नई दिल्ली: फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को उत्तर बिहार के देवघर में भगवान भोलेनाथ के साथ जमकर होली खेली जाती है। मुजफ्फरपुर में गरीबनाथ महादेव को भक्त अबीर और गुलाल लगाकर रंगोत्सव मनाते हैं। इस पूरे उत्सव की शुरुआत महादेव और मां पार्वती के विवाह यानी महाशिवरात्रि से ही हो जाती है। इसके बाद मंदिर में आने वाले श्रद्धालु भगवान शिव शंकर को रंग लगाकर होली मनाते हैं। ऐसा माना जाता है कि देश भर में सबसे पहली होली इसी मंदिर में खेली जाती है।
महाशिवरात्रि से शुरू होने वाले इस रंगोत्सव में फाल्गुन शुक्ल शुक्ल पर परंपरा के अनुसार बाबा गरीबनाथ का रंग, अबीर तथा भस्म से महाश्रृंगार किया जाता है। इस महाश्रृंगार से पहले महादेव का दूध, दही, घी, शहद तथा शक्कर से अभिषेक कर पूजन-आरती की जाती है। इसके बाद रंग-बिरंगे फूलों से बाबा का महाश्रृंगार कर रंग-अबीर तथा भस्म से होली खेली जाती है।
विवाह के बाद महादेव खेलते हैं होली
इस दौरान हजारों की संख्या में होली खेलने आए श्रद्धालुओं के बीच पुआ का प्रसाद वितरण किया जाता है। ढोल, नगाड़ों के साथ भक्ति गीतों और पारंपरिक गीतों से पूरे मंदिर प्रांगण में भक्ति का माहौल सातवें आसमान पर होता है। बाबा गरीबनाथ दरबार में ‘होली खेले मसाने’ जैसे भक्तिगीत और जोगीरा गीतों से अजब सा रोमांच जगता है।
बिहार में होली की शुरुआत करते हैं बाबा गरीबनाथ
ऐसा माना जाता है कि बिहार में होली की शुरुआत बाबा गरीबनाथ के साथ होली खेलने से ही होती है। इसके बाद ही अन्य स्थानों पर होली खेली जाती है। मंदिर प्रशासन के अनुसार, वृंदावन की तर्ज पर इस वर्ष बाबा गरीबनाथ के साथ गेंदा, अपराजिता, रजनीगंधा और गुलाब के फूलों से होली खेली गई है। इससे पहले रंगभरी एकादशी पर भी बाबा गरीबनाथ के मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। इस दौरान महादेव के मंदिर प्रांगण और गर्भ गृह में मंदिर के पुजारियों और श्रद्धालुओं ने हाथ में गुलाल और कई तरह के फूलों से होली खेली थी।