चैंपियंस ट्रॉफी विजय के जश्न पर सांप्रदायिक हमला – इतनी संख्या में ईंट-पत्थर और आगजनी की सामग्री कहाँ से आई?

महू की घटना

चैंपियंस ट्रॉफी विजय के जश्न पर सांप्रदायिक हमला

चैंपियंस ट्रॉफी विजय के जश्न पर सांप्रदायिक हमला

मध्यप्रदेश के महू से आ रही सूचनाएं और वहां की तस्वीरें किसी को भी डराने के लिए पर्याप्त हैं। शहर में जली हुई दुकानें, जली हुई गाड़ियां, तोड़ी-फोड़ी गई दुकानें और बिखरी सामग्री दूर-दूर तक दिखाई दे रही हैं। पुलिस प्रशासन ने यद्यपि वहां शहर में शांति स्थापित करने के लिए काम शुरू किया है, काफी गिरफ्तारियां भी हुई हैं, लेकिन मूल बात यह है कि ऐसी स्थिति आई क्यों?

अभी हमने संभल में वहां के सीईओ अनुज चौधरी द्वारा जुम्मे की नमाज और होली को लेकर दिए गए बयान पर देश के इकोसिस्टम द्वारा पैदा किए गए नैरेटिव को सुना और देखा कि ये पुलिस वाले किस तरह से लोगों को धमकियां दे रहे हैं। ठीक इसके उलट, अनुज चौधरी ने अपने पूरे वक्तव्य में दोनों समुदायों से अपील की और कहा कि दोनों एक-दूसरे की भावनाओं का ध्यान रखें। उन्होंने यह भी कहा कि होली भी ईद की तरह ही एक त्योहार है, जिसमें आप सेवइयां खाते हैं, गले मिलते हैं, तो थोड़ा बड़ा हृदय दिखाएं और इसमें सहभागिता करें। अगर थोड़े बहुत रंग-गुलाल पड़ भी जाएं तो जाने दें, और अगर किसी को आपत्ति है, तो वे घरों में ही रहें यानी घर में ही नमाज पढ़ लें। इसको लेकर इतना बड़ा प्रपंच रच दिया गया और उन्हें गुंडा और न जाने क्या-क्या कहा जाने लगा।

महू की घटना

महू की घटना को देखिए—भारत ने चैंपियंस ट्रॉफी जीती, स्वाभाविक है कि जब भारत चैंपियंस ट्रॉफी जीतता है तो देश में खुशी का माहौल बनता है, लोग इसे उत्सव की तरह मनाते हैं, सड़कों पर निकलते हैं, जुलूस निकालते हैं, पटाखे छोड़ते हैं, मिठाइयां बांटते हैं। अब यह तार्किक है या अतार्किक, इस पर बहस हो सकती है, किंतु ऐसा होता है। आखिर इस प्रकार से उत्सव मनाने पर समस्या किसे पैदा हो गई?

जितनी घटनाएं सामने आ रही हैं, उसके अनुसार, जामा मस्जिद के पास से गुजरते ही उस पर पत्थरबाजी होने लगी, हमले हो गए, उसके आगे तक हमले हुए, और जितनी संख्या में पत्थर देखे जा रहे हैं, उससे पता चलता है कि तात्कालिकता में इतनी तैयारी नहीं हो सकती है। उसके बाद जिस तरह से आगजनी हुई, एक समुदाय की दुकानों को चुन-चुनकर जलाया गया, उनके वाहन नष्ट किए गए—वह भयावह था। पुलिस को शायद इस बात का इल्म भी नहीं था, क्योंकि यह कल्पना नहीं की जा सकती कि भारत अगर चैंपियंस ट्रॉफी में जीतेगा, तो इससे किसी को समस्या होगी। जुलूस में शामिल होने के बजाय उस पर हमले करना—यह तो ऐसा हो गया मानो कोई हमारे देश में देशद्रोह का काम कर रहा हो और भारत की जनता उस पर टूट पड़े हालांकि, यह भी कानून की दृष्टि से गलत है।

लेकिन यह तो भारत के पक्ष में नारा लगाने वालों पर हमला था, और उस हमले के बहाने जिस तरह से वहां और घटनाएं हुईं, वह बता रही हैं कि लंबे समय से वहां किसी न किसी हिंसा की तैयारी हो रही थी। हिंसा करने वालों को शायद यह उम्मीद नहीं रही होगी कि उन्हें क्रिकेट के दिन ही हिंसा करनी होगी, लेकिन उन्हें अवसर मिल गया। लेकिन क्या इस भय से कोई विजय उत्सव नहीं मनाएगा? कोई जुलूस नहीं निकालेगा? हम पिछले तीन-चार सालों से देख रहे हैं कि हिंदू धर्म की शोभायात्राओं और महत्वपूर्ण उत्सवों पर, महत्वपूर्ण तिथियों पर जगह-जगह हमले हुए हैं। उन हमलों के विश्लेषण बताते हैं कि वे तात्कालिक आवेश या गुस्से में आकर नहीं किए गए हैं, क्योंकि गुस्से में आकर उतनी संख्या में ईंट-पत्थर नहीं आ सकते, गोलियां नहीं चल सकतीं, बम नहीं फेंके जा सकते।

तो धीरे-धीरे अब इस देश को समझना चाहिए कि ये कौन लोग हैं, जो इस तरह पहले से ही हिंसा की तैयारी करके बैठे हैं कि केवल मौका मिले और हिंसा भड़क जाए। शायद ऐसे लोगों को प्रशिक्षित भी किया गया है, जो कुछ ही क्षणों में वाहनों को, दुकानों को और घरों को धू धू कर जलाने में निपुण हो चुके हैं। यह तैयारी कहाँ से हुई, कैसे हुई, और इसमें लोग कैसे निकले—इसकी जांच होगी। लेकिन अगर घटनाओं की अलग-अलग तरीके से जांच होती रहेगी, तो हम इसका एक राष्ट्रीय स्तर का निष्कर्ष नहीं निकाल सकेंगे। महू की घटना मध्यप्रदेश सरकार की जिम्मेदारी है, और उनका दायित्व है कि वह इसकी ठीक से छानबीन करे। जो भी दोषी हो, उसे सजा मिले, क्योंकि भाजपा की सरकार है, तो यह उम्मीद की जा सकती है कि दोषी बचेंगे नहीं।

मुख्यमंत्री मोहन यादव के सामने अपनी न्यायप्रियता साबित करने का अवसर है। साथ ही, कानून का डर भी स्थापित करना आवश्यक है। ऐसा नहीं हो सकता कि कोई समुदाय या वर्ग किसी कारण से इस तरह की अनावश्यक हिंसा करे। वहां के हिंदू समुदाय में गुस्सा है, लोग सड़कों पर उतर रहे हैं और दोषियों को सजा देने की मांग कर रहे हैं। यह बिल्कुल स्वाभाविक है। लोगों का यह कहना भी स्वीकार किया जा सकता है कि इस हिंसा की तैयारी पहले से की जा रही थी।

मध्यप्रदेश में 2003 से, बीच के एक वर्ष को छोड़कर, भाजपा की सरकार है। उस सरकार के अंतर्गत अगर इस तरह की तैयारी हो चुकी है, तो यह सामान्य बात नहीं है। इसलिए इसकी गहराई से जांच होनी चाहिए। जांच के साथ-साथ, अगर इसके तार दूसरे राज्यों से जुड़ते हैं, तो केंद्र सरकार को इसे गंभीरता से लेना चाहिए। यदि इसका विस्तारित स्वरूप दिखाई देता है, तो केंद्र सरकार इसे ANI को सौंपे और पूरे देश में ऐसे तत्वों को खोजकर निकालने और उन्हें सजा देने की कार्रवाई करे।

यह आवश्यक है ताकि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो सके। ऐसा नहीं हुआ तो भारत में स्वतंत्रता दिवस से लेकर गणतंत्र दिवस तक के जुलूस निकालना कठिन हो जाएगा। किसी संगठन को किसी मुस्लिम समुदाय के धर्मस्थल या उस मोहल्ले से जुलूस निकालना मुश्किल होगा। ऐसी स्थिति भारत में नहीं पैदा होनी चाहिए। भारत में 116 करोड़ से अधिक हिंदू और लगभग 22 करोड़ मुसलमान हैं। दोनों समुदायों को मिलकर रहना है। लेकिन अगर कुछ तत्व सौहार्द्र बिगाड़ने की साजिश कर रहे हैं, तो वहां सद्भावना संभव नहीं होगी। ऐसे तत्वों, उनकी सोच, उनके संसाधनों और इस तरह के लोगों को तैयार करने वालों पर प्रहार करना होगा।

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