वो इंजीनियर जिसने देश हित में छोड़ दिया था घर, गरीबों की सेवा कर करोड़ों लोगों की प्रेरणा बनने वाले सीताराम अग्रवाल की कहानी

सीतराम अग्रवाल

जन्मतिथि विशेष: सीतराम अग्रवाल

सेवा के लिए संवेदना आवश्यक है। ऐसे ही एक संवेदनशील व्यक्ति थे विश्व हिन्दू परिषद के केंद्रीय सचिव तथा सेवा प्रमुख रहे सीताराम अग्रवाल, जिनका जन्म 16 मार्च, 1924 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के औरैया में भजनलाल एवं चंदा देवी के घर में हुआ था।

बचपन से ही राष्ट्रहित के विचारों से ओतप्रोत रहे सीताराम अग्रवाल महज 18 साल की उम्र में ही साल 1942 में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में कूद पड़े और अंग्रेजों की चूलें हिलाने में सक्रिय भूमिका निभाई। इसके ठीक एक साल बाद यानी साल 1943 में वह दीनदयाल उपाध्याय व नाना जी देशमुख से मिलने के बाद राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रभाव में आए और शाखा जाना शुरू कर दिया। कुछ वर्षों में ही वह संघ से ऐसे जुड़ गए जैसे उनका जन्म ही RSS की योजनाओं में शामिल होकर इस देश को आजाद कराने के लिए हुआ हो। वह लगातार अंग्रेजों के खिलाफ होने वाले आंदोलनों में शामिल होते रहे।

देश की स्वतंत्रता के तुरंत बाद ही उन्होंने अपना घर त्याग दिया और RSS के प्रचारक बन गए। उन्हें उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जाकर हिंदुओं को जागृत करने का काम दिया गया था। इस दौरान उनके माता-पिता विवाह के लिए दबाव डालने लगे तो उन्होंने अगले 2 वर्ष का इंतजार करने के लिए कहा और फिर पूरे मन से संघ कार्य में जुट गए। एक ओर जहां BSC करने तथा केमिकल इंजीनियरिंग की डिग्री लेने के बाद उनके घर वाले उन्हें नौकरी के लिए भी कह रहे थे। लेकिन वह सिर्फ संघ का ही काम करना चाहते थे, वह सुभाष चंद्र बोस और वीर विनायक दामोदर सावरकर (वीर सावरकर) से बहुत अधिक प्रभावित थे।

30 जनवरी, 1948 को मोहन दास करमचंद गांधी की हत्या के बाद जब कांग्रेस सरकार ने RSS पर प्रतिबंध लगाकर स्वयंसेवकों को जबरन जेल में डालना शुरू कर दिया तब सीताराम अग्रवाल भी 6 माह तक जेल में रहे। RSS से प्रतिबंध हटने के बाद RSS के सह सरकार्यवाह रहे भाउराव देवरस की आज्ञा पर अलीगढ़ में संघ का कार्य करते हुए उन्होंने रसायन शास्त्र में एम.एस.सी. की डिग्री हासिल कर ली। इसके बाद वे उत्तर प्रदेश के बदायूं में अध्यापक हो गये।

हालांकि वह अधिक दिनों तक अध्यापक की नौकरी नहीं करना चाहते थे, ऐसे में उन्हें साल 1957 में राजस्थान के कोटा में स्थित जे.के.रेयन फैक्ट्री में काम मिल गया। इसके बाद कई सालों तक वह राजस्थान में रहकर ही संघ कार्य करते रहे और हिंदुओं को एकजुट करते रहे। साल 1967 में वहां सीताराम अग्रवाल विश्व हिंदू परिषद का भी काम करने लगे।

पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने जब देश को आपातकाल की आग में झोंक दिया था तब सीताराम अग्रवाल राजस्थान में ही थे, ऐसे में उन्होंने कोटा की झुग्गियों में कई बाल संस्कार केन्द्र, एक विद्यालय, चिकित्सालय तथा हनुमान मंदिर स्थापित कराये। साल 1979 में प्रयागराज में आयोजित हुए ‘द्वितीय विश्व हिन्दू सम्मेलन’ में वे 70 प्रमुख लोगों के साथ आये। साल 1982-83 में फैक्ट्री में मजदूर आंदोलन के कारण उनकी नौकरी छूट गयी। तब तक उनके दोनों बेटे काम में लग गये थे अतः उन्होंने अपना पूरा समय विश्व हिंदू परिषद (VHP) के लिए देने का निश्चय किया।

साल 1983 में आयोजित हुई ‘एकात्मता यात्रा’ में कोटा की जिम्मेदारी उन्होंने सफलतापूर्वक निभाई। वहीं अशोक सिंघल ने उनसे सेवा कार्य संभालने को कहा, जिसे इन्होंने सहर्ष स्वीकार किया। इसके बाद उन्होंने महीने में 20 दिन तक प्रवास कर पूरे देश में सेवा कार्यों की एक विशाल शृंखला खड़ी की। वे पूर्वोत्तर भारत में सुदूर गांवों तक गये। सीताराम अग्रवाल का अब तक का जीवन बहुत सुविधापूर्ण रहा था; लेकिन सेवा कार्य करने का मन बनाने के बाद उन्होंने किसी से कभी भी कष्ट की चर्चा नहीं की।

सीताराम अग्रवाल जानते थे कि राष्ट्रहित में काम करने वाले संगठनों RSS और VHP को आने वाले समय में कार्यकर्ताओं की बहुत आवश्यकता होने वाली है। ऐसे में उन्होंने ना केवल सतत प्रयास कर नए कार्यकर्ता तैयार किए बल्कि उनके प्रशिक्षण के लिए शिविर भी लगाए और अलग-अलग न्यास तैयार उन्हें जिम्मेदारियां भी सौंपी।

साल 1992 में जब अमेरिका में हिंदू सम्मेलन आयोजित हुआ तब सीताराम अग्रवाल अमेरिका भी गए। उनकी देखरेख में ही 4200 स्थायी तथा 1500 अन्य सेवा कार्य प्रारम्भ हुए। यह उनकी दूरगामी सोच का ही परिणाम है।

छात्र जीवन में सब तरह के विद्यार्थियों से मित्रता होती है। उनके एक मित्र राणा प्रताप सिंह संघ के घोर विरोधी थे; लेकिन जब वह बीमार हुए तो सीताराम अग्रवाल ने उनकी भरपूर सेवा की। इसके चलते वह भी स्वयंसेवक बन गयेे और आगे चलकर उत्तर प्रदेश में सरस्वती शिशु मंदिर विद्यालय की स्थापना के केंद्र बिन्दु रहे।

साल 1996 में उन्हें हार्ट अटैक आया तो डॉक्टर ने उन्हें अधिक काम न करने और कम चलने फिरने की सलाह दी। इसके बाद वह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में स्थित VHP के केंद्रीय कार्यालय में रहकर ही काम करने लगे। सीताराम अग्रवाल अक्सर कहा करते थे कि परिवार चलाने के लिए उन्होंने 25 साल नौकरी की, लेकिन देश सेवा के लिए उन्होंने 26 साल दिए, इसका उन्हें बहुत अधिक संतोष है। वह आजीवन समाज हित, देश हित के कार्य में लगे रहे। काम करते हुए ही वह बहुत अधिक बीमार हो गए, इसके बाद उन्हें राजस्थान के कोटा में स्थित एक हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया, जहां  3 नवम्बर, 2009 को उन्होंने अंतिम सांस ली। इस तरह मां भारती की सेवा का प्रण लेकर काम करने वाले सीताराम अग्रवाल भारत मां की गोद में ही हमेशा के लिए सो गए।

उनके निधन पर श्रद्धांजलि देते हुए विहिप के तत्कालीन अध्यक्ष रहे अशोक सिंघल ने सीताराम अग्रवाल को सच्चा दीनबंधु, गरीबों और वंचितों का मित्र बताया था। उन्होंने कहा था, “उनका नारा था-“जगन्नाथ और विश्वनाथ की भूमि पर, कोई अनाथ नहीं रहना चाहिए। वे सच्चे दीनबंधु (गरीबों के मित्र) थे और हमारे सभी कार्यकर्ताओं के लिए एक आदर्श थे।”

 

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