हाथों में लहराते हथियार, ढके चेहरे…. औरंगजेब कब्र विवाद को लेकर नागपुर में ‘हजारों’ कट्टरपंथियों ने हिन्दुओं को बनाया निशाना

जानें कैसे और क्यों शुरू हुआ पूरा विवाद

औरंगजेब कब्र विवाद को लेकर धधक उठा नागपुर

औरंगजेब कब्र विवाद को लेकर धधक उठा नागपुर (Image Source: Dainik bhaskar)

अबू आज़मी का औरंगजेब जैसे क्रूर शासक का महिमामंडन करना सिर्फ एक बयान भर नहीं था, बल्कि कट्टरपंथी मानसिकता को भड़काने और समाज में ज़हर घोलने की साजिश थी। अब इसी जहरीली विचारधारा का परिणाम सोमवार रात नागपुर में देखने को मिल रहे हैं। जब हिंदू संगठनों ने औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग उठाई, तो इस्लामी कट्टरपंथियों ने इसे हिंसा में बदलने की सुनियोजित चाल चल दी।

नागपुर में विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने विरोध स्वरूप गोबर के कंडों से भरा एक हरे रंग का कपड़ा जलाया, जिसे औरंगजेब की प्रतीकात्मक कब्र माना गया। यह एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन था, लेकिन यह कट्टरपंथियों को सहन नहीं हुआ। वीडियो वायरल होते ही नागपुर के महाल इलाके में शाम 7:30 बजे हिंसा भड़क गई। देखते ही देखते एक उग्र भीड़ सड़कों पर उतरी और हिंदू घरों को निशाना बनाकर पथराव करने लगी। दर्जनों गाड़ियों में तोड़फोड़ कर उन्हें आग के हवाले कर दिया गया, दुकानों को लूटपाट के बाद जला दिया गया।

बीजेपी विधायक प्रवीण दटके और हिंसा के पीड़ितों ने इस हमले को पूर्व नियोजित बताया है। करीब 1000 से अधिक कट्टरपंथी, जिनके चेहरे ढके हुए थे, हथियारों से लैस होकर हिंदुओं की संपत्तियों को चुन-चुनकर निशाना बना रहे थे। घरों के दरवाजे तोड़ने की कोशिश की गई, तलवारों से धमकाया गया, और पूरे इलाके में अराजकता का माहौल बना दिया गया। चौंकाने वाली बात यह है कि इनमें से कई हमलावर बाहरी थे, यानी इन्हें हिंसा भड़काने के लिए बाहर से बुलाया गया था।

कट्टरपंथियों ने DCP पर कुल्हाड़ी से किया हमला

कट्टरपंथियों की नागपुर हिंसा केवल उपद्रव नहीं, बल्कि एक सुनियोजित हमला था, जिसमें पुलिस तक को निशाना बनाया गया। DCP निकेतन कदम पर कुल्हाड़ी से हमला किया गया, जिससे वे गंभीर रूप से घायल हो गए। भीड़ पूरी तरह बर्बरता पर उतारू थी—सड़कों पर पत्थरबाजी जारी रही, पुलिस पर हमला हुआ, और हालात इतने बिगड़ गए कि आंसू गैस के गोले छोड़ने पड़े। लेकिन हिंसा यहीं नहीं रुकी। रात 10:30 से 11:30 बजे के बीच ओल्ड भंडारा रोड के पास हंसपुरी इलाके में एक और झड़प हुई, जहां कट्टरपंथियों ने और भी उग्र रूप धारण कर लिया।

स्थिति की गंभीरता को भांपते हुए पुलिस कमिश्नर रविंद्र सिंघल ने गणेशपेठ, तहसील, लकड़गंज, पचपावली, शांतिनगर, सक्करदरा, नंदनवन, इमामवाड़ा, यशोधरानगर और कपिलनगर सहित 11 इलाकों में कर्फ्यू लगाने का आदेश दिया। महाराष्ट्र सरकार के मंत्री योगेश कदम ने मंगलवार को बताया कि अब तक 47 उपद्रवियों को हिरासत में लिया गया है। इस हिंसा में 12 से 14 पुलिसकर्मी घायल हुए हैं, जबकि कुछ नागरिकों को भी गंभीर चोटें आई हैं।

वहीं इस विवाद को लेकर डीसीपी नागपुर अर्चित चांडक ने कहा, ‘यह घटना कुछ गलतफहमी के कारण हुई. स्थिति अभी नियंत्रण में है। यहां हमारा बल मजबूत है. मैं सभी से अपील करता हूं कि वे बाहर न निकलें…या पत्थरबाजी न करें. दरअसल, सोमवार को नागपुर में हिंसा भड़ने की वजह दो अफवाहें थी। नागपुर में बजरंग दल और विश्‍व हिंदू परिषद के विरोध प्रदर्शन के बीच पहली अफवाह यह फैली कि एक धार्मिक ग्रंथ को नुकसान पहुंचाया गया है। वहीं, दूसरी अफवाह कुछ असामाजिक तत्‍वों द्वारा ये फैलाई गई कि पवित्र चादर को आग लगा दी गई है। हालांकि, कहीं कुछ ऐसा हुआ ही नहीं था इन अफवाहों से एक समुदाय विशेष के लोग भड़क गए और सड़कों पर उतर आए।

कट्टरपंथी ताकतों की यह हिंसा एक गहरी साजिश की ओर इशारा करती है—आखिर यह भीड़ अचानक कहां से आई? इनके पास हथियार कहां से आए? पुलिस पर इस तरह के हमले का दुस्साहस क्यों और कैसे हुआ? यह स्पष्ट है कि इस तरह की बर्बरता अब बर्दाश्त नहीं की जा सकती। अगर सरकार ने इन उन्मादी ताकतों पर कड़ी कार्रवाई नहीं की, तो यह कट्टरता और भी विकराल रूप धारण कर सकती है, जिसका खामियाजा पूरे देश को भुगतना पड़ेगा।

नागपुर हिंसा पर क्या बोले सीएम और डिप्टी सीएम

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नागपुर के महाल इलाके में भड़की हिंसा की कड़ी निंदा करते हुए इसे बेहद गंभीर और अस्वीकार्य स्थिति बताया। उन्होंने कहा, “जिस तरह से हालात तनावपूर्ण हुए, वह बेहद निंदनीय है। कुछ लोगों ने पुलिस पर भी पत्थरबाजी की, जो पूरी तरह गलत है। मैं हालात पर लगातार नजर बनाए हुए हूं और सभी से शांति बनाए रखने की अपील करता हूं। मैंने पुलिस कमिश्नर को निर्देश दिया है कि कानून-व्यवस्था बनाए रखने के लिए जो भी सख्त कदम जरूरी हों, उन्हें तुरंत उठाया जाए। अगर कोई दंगा करता है, पुलिस पर हमला करता है या समाज में तनाव फैलाने की कोशिश करता है, तो उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। नागपुर की शांति भंग न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए सभी को जिम्मेदारी से व्यवहार करना चाहिए। यदि कोई तनाव भड़काने की कोशिश करता है, तो उसके खिलाफ कठोरतम कार्रवाई होगी।”

महाराष्ट्र के डिप्टी मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने नागपुर में सोमवार को भड़की हिंसा को एक सोची-समझी साजिश करार दिया। उन्होंने कहा कि “यह हिंसा एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत भड़काई गई है। जो भी इसमें शामिल हैं, उन्हें किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा। उन पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी और कानून के तहत सख्त से सख्त सजा दी जाएगी।”

स्थानिए लोगों ने सुनाई आपबीती

नागपुर (मध्य) के बीजेपी विधायक प्रवीण दटके ने हालात का मुआयना करने के बाद कहा, “यह हिंसा अचानक नहीं भड़की, बल्कि सोची-समझी साजिश का नतीजा थी।” उन्होंने बताया कि “कल सुबह एक आंदोलन के बाद गणेश पेठ पुलिस स्टेशन में हल्की झड़प हुई थी, लेकिन मामला शांत हो गया था। मगर देर रात हालात बदल गए। भीड़ ने निशाना चुनकर केवल हिंदुओं के घरों और दुकानों पर हमला किया। मुस्लिमों की संपत्तियों को कोई नुकसान नहीं हुआ।”

दटके ने आगे कहा कि “हमलावरों ने पहले से पूरी तैयारी कर रखी थी। सबसे पहले इलाके के सीसीटीवी कैमरे तोड़े गए, ताकि उनकी पहचान न हो सके। इसके बाद वे हथियारों से लैस होकर सुनियोजित ढंग से हिंसा फैलाने पहुंचे।” उन्होंने प्रशासन पर भी सवाल उठाते हुए कहा कि “जब यह सब हो रहा था, तब स्थानीय पुलिस थाने के इंस्पेक्टर का फोन तक बंद था।”

उन्होंने मीडिया को टूटे और जले हुए सीसीटीवी कैमरे दिखाते हुए कहा, “हंसापुरी में आमतौर पर हिंदू और मुस्लिमों की गाड़ियाँ साथ में खड़ी होती हैं, लेकिन उस दिन यहाँ एक भी मुस्लिम की गाड़ी खड़ी नहीं थी और न ही उनकी संपत्ति को कोई नुकसान हुआ। अगर यह सुनियोजित नहीं था, तो फिर क्या था?”

हिंसा के प्रत्यक्षदर्शियों में से एक पीड़ित व्यक्ति ने बताया, “करीब 1000 लोगों की भीड़ रात 8:30 बजे अचानक इलाके में घुस आई और देखते ही देखते पत्थरबाजी शुरू कर दी। हमारी बिल्डिंग की तीसरी मंजिल पर बच्चे थे, वहाँ तक पत्थर फेंके गए। 25-30 गाड़ियों को तोड़फोड़ कर आग के हवाले कर दिया गया।”

एक स्थानीय महिला ने दहशत भरी आवाज़ में कहा, “भीड़ पूरी तैयारी के साथ आई थी। उनके चेहरे ढके हुए थे, हाथों में हथियार थे। वे उग्र नारेबाजी कर रहे थे, पत्थर बरसा रहे थे। दुकानों और घरों को निशाना बनाकर तोड़फोड़ की, गाड़ियाँ जलाईं। हमारे घर की खिड़कियाँ चकनाचूर हो गईं। यह हमला बाहर से आए लोगों ने किया था, यह साफ दिख रहा था।” हिंसा के बाद इलाके में डर और आक्रोश का माहौल है। हिंदू समुदाय इसे एक सोची-समझी साजिश मान रहा है और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग कर रहा है।

जानें कैसे और क्यों शुरू हुआ पूरा विवाद

यह विवाद अचानक भड़कने वाली घटना नहीं थी, बल्कि इसकी चिंगारी संभाजी महाराज पर बनी फिल्म ‘छावा’ के प्रदर्शन के बाद भड़की, जिसमें औरंगजेब की बर्बरता को दिखाया गया था। इस फिल्म के बाद पूरे उत्तर भारत में औरंगजेब को लेकर गहरी नाराजगी देखने को मिली। जहां एक तरफ हिंदू समाज उसके क्रूर शासन और अत्याचारों के खिलाफ आवाज उठा रहा था, वहीं कट्टरपंथी गुट उसे महिमामंडित करने में जुटे थे। इस विवाद को और हवा दी महाराष्ट्र के सपा विधायक अबू आजमी के बयान ने, जिन्होंने 3 मार्च को औरंगजेब को क्रूर शासक मानने से इनकार कर दिया।

आजमी ने अपने बयान में कहा, “हमें गलत इतिहास पढ़ाया जा रहा है। औरंगजेब ने कई मंदिर बनवाए थे, मैं उसे क्रूर शासक नहीं मानता। यह लड़ाई हिंदू-मुस्लिम की नहीं थी।” इसके अलावा, शिवाजी महाराज और संभाजी महाराज को लेकर भी उन्होंने आपत्तिजनक टिप्पणी की, जिससे हिंदू संगठनों में भारी आक्रोश फैल गया। जब विवाद गहराया, तो 4 मार्च को उन्होंने बयान वापस ले लिया, लेकिन तब तक हिंदू समाज में रोष अपने चरम पर पहुंच चुका था।

मामला महाराष्ट्र विधानसभा में गूंजा, जहां अबू आजमी को पूरे बजट सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उनके बयान की निंदा की, जबकि डिप्टी सीएम एकनाथ शिंदे ने उनके खिलाफ देशद्रोह का मुकदमा दर्ज करने की मांग उठाई। यह मामला सिर्फ महाराष्ट्र तक सीमित नहीं रहा, बल्कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी विधानसभा में अबू आजमी पर निशाना साधा। योगी ने तीखा बयान देते हुए कहा, “जो भारत की आस्था को ठेस पहुंचाता है, उसे सपा से बाहर निकाल देना चाहिए। अबू आजमी को यूपी बुलाइए, यहां ऐसे लोगों का सही इलाज होता है।”

इस विवाद के बाद छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज और भाजपा सांसद उदयनराजे भोंसले ने औरंगजेब की कब्र हटाने की मांग कर दी। उन्होंने कहा, “एक JCB भेजो और उस कब्र को गिरा दो, वह एक चोर और लुटेरा था।” मुख्यमंत्री फडणवीस ने भी इस मांग का समर्थन किया, लेकिन कानूनी प्रक्रिया का पालन करने की बात कही। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह जल्दबाजी में किया जाने वाला फैसला नहीं हो सकता, क्योंकि कब्र भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के संरक्षण में है।

तेलंगाना के भाजपा विधायक टी. राजा सिंह ने भी कब्र हटाने की मांग उठाई और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को पत्र लिखकर पूछा कि कब्र के रखरखाव पर कितना सरकारी पैसा खर्च हो रहा है। उन्होंने सवाल उठाया, “हमारी संस्कृति को कुचलने वाले की कब्र पर करदाताओं का पैसा क्यों खर्च किया जा रहा है?”

यह पूरा घटनाक्रम इस बात का संकेत है कि अब हिंदू समाज अपने इतिहास को विकृत करने वालों को बर्दाश्त करने को तैयार नहीं है। मामला सिर्फ औरंगजेब की कब्र का नहीं है, बल्कि राष्ट्र की अस्मिता और हिंदू गौरव की रक्षा का है। कट्टरपंथियों को यह समझना होगा कि भारत में हिंदू संस्कृति के अपमान का प्रतिकार होगा और यह राष्ट्र अब अपने गौरवशाली इतिहास की रक्षा के लिए अडिग खड़ा है।

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