों और मोदी-योगी जैसे नेताओं ही नहीं, बल्कि भाजपा द्वारा चलाए जा रहे जन-कल्याणकारी कार्यक्रमों से भी है। इसीलिए, महाकुंभ के अलावा पीएम-सीएम और सरकारी योजनाओं के पोस्टर भी फाड़ डाले गए। आखिर ये कौन सी मानसिकता है? कहीं ये वही मानसिकता तो नहीं है जो पत्थरबाजी कर के सरकारी संपत्तियों को क्षतिग्रस्त करती है, जिससे करोड़ों का नुकसान होता है। हमें, एक-दो नहीं बल्कि कई ऐसे पोस्टर-बैनर मिले जिन्हें इसी तरीके से फाड़ा गया था। कौन लोग हैं इनके पीछे?

मोदी-योगी के पोस्टर-बैनर फाड़े, हरे झंडे को नुकसान नहीं

महाकुंभ और मोदी-योगी से जुड़े पोस्टर-बैनर तो फाड़ डाले गए थे लेकिन कुछ ऐसी चीजें थीं जो एकदम सुरक्षित थीं। आप जानना चाहते हैं वो क्या चीज थी? हरे रंग के इस्लामी झंडे। जी हाँ, हरे रंग के इस्लामी झंडे को किसी ने ज़रा सा भी छुआ तक नहीं था। बाकी आप समझदार हैं, समझ जाइए कि वो कौन लोग होते हैं जो हरे रंग के झंडे को छोड़ देते हैं और महाकुंभ के पोस्टरों को फाड़ डालते हैं।

ये वही गिरोह है जिसे यूपी पुलिस से भी दिक्कत है। आखिर ये वही यूपी पुलिस तो है जिसकी निगरानी में प्रशासन इनके अवैध कब्जों को बुलडोजर से ध्वस्त करते हैं। आखिर ये वही यूपी पुलिस है जो ‘लव जिहाद’ और इस्लामी धर्मांतरण जैसे अपराधों को लेकर कड़ा रुख अपनाती है। आखिर ये वही यूपी पुलिस है जिसके थानों में ये लोग तख्तियाँ लगा कर आत्मसमर्पण करते हुए दिखाई देते हैं।

साधु-संतों और देवी-देवताओं वाली पोस्टरों का भी बुरा हाल किया गया। एक जगह तो कैसे पूरी होर्डिंग को ही गायब कर दिया गया। पूरा पोस्टर-बैनर गायब हो गया, बच गईं तो सिर्फ लोहे की छड़ें।

क्या हिन्दू अपने ही आयोजनों का बैनर फाड़ रहे हैं? क्या हिन्दू अपने ही धार्मिक आयोजनों से नफरत करने लगे हैं? महाकुंभ में अब तक 35 करोड़ लोग स्नान कर चुके हैं, मतलब ऐसा तो बिलकुल नहीं है। फिर ये कौन लोग हैं, जो चुन-चुन कर महाकुंभ और हिन्दू देवी-देवताओं से जुड़े पोस्टर-बैनर फाड़ रहे हैं? क्या ये वही मानसिकता तो नहीं जिसने नालंदा विश्वविद्यालय में लाखों पुस्तकों वाली लाइब्रेरी को जला दिया था? कहीं ये वही मानसिकता तो नहीं जो हमारे मंदिरों को ध्वस्त कर उनके ऊपर मस्जिदें खड़ी करती थीं?

प्रयागराज महाकुंभ भगदड़ में साजिश के एंगल से जाँच शुरू

अब तो ये शक और भी पुख्ता हो जाता है, क्योंकि महाकुंभ भगदड़ मामले में भी STF ने साजिश वाले एंगल से जाँच शुरू कर दी है। प्रत्यक्षदर्शियों ने लाल झंडे लिए युवकों की बात की है, जो अफवाह फैला रहे थे। उन्होंने ऐसे युवकों के बारे में बताया है जो श्रद्धालुओं को लगातार पीछे से धक्का दे रहे थे। CCTV फुटेज में उनके चेहरों को चिह्नित कर उन्हें ढूँढने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। उस समय सक्रिय रहे कुछ मोबाइल फोन अचानक से बंद हो गए हैं। AI कैमरों से 120 संदिग्धों की पहचान हुई है। ये तो किसी से छिपा नहीं है न कि महाकुंभ को तबाह करने की धमकी खालिस्तानी आतंकी गुरपतवंत सिंह पन्नू ने दी थी? महाकुंभ में आतंकी अघोड़ी के रूप में घुस सकते हैं, सुरक्षा एजेंसियों को ये गुप्त सूचनाएँ भी मिली थीं। विभिन्न सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से असामाजिक तत्व धमकियाँ दे रहे थे।

इस वीडियो में देखें हमारी रिपोर्ट:

कुछ गिद्ध तो लगातार महाकुंभ में लाशों की राजनीति करना चाहते थे और उन्हें मौका भी मिल गया है। किसी ने गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम को शौचालय का पानी बताया तो किसी ने कहा कि पापी लोग महाकुंभ में जा रहे हैं। महाकुंभ का प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से विरोध किया जा रहा था। ख़ैर, सभी चीजें अब तो जाँच में सामने आएँगी। लेकिन, फ़िलहाल इतना जान लीजिए कि महाकुंभ अभी भी 23 दिन बचा हुआ है और कई शैतानी ताक़तें अब भी ताक में हैं।

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