रंगभरी एकादशी से काशी में हुई रंगोत्सव की शुरुआत, मसाने की होली खेलने पहुंचे लाखों लोग; देखें वीडियो

मसाने की होली को देखने और खेलने के लिए रूस, अमेरिका समेत 20 देशों से लोग काशी पहुंचे हैं

मसाने की होली खेलते संत (चित्र: सोशल मीडिया)

मसाने की होली खेलते संत (चित्र: सोशल मीडिया)

रंगभरी एकादशी के साथ ही सोमवार (10 मार्च) को काशी में रंगोत्सव की शुरुआत हो गई है। बरसाना और ब्रज में होली की शुरुआत बसंत पंचमी से हो जाती है तो वहीं रंगभरी एकादशी से काशी में होली खेली जाती है। इस मौके पर हरिश्चंद्र घाट पर चिता की राख से होली खेल गई और लाखों लोग इसमें शामिल हुए। भारी भीड़ के बीच लोग चिता की भस्म लगाते नज़र आए। मसाने की होली को देखने और खेलने के लिए रूस, अमेरिका समेत 20 देशों से लोग काशी पहुंचे हैं और इस दौरान विदेशी भी शरीर पर चिता की राख लगाकर होली खेलते नज़र आए। मसाने की होली से पहले बाबा कीनाराम स्थल रवींद्रपुरी से हरिश्चंद्र घाट तक शोभायात्रा निकाली गई। इस शोभायात्रा के दौरान काशी की सड़कों पर ऐसा नज़ारा था जैसे बाबा शिव के गण, भूत, प्रेत, पिशाच, गन्धर्व, किन्नर ,नाग सभी एकसाथ माता कराने के लिए जा रहे हों

रंगभरी एकादशी की पौराणिक कहानी?

फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को रंगभरी एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकमात्र ऐसी एकादशी है, जिसमें भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान शिव और माता पार्वती की भी पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह के बाद उनका गौना किया और पहली बार काशी पहुंचे थे। काशीवासियों ने उनका शानदार स्वागत किया और शिव-पार्वती पर रंग और गुलाल उड़ाकर खुशी व्यक्त की। इस दिन काशी में बाबा विश्वनाथ को दूल्हे के रूप में सजा कर उनका विशेष शृंगार किया जाता है, और गाजे-बाजे के साथ माता पार्वती के साथ उनका गौना किया जाता है। इस दिन से काशी में रंग खेलने की परंपरा शुरू होती है, जो होली तक जारी रहती है

क्या है आमलकी एकादशी की महिमा?

रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी भी कहा जाता है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान विष्णु ने आंवले को आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्ठित किया था। धार्मिक दृष्टि से यह माना जाता है कि आंवले के वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास होता है। रविवार, सप्तमी, सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण, संक्रांति, शुक्रवार, षष्ठी, प्रतिपदा, नवमी तिथि और अमावस्या के दिन आंवला का सेवन नहीं करना चाहिए। यह मान्यता है कि मृत्यु के समय अगर किसी व्यक्ति के मुख, नाक, कान या सिर के बालों में आंवला रखा जाए, तो मृतात्मा को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है

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