रेल अपहरण कांड: बलूचों का कब्जा खत्म हुआ या नहीं, अभी भी संदेह

पाकिस्तान ट्रेन हाईजैक बलूच लिबरेशन आर्मी

क्या है पाकिस्तान ट्रेन हाईजैक का सच?

पूरी दुनिया यह देखकर हतप्रभ है कि पाकिस्तान की ट्रेन को बलूच लिबरेशनआर्मी ने हाइजैक कर लिया और अभी भी उसका दावा है कि अपहरण कांड समाप्त नहीं हुआ। हमने हवाई अपहरण करने, बसों के अपहरण करने, गाड़ी सहित किसी को अपहरण करने की बातें सुनी थीं। लेकिन इतिहास में शायद ही कभी ऐसा हुआ हो कि किसी देश की पूरी की पूरी रेल अपहृत हो गई हो। जिस रेल का अपहरण हुआ है, उसमें पाकिस्तान सेना और वहां की पुलिस के लोग थे।

पाकिस्तान का अधिकृत बयान यह है कि वह अपहरण समाप्त हो चुका है। उन्होंने मरने वालों की भी एक संख्या दे दी है और बताया है कि वहाँ से सारे लोग छुड़ा लिए गए हैं और ट्रेन BLA के कब्जे से मुक्त हो चुकी है। लेकिन अब बलोच लिबरेशन आर्मी ने कहा है कि पाकिस्तान झूठ बोल रहा है। हमारी लड़ाई अब भी जारी है और हमने कई बंधकों को ट्रेन से निकाल कर दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया है।

BLA ने पाकिस्तान को चुनौती दे दी है कि अगर आप कह रहे हैं कि आपने ऑपरेशन पूरा कर लिया है और सारे लोगों को छुड़ा लिया गया है तो जिस जगह अपहरण हुआ है। वहाँ विदेशी पत्रकारों को आने की अनुमति दें ताकि वो वहाँ से समाचार पता कर सकें। अभी तक पाकिस्तान ने इसका कोई उत्तर दिया नहीं है तो अब इसमें सच क्या हो सकता है?

पाकिस्तान की सेना का कहना है कि BLA झूठा प्रचार कर रही है तो वहीं BLA ने कहा कि सभी 214 बंधकों को मार डाला है और उन्हें वे दूसरी जगह ले गए हैं।

हालांकि, पाकिस्तान की सेना कह रही है कि उसने सभी नागरिक और सैनिकों को बचा लिया है। अब इसमें सच क्या है वो कोई नहीं जानता है। पाकिस्तान की सेना के लोग, पाकिस्तान की मीडिया, पाकिस्तान की सरकार, वहाँ की अनेक राजनीतिक पार्टियां ये बता रही है कि बलूच लिबरेशन वाले कायर हैं। इन्होंने महिलाओं, बच्चों को हथियार बनाकर हम पर दबाव बढ़ाने की कोशिश की है। यह बच्चों, महिलाओं को भी नहीं छोड़ रहे हैं। इसके उत्तर में बलोच लिबरेशन आर्मी ने कहा है। जितने भी परिवार थे पहले ही हमने उनको छोड़ दिया है, बच्चों को, महिलाओं को पहले ही कहा कि आप निकल कर चले जाएं और यह सच भी है।

वहाँ से आए लोगों ने बताया कि ट्रेन के रूट पर धमाके हुए और उसके बाद हम लोग डर गए थे। डरने के बाद हम ट्रेन में सीट के नीचे छिपे थे और फिर वो (BLA) आए। लोगों के मुताबिक, BLA वालों ने कहा कि इसमें जितने भी परिवार वाले लोग हैं, वो सब आराम से बाहर निकलें और चले जाएं। हम लोगों के साथ कोई बदतमीजी भी नहीं की गई और हम लोग वहाँ से निकलकर आ गए।

हालांकि, सब भयभीत थे, डर रहे थे। जो कुछ लोग बता रहे हैं और पाकिस्तान की सरकार, पाकिस्तान की सेना और वहाँ की मीडिया बता रही है उन दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है। लोग बता रहे हैं कि हमारे साथ कुछ नहीं हुआ। स्पष्ट है कि बलोच लिबरेशन आर्मी, पाकिस्तानी सरकार और पाकिस्तानी सेना और गैर बलोची पुलिस से संघर्ष कर रही है और उनका संघर्ष स्वतंत्रता का है।

जैसे ही पाकिस्तान में चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) बनाने की घोषणा हुई और उसका नक्शा सामने आया। तब से बलूचिस्तान के लोगों ने विरोध करना शुरू कर दिया। उसमें बलूच लिबरेशन आर्मी जैसे हथियार बंद लोग भी शामिल हैं। इन लोगों ने चीन को भी चेतावनी दी है। ग्वादर बंदरगाह, जो चीन का एक प्रमुख प्रोजेक्ट है, पाकिस्तान को लगता है कि ये बंदरगाह हो बनने से हमारे यहाँ से समुद्र मार्ग से सामग्रियों का यातायात या व्यापार ज्यादा हो जाएगा।

एक बड़ा इन्फ्रास्ट्रक्चर होगा। बलूच लोग कह रहे हैं कि यह हमारी स्वायत्तता में, हमारी संस्कृति में हस्तक्षेप है। यहाँ से हमारे जो संसाधन हैं, खनिज पदार्थ हैं, उनको चीन खोद कर ले जाएगा। आप जानते हैं कि बलूचिस्तान खनिज के मामले में पाकिस्तान का सबसे महत्वपूर्ण प्रांत है, जहाँ अनेक प्रकार के खनिज पदार्थ मिलते हैं। यहाँ तक की सोना की खदान के बारे में भी पता चलता है। पता चलता है कि वहाँ कुछ सोने की भी खदान थी, तांबा है, तेल है अनेक प्राकृतिक चीज़ें हैं। वह इलाका ईरान से भी लगता है। वो पाकिस्तान के दक्षिण का यह भाग है, उसमें तेल भी है तो वहाँ के खनिज पदार्थों पर सबकी नज़र रही है।

बलूचिस्तान का अंग्रेजों से संघर्ष भी अलग प्रकार का रहा था। जब स्वतंत्रता मिलने लगी तो वहाँ के लोगों ने अलग बलूचिस्तान देश की बात की। और इसकी लड़ाई लड़ने के लिए बलूचों ने मोहम्मद अली जिन्ना को अपना वकील बनाया। जिन्ना ने कोर्ट में लड़ाई लड़ी कि बलूच को अलग देश मिलना चाहिए और वो कभी हमारा भाग नहीं रहा। जब तय हो गया कि बलूचिस्तान अलग देश बनेगा तो मुस्लिम लीग के साथ उसका समझौता हुआ।

जिस समय भारत आजाद हुआ था तो कलात में बलूचिस्तान का अपना झंडा था और इस्लामाबाद ने अपना झंडा बनाया था। इस्लामाबाद में बलूचिस्तान के दूतावास भी थे लेकिन मोहम्मद अली जिन्ना ने बाद में बलूचिस्तान को कब्जा कर पाकिस्तान का भाग बना लिया। बलूचों में इसके विरुद्ध विद्रोह शुरू से ही रहा है। वो मानते ही नहीं कि हम पाकिस्तानी हैं और उनके साथ दोयम दर्जे का वहाँ भेदभाव भी होता रहा है।

अपने यहाँ उन्होंने आर्मी का कोई बड़ा केंद्र नहीं बनने दिया, सैनिक अड्डे नहीं बनने दिए। वो परवेज मुशर्रफ़ का काल था। जब स्ट्रेटेजिकली उनको यह ज़रूरी लगा था, उनके समय वहाँ सैनिक अड्डे बने, उसका भी विरोध होना शुरू हुआ। मुशर्रफ़ तक के जान पर हमले हुए थे। पहले भारतीय आकाशवाणी से बलूच रेडियो, बलूच भाषा में चलता था, बीच में वो बंद हो गया था।

पाकिस्तान का आरोप रहा कि बलोचिस्तान के मूवमेंट को भारत हवा दे रहा है भारत का कभी प्रत्यक्ष उससे कोई लेना देना नहीं रहा रहा है। ये अलग बात है कि बलूचिस्तान के लोग हमेशा भारत से मदद मांगते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मेल पर, उनके सोशल मीडिया हैंडल पर, डाक से हजारों पत्र आते रहते हैं कि भारत को हमारा साथ देना चाहिए। हम पाकिस्तान के कब्जे से मुक्ति चाहते हैं।

प्रधानमंत्री मोदी ने 2016 में लाल किले से बोलते हुए इसकी चर्चा भी की थी कि बलोच के लोगों ने और हमको अपना माना है। ऐसा उन्होंने भाषण भी दिया था लेकिन भारत कभी हस्तक्षेप नहीं करता है। लेकिन पाकिस्तान के अंदर भय यह है कि जो कश्मीर उनके कब्जे में है उसमें गिलगित-बाल्टिस्तान है और बाल्टिस्तान में ज्यादा बलूच लोग हैं। पाकिस्तान को डर है कि अगर एक बार हुआ तो फिर ये भी हाथ से चला जाएगा।

पाकिस्तान जबरन उसको बनाए रखना चाहता है। चीन की भी दृष्टि थी कि वहाँ से खनिज पदार्थ और कच्चा माल ले लेंगे। बलूचो के अंदर राष्ट्रवाद का भाव लंबे समय से है। उसी ट्रेन का अपहरण करना जिसमें सैनिक हैं, जिसमें पुलिस है, इतने अस्त्र-शस्त्र हैं, उसका अपहरण करने की कल्पना तक नहीं की जा सकती है। लेकिन जो उन्होंने किया है उसे पता चलता है कि आज उनके पास ताकत है।

हालांकि, भारत कभी भी इस प्रकार की आतंकी गतिविधि के साथ खड़ा नहीं हो सकता है। भारत कभी भी ऐसी घटनाओं का समर्थन नहीं करेगा क्योंकि आतंकवाद में कोई किन्तु-परन्तु नहीं होता है। लेकिन पाकिस्तान जो आतंकवाद का जनक ही नहीं है बल्कि वो शायद अकेला देश था जो एक समय व्यापार की तरह पाकिस्तान से सीमा पार आतंकवाद का निर्यात भी करता था। दुनिया में एक समय जितनी बड़ी आतंकवादी घटनाएं होती थी, उसमें पाकिस्तान की भूमिका कहीं ना कहीं होती थी।

यह घटना निश्चित रूप से आज की परिभाषा में आतंकवाद की घटना है लेकिन अगर बलूचों पर पाकिस्तान का जबरन कब्जा है तो पाकिस्तान को सोचना पड़ेगा कि आप वाकई बलूच अलग है और पाकिस्तान के भाग नहीं रहे हैं। इतिहास बताता है कि नहीं रहा है, उसका अलग झंडा था, इस्लामाबाद में उसका दूतावास था और जबरन उस पर कब्जा किया गया है। कोई भी हथियार बंद संगठन किसी देश की सेना से नहीं लड़ सकता है।

आज नहीं तो कल जो कुछ वो कह रहे है उसकी सच्चाई सामने आएगी। ट्रेन भी छूटेगी और लोग भी छूटेंगे लेकिन इससे पता चलता है कि यह लड़ाई कितनी आगे बढ़ चुकी है। पाकिस्तान इस समय जिस अवस्था में है, उसमें उसका अब बलूचियों की भावनाओं को लगातार कुचलना आगे चलकर कठिन होगा। रेल अपहरण की घटना विश्व के इतिहास में भी ऐसे अध्याय के रूप में दर्ज होगी जो शायद किसी की कल्पना में नहीं रही होगी कि इस तरह का अपहरण भी हो सकता है। पाकिस्तान इस समय स्वयं जिस दुर्दशा का शिकार है, आर्थिक वित्तीय मोर्चे पर खस्ताहाली है, राजनीतिक लड़ाई दुश्मनी की लड़ाई में परिणित हो चुकी है। उसमें अगर एक ट्रेन छूट जाएगी तो दूसरी का अपहरण हो सकता है, तीसरी का अपहरण हो सकता है। इसलिए इसका अंत कहाँ होगा, यह कहना कठिन है?

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