वक्फ बिल के खिलाफ कट्टरपंथियों का प्रदर्शन, एक और ‘शाहीन बाग’ बनाने की साज़िश!

इस विरोध प्रदर्शन में मुस्लिम संगठनों ने रमजान का महीना होने के बावजूद अधिक से अधिक संख्या में मुस्लिमों को जंतर-मंतर पहुँचने के लिए कहा है

जंतर-मंतर पर वक्फ बिल के खिलाफ प्रदर्शन करते AIMPLB के सदस्य (फोटो: IANS)

जंतर-मंतर पर वक्फ बिल के खिलाफ प्रदर्शन करते AIMPLB के सदस्य (फोटो: IANS)

भाजपा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार द्वारा पिछले साल अगस्त में लाए गए वक्फ (संशोधन) विधेयक को बजट सत्र के दूसरे चरण में संसद में फिर से पेश किया जा सकता है। इसको देखते हुए देश भर के कट्टरपंथी मुस्लिमों के संगठनों ने दबाव की रणनीति बनानी शुरू कर दी है। CAA और NRC के विरोध से उत्साहित इन संगठनों को लगता है कि उनके दबाव में सरकार झुक जाएगी और ‘असंवैधानिक’ वक्फ कानून में संशोधन नहीं करेगी। दरअसल, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) से लेकर जमियत उलेमा-ए-हिंद (JUeH) सहित तमाम मुस्लिम संगठनों ने 17 मार्च को दिल्ली के जंतर-मंतर पर विरोध प्रदर्शन किया है। AIMPLB ने इसके लिए एक पोस्टर भी बनवाया है। संगठन का कहना है कि वक्फ संशोधन विधेयक मुस्लिम समुदाय पर सीधा हमला है। यह भाजपा की राजनीति सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और ‘फूट डालो और राज करो’ की रणनीति पर आधारित है।

AIMPLB कहा है, “हम भारतीय मुसलमानों को अहसास है कि वक्फ संशोधन बिल अवकाफ को हड़पने की एक सोची-समझी साजिश है। इसे किसी भी रूप में स्वीकार नहीं किया जाएगा। मिल्लत-ए-इस्लामिया वक्फ संशोधन बिल को खारिज करता है।” AIMPLB के अध्यक्ष खालिद सैफुल्लाह रहमानी का एक रिकॉर्डेड मैसेज व्हाट्सएप, फेसबुक और अन्य सोशल मीडिया पर प्रसारित किया जा रहा है। इसमें रहमानी ने दीन (मजहब) का हवाला देते हुए मुस्लिमों से कह रहे हैं- “जाग जाओ! घरों से निकलो! अगर वक्फ बिल पास हो गया तो कहीं के नहीं रहोगे। तुम्हारी संपत्तियों पर सरकार कब्जा कर लेगी। ये सब रोकना है तो एकजुट हो जाओ और दिल्ली पहुँचकर सरकार को अपनी ताकत दिखाओ।” AIMPLB के उपाध्यक्ष उबैदुल्ला खान आजमी ने शाहबानो केस का हवाला देते हुए कहा कि मुसलमानों ने एक होकर शाहबानो केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ प्रदर्शन किया था। इसके बाद तत्कालीन राजीव गाँधी सरकार को झुकना पड़ा था। उन्होंने कहा कि अब हालात उससे भी ज्यादा खतरनाक हैं।

वहीं, जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने भी इस बिल के विरोध में एक लिखित बयान जारी किया है। अपने बयान के माध्यम से उन्होंने मुस्लिमों को भड़काने की कोशिश की है। अपने बयान में मदनी ने कहा कि मुसलमानों को अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतरने के लिए मजबूर किया जा रहा है। पिछले 12 सालों से मुस्लिम संयम का परिचय दे रहे हैं, लेकिन अब वक्फ संपत्तियों के संबंध में मुसलमानों की आपत्तियों को नजरअंदाज कर जबरन असंवैधानिक कानून लाया जा रहा है। संविधान को नकारते हुए मदनी ने कहा कि मुस्लिम ऐसा कोई कानून स्वीकार नहीं करेंगे, जो शरीयत के खिलाफ हो। उन्होंने उकसाते हुए कहा कि मुसलमान हर चीज से समझौता कर सकता है, लेकिन अपनी शरीयत से नहीं। वक्फ वेलफेयर फोरम के चेयरमैन जावेद अहमद का कहना है कि वक्फ संशोधन बिल मुस्लिम के लिए करो या मरो जैसे स्थिति है। उनका कहना है कि CAA-NRC के खिलाफ सड़क पर मुस्लिम समाज द्वारा किए गए प्रदर्शन से ही सरकार बैकफुट पर जा सकती है

दरअसल, यह विरोध प्रदर्शन 13 मार्च को बुलाया गया था लेकिन होली की छुट्टियों की वजह से इसे 17 मार्च को कर दिया गया। इस विरोध प्रदर्शन में मुस्लिम संगठनों ने रमजान का महीना होने के बावजूद अधिक से अधिक संख्या में मुस्लिमों को जंतर-मंतर पहुँचने के लिए कहा है। CAA-NRC के विरोध में जिस तरह शाहीन बाग में महीनों तक सड़कों को जाम करके दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के लोगों को परेशान किया गया था, उसी तरह की कोशिश इस बार फिर की जा रही है। इस विरोध प्रदर्शन में दिल्ली-एनसीआर और मेवात के मुस्लिमों से बड़ी संख्या में हिस्सा लेने के लिए अपील की गई है। इसको लेकर खुफिया एजेंसियाँ सतर्क हो गई हैं, क्योंकि रमजान में हिंसा का इतिहास रहा है।

विश्व में भारत के बढ़ते कद को देखकर एक बार भारत विरोधी एजेंसियाँ सक्रिय हो गई हैं। वे CAA-NRC के बहाने भारत को वक्फ संशोधन विधेयक के नाम पर भारत में हिंसा को बढ़ाने की कोशिश कर रही हैं, ताकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को दुनिया भर में बदनाम किया जा सके। Deep State इसमें सक्रिय हो गई हैं। नागरिकता संशोधन के दौरान आम मुस्लिमों में यह धारणा फैलाई गई थी कि भारत सरकार सीएए और एनआरसी के जरिए उनकी नागरिकता छीन लेगी। जानकारी के अभाव में इससे आम मुस्लिम परेशान हो गए थे और अपने मुस्लिम संगठनों के फैलाए झूठ के जाल में फँस गए थे। इस तरह की अफवाह वक्फ संशोधन बिल को लेकर फैलाई जा रही है। AIMIM के प्रमुख और तेलंगाना के हैदाराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी का कहना है कि यह बिल इसलिए लाया जा रहा है ताकि मुसलमानों से उनकी मस्जिदें और संपत्ति छीन ली जाए। इस बिल के जरिए सरकार मुसलमानों की जमीन और उनकी संपत्ति हड़प लेगी।

इस तरह की अफवाह उड़ाकर शाहीन बाग जैसी स्थिति एक बार फिर पैदा करने की कोशिश की जा रही है। इसमें मुस्लिम संगठनों से लेकर मुस्लिम धर्मगुरु और राजनेता तक शामिल हैं। इतना ही नहीं, मुस्लिम देशों द्वारा कई सोशल मीडिया हैंडल इस अफवाह को लगातार हवा देकर मुस्लिमों को भड़का रहे हैं, ताकि वे विरोध में सड़क पर उतर कर एक बार फिर राष्ट्रीय राजधानी को अराजकता की आग में झोंक सकें। सोशल मीडिया पर वक्फ संशोधन बिल पर अफवाह फैलाने वालों में विदेशों में स्थित कट्टरपंथी मुस्लिम नेता, कट्टरपंथी मुस्लिम संगठन और नाम बदलकर मुस्लिम आतंकी संगठन भी सक्रिय हैं। इन सबको को देखकर लगता है कि ये विरोध सच्चाई से बहुत दूर और भारत में भाजपा सरकार को अस्थिर करने के लिए विदेशी फंडेड एनजीओ लगातार काम कर रहे हैं। अमेरिका के खरबपति जॉर्ज सोरोस का आगे चलकर इसमें नाम आ जाए तो आश्चर्य नहीं होगा, क्योंकि भारत विरोधी रवैयों को हवा देने के लिए सोरोस ने लाखों डॉलर खर्च किए हैं और संभवत: इसके लिए वे आगे भी तैयार हैं। इसके अलावा, ऐसे कई एनजीओ भी हो सकते हैं जिन्हें पाकिस्तान एवं खाड़ी देशों के कट्टरपंथी संगठनों द्वारा वित्त पोषित किया जा रहा होगा।

इस बात का अंदेशा इसलिए भी है, क्योंकि शाहीन बाग में ऐसा ही देखने को मिला था। शाहीन बाग में खालिस्तानी तत्व से लेकर प्रतिबंधित मुस्लिम आतंकी संगठन पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) ने खूब बढ़-चढ़कर भाग लिया था। शाहीन बाग में 100 से अधिक दिन तक विरोध प्रदर्शन चला था, जिसमें लगातार भड़काऊ भाषण दिए गए थे और देश विरोधी नारे लगाए गए थे। इसमें शामिल होने के लिए लोगों को पैसे तक बाँटने की बात सामने आई थी। इतना ही नहीं, विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लेने वाले लोगों को रहने से लेकर खाने तक के लिए व्यवस्था की गई थी। वहाँ दिन-रात लंगर चलते थे। भड़काऊ भाषण दिए जाते थे। महिलाओं से लेकर बच्चों तक विरोध प्रदर्शन में फ्रंट पर रखा गया था, ताकि पुलिस-प्रशासन कोई कठोर कार्रवाई ना कर पाए। अगर कार्रवाई होती है तो उसे मुस्लिम उत्पीड़न के तौर पर देश-दुनिया में प्रचारित करने की नीति बनाई गई थी। हालाँकि, भाजपा की सरकार ने बेहद संयत तरीके से इस विरोध प्रदर्शन को संभाला और कोई कठोर कार्रवाई नहीं है। जब सरकार ने कोई कठोर कार्रवाई नहीं की तो देश विरोधी तत्वों ने भड़काऊ भाषण देकर लोगों को भड़काना शुरू कर दिया। इसका परिणाम साल 2020 के दिल्ली दंगों के रूप में सामने आया था। इस दंगों में कई लोगों की हत्या कर दी गई और अरबों रुपए की संपत्ति को नुकसान पहुँचाया गया। देश विरोधी तत्व वक्फ संशोधन बिल को एक बार फिर उसी अवसर के रूप में देख रहे हैं। हालाँकि, इस बार सरकार भी विशेष रूप से सतर्क है।

अब सवाल है कि जिस वक्फ संशोधन बिल को लेकर मुस्लिम सड़कों पर उतरने जा रहे हैं, उसमें ऐसा क्या है जो उन्हें पसंद नहीं है। यह एक अहम सवाल है। दरअसल, सरकार वक्फ (संशोधन) विधेयक 2024 के जरिए भारत भर में वक्फ संपत्तियों के विनियमन और प्रबंधन को बढ़ाना चाह रही है। इसके लिए साल 1995 के वक्फ अधिनियम में संशोधन करने के लिए वक्फ संशोधन बिल लेकर आई है। इसमें प्रावधान किया गया है कि वक्फ मामलों के प्रबंधन में गैर-मुस्लिमों को भी शामिल किया जाएगा। इसमें किसी संपत्ति को बिना दस्तावेज के बिना भी महजबी उद्देश्य के लिए वक्फ के रूप में नामित करने से रोका गया है। यानी जिस संपत्ति को वक्फ किया जा रहा है, उसके लिए वैध कागजात होने चाहिए। इसके अलावा, इसमें यह प्रावधान किया गया है कि अगर कोई व्यक्ति इस्लाम अपनाता है तो वह मुस्लिम बनने के पाँच साल से पहले वह किसी संपत्ति को वक्फ नहीं कर सकता।

विधेयक के अन्य प्रमुख प्रावधानों में सर्वे कमिश्नर की जगह कलेक्टर को लाया गया है। कलेक्टर को ही अब वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण करने का अधिकार होगा। इसके अतिरिक्त, इस बिल में कलेक्टर को वक्फ के रूप में पहचानी गई सरकारी संपत्ति के स्वामित्व को निर्धारित करने की शक्ति देता है। इसके अलावा, बिल में वक्फ ट्रिब्यून की असीमित शक्तियों पर भी अंकुश लगाया गया है। इसमें 90 दिनों के भीतर उसके आदेशों के खिलाफ हाई कोर्ट में अपील करने का प्रावधान किया गया है। अभी तक यह अधिकार नहीं है। अगर यह बिल कानून बन जाता है तो ट्रिब्यूनल के पैनल में सिर्फ मुस्लिम ही शामिल नहीं रहेंगे। इसके साथ ही बिल में अलग-अलग मुस्लिम तबकों, जैसे कि अघाखानी और बोहरा समुदायों के लिए अलग-अलग वक्फ बोर्ड स्थापित करने की बात कही गई है। दरअसल, ट्रिब्यूनल और सर्वे कमिश्नर की असीमित शक्तियों का लगातार दुरुपयोग हो रहा है कि बड़े-बड़े सरकारी जमीन से लेकर पूरे के पूरे गाँव तक को वक्फ की संपत्ति घोषित की जा रही है, जो पूरे देश के लिएक चिंता का विषय है।

इस पर अंकुश लगाने के लिए सरकार वक्फ संशोधन विधेयक लेकर आई, जिसका विरोध मुस्लिम संगठनों और मुस्लिम राजनेताओं ने किया। इसके बाद इसे संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास भेज दिया गया। 9 अगस्त 2024 को गठित जेपीसी में 31 सदस्य हैं। इनमें 21 लोकसभा से और 10 राज्यसभा के सांसद हैं। इन पर वक्फ विधेयक में संभावित संशोधनों पर रायशुमारी के साथ एक निष्कर्ष पर पहुंचने की जिम्मेदारी दी गई। इसके बाद जेपीसी ने इससे संबंधित विभिन्न मुस्लिम संगठनों, राजनेताओं, विशेषज्ञों एवं आम लोगों की राय ली। इतना ही नहीं, इस विषय पर जनता से भी राय माँगी गई। इसमें करीब सवा करोड़ फीडबैक मिले। राजनीतिक दल चौंक गए।

झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने इसमें विदेशी संस्थाओं और कट्टरपंथी संगठनों के संभावित प्रभाव की आशंका जताई थी। उन्होंने जेपीसी अध्यक्ष जगदंबिका पाल को पत्र लिखकर कहा कि सिर्फ भारत से इतनी बड़ी संख्या में फीडबैक नहीं आ सकता है। उन्होंने कहा कि कई फीडबैक की भाषा मिलती-जुलती है, जिससे साजिश की बू आ रही है। उन्होंने इसकी जाँच की भी माँग की। सिर्फ दुबे ही नहीं, संसदीय मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू ने भी इसको लेकर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि इतनी भारी संख्या में फीडबैक मिलना सामान्य नहीं नहीं है। उन्होंने कहा कि 1,000 फीडबैक को बहुत माना जाता था। हालाँकि, इतने भारी सुझावों के बीच JPC अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने NDA सांसद के 14 सुझावों को मंजूरी दे दी। बाकी को नकार दिया गया। अब इन्हीं संशोधनों के साथ बिल को संसद में पास करने को लेकर मुस्लिम संगठन विरोध कर रहे हैं।

इस सीरीज़ में हम आपको आगे बताएँगे कि वक्फ क्या होता है, कैसे काम करता है, इनके कौन-कौन से अधिकार हैं, इनका दुरुपयोग कैसे किया गया, किन-किन बड़ी संपत्तियों पर दावा किया गया और नए वक्फ संशोधन में प्रस्तावों को विस्तार से बताएँगे।

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