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वक्फ बोर्ड विवाद: जब भगवान श्रीकृष्ण की राजधानी रही बेट द्वारका को वक्फ ने बताया था अपनी ज़मीन

गुजरात वक्फ बोर्ड ने सूरत नगर निगम के मुख्यालय वाली ऐतिहासिक बिल्डिंग पर भी अपना दावा ठोक दिया था।

khushbusingh1 द्वारा khushbusingh1
25 March 2025
in इतिहास
बेट द्वारका को बेयत द्वारका भी कहा जाता है और भगवान श्रीकृष्ण जिस समय गुजरात में शासन करते थे, उस समय यहाँ उनकी राजधानी थी

बेट द्वारका को बेयत द्वारका भी कहा जाता है और भगवान श्रीकृष्ण जिस समय गुजरात में शासन करते थे, उस समय यहाँ उनकी राजधानी थी

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संसद के चालू सत्र में वक्फ संशोधन बिल पेश किए जाने की उम्मीद है। हालाँकि, मुस्लिम नेताओं से लेकर मुस्लिम संगठनों तक इसका विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि इस विधेयक के जरिए सरकार मुस्लिमों के अधिकारों को हड़पने की कोशिश कर रही है। वहीं, जमीयत उलेमा ए हिंद से लेकर AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी तक अफवाह फैला रहे हैं कि सरकार इस विधेयक के जरिए मुस्लिमों के मस्जिदों से लेकर उनकी संपत्तियों पर कब्जा कर लेगी। इस तरह के दावे करके ये लोग मुस्लिमों को गलत जानकारी दे रहे हैं और अफवाह फैलाकर उन्हें भड़काने की कोशिश कर रहे हैं।

हमने अपने कई आलेखों में बताया कि इस तरह की अफवाह फैलाने के पीछे वास्तविक उद्देश्य क्या है। वहीं, वक्फ बोर्ड को पिछली कांग्रेस सरकारों ने इतना अधिकार दे दिया था कि ये समानांतर व्यवस्था चलाने लगे थे। वक्फ बोर्ड किसी भी जमीन को अपनी बताकर उस पर कब्जा कर लेता था और वक्फ कानून के तहत उसके इस दावों को कोर्ट में चुनौती तक नहीं दी जा सकती है। वक्फ बोर्ड के इन्हीं असीमित अधिकारों को कम करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में केंद्र सरकार ने वक्फ संशोधन विधेयक पास किया है, जिसे संसद के दोनों सदनों से पास कराया जाना बाकी है। हमने अपने पिछले आलेख में बताया था कि वक्फ ने अनियंत्रित शक्तियों के दुरुपयोग करते हुए तमिलनाडु और कर्नाटक में कई गाँवों, सरकारी इमारतों, किलों और मंदिरों को संपत्ति घोषित कर दी।

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आज हम इस आर्टिकल में गुजरात वक्फ बोर्ड की बात करेंगे। गुजरात वक्फ बोर्ड भी जमीन कब्जाने में तमिलनाडु या कर्नाटक वक्फ बोर्ड से पीछे नहीं है। इसने तो भगवान श्रीकृष्ण की नगरी के इलाके पर ही अपना दावा ठोक दिया। दरअसल, द्वारका में बेट द्वारका कुल 8 द्वीपों का एक समूह है। इन्हीं पर गुजरात सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपना दावा ठोकते हुए साल 2021 में गुजरात हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की थी। याचिका जैसे ही कोर्ट में जज के सामने आया तो वे बिफर पड़े। कोर्ट ने कहा, “क्या आप जानते हैं कि आप क्या कह रहे हैं? वक्फ बोर्ड कृष्णा नगरी में भूमि के स्वामित्व का दावा कैसे कर सकता है?।” इसके बाद याचिका खारिज कर दी थी।

बेट द्वारका को बेयत द्वारका भी कहा जाता है। भगवान श्रीकृष्ण जिस समय गुजरात में शासन करते थे, उस समय यहाँ उनकी राजधानी थी। बेट द्वारका हिंदुओं के पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। यहाँ पहुँचने में ओखा से नाव के जरिए करीब 30 मिनट का वक्त लगता है। इस छोटे से द्वीप में लगभग 7,000 परिवार रहते हैं, जिनमें से लगभग 6,000 परिवार मुस्लिम परिवार हैं। साल 2005 में यहाँ सिर्फ 6 मस्जिदें थीं, जो पिछले साल दिसंबर तक 100 के करीब हो चुकी थीं। वक्फ बोर्ड के दावे को हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया तो गुजरात सरकार ने वहाँ अतिक्रमण हटाने का काम शुरू किया। साल 2022 से लेकर फरवरी 2025 तक के अभियान में वहाँ सैकड़ों अवैध मस्जिद, मजार, कब्रिस्तान और मुस्लिमों के घर-दुकानों को तोड़ा गया। ये सारे अवैध रूप से बनाए गए थे। इतना ही नही, पाकिस्तान के कराची से सिर्फ 105 किलोमीटर दूर होने की वजह से यह अवैध गतिविधियों का अड्डा भी बनते जा रहा था। यही कारण था कि इन द्वीपों पर वक्फ बोर्ड अपना एकछत्र राज्य चाह रहा था। इसलिए उसने दावा ठोका था।

गुजरात का एक ही दूसरा मामला सूरत नगर निगम का है। दरअसल, गुजरात वक्फ बोर्ड ने सूरत नगर निगम (SMC) के मुख्यालय वाली ऐतिहासिक बिल्डिंग पर अपना दावा ठोक दिया था। इसके तहत साल 2016 में इसकी मुख्य इमारत का नाम बदलकर ‘हुमायूँ सराय’ रखने की माँग करते हुए सूरत के अब्दुल्ला जरुल्लाह नाम के एक व्यक्ति ने एक याचिका दायर की गई थी। अब्दुल्ला ने वक्फ अधिनियम की धारा 36 का हवाला देते पूरी बिल्डिंग को वक्फ बोर्ड की संपत्ति के रूप में पंजीकृत करने की माँग की थी। याचिका में दावा किया गया था कि इस इमारत का निर्माण मुगल बादशाह शाहजहाँ के शासनकाल में हुआ था। शाहजहाँ के भरोसेमंद व्यक्ति इशाक बेग यज़्दी उर्फ हकीकत खान ने इस इमारत को 1644 ईस्वी में 33,081 रुपए में बनवाया था। उस समय इसका नाम ‘हुमायूँ सराय’ था। इसके बाद इसे शाहजहाँ की बेटी जहाँआरा बेगम को जागीर में दे दी गई थी।

याचिका में आगे कहा गया था कि हकीकत खान ने इस इमारत को हज यात्रियों के लिए दान कर दी थी, क्योंकि सूरत एक प्रमुख बंदरगाह था और वहाँ से यात्रियों की बड़ी आवाजाही होती थी। इस दावे को लेकर याचिकाकर्ता अब्दुल्ला ने 17 विभिन्न दस्तावेज़ पेश किकए थे। इन दस्तावेजों में कहा गया था कि यह इमारत चार शताब्दी पुरानी है और इसका उपयोग 1867 तक हज के जाने वाले हज यात्रियों के लिए होता था। इसके बाद अंग्रेजों ने इसे नगरपालिका का कार्यालय बना दिया। बाद में यह इमारत सूरत नगर निगम का मुख्य कार्यालय बन गई। याचिकाकर्ता अब्दुल्ला जारुल्लाह ने शरिया कानून का हवाला देते हुए माँग की कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर धार्मिक उद्देश्यों के लिए दान की गई संपत्ति पर वक्फ बोर्ड का अधिकार होना चाहिए। उसने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का हवाला दिया था कि एक बार हुई वक्फ संपत्ति, हमेशा के लिए वक्फ हो जाती है।

इसके बाद साल 2021 में कार्यालय भवन को ‘वक्फ बोर्ड संपत्ति’ के रूप में पंजीकृत कर दिया गया। इसके साथ इस इमारत के प्रबंधन का काम सूरत नगर निगम से लेकर गुजरात राज्य वक्फ बोर्ड को देने के लिए कहा गया था। इसके बाद यह मामला सुर्खियों में आ गया और इसको लेकर जमकर विवाद हुआ। मामला वक्फ ट्रिब्यूनल तक पहुँचा। ट्रिब्यूनल ने कहा, “इमारत बंदरगाह से प्राप्त कर और राजस्व के पैसे से बनाई गई थी, न कि शाहजहाँ या इशाक बेग की व्यक्तिगत आय से। इसलिए, यह संपत्ति मुगलों की स्व-अर्जित संपत्ति की परिभाषा में नहीं आती है। इसके चलते बंदरगाह के कर और राजस्व आय से बनी संपत्ति को वक्फ के नाम नहीं किया जा सकता।”

वक्फ ट्रिब्यूनल ने कहा कि वक्फ बोर्ड द्वारा संपत्ति को ‘हुमायूँ सराय वक्फ संपत्ति’ के रूप में पंजीकृत करने का आदेश दिया गया था, जो कि अवैध है। इस संपत्ति को निर्माण के बाद से ‘मुगलसराय’ के नाम से जाना जाता है। सूरत शहर के वार्ड नंबर 11 में ‘हुमायूँ सराय’ नाम की कोई इमारत नहीं है। सिटी सर्वे नंबर 1504 की संपत्ति को अतीत में कभी भी ‘हुमायूँ सराय’ के नाम से नहीं जाना जाता था। इसके बाद वक्फ ट्रिब्यूनल ने सूरत नगर निगम के मुख्य कार्यालय को वक्फ संपत्ति घोषित करने के वक्फ बोर्ड के फैसले को रद्द कर दिया।

गुजरात के सूरत में वक्फ बोर्ड की कारस्तानी का एक बड़ा मामला है। यह मामला है शिव शक्ति सोसायटी का। यह सूरत में चारुयसी तालुका के कंथा क्षेत्र में हजीरा के पास स्थित है। इस सोसायटी में कुछ लोग नमाज पढ़ रहे थे, जिसे बजरंग दल के कार्यकर्ताओं ने रुकवा दिया था। इसके बाद जनवरी 2022 में सूरत के कांग्रेस पार्षद असलम साइकलवाला ने फेसबुक पर एक पोस्ट किया था। इसमें उन्होंने दावा किया था कि ‘शिव शक्ति सोसायटी’ के भीतर मस्जिद है और वह वक्फ बोर्ड की संपत्ति है। यह पूरा विवाद मुस्लिमों को प्लॉट बेचने से शुरू हुआ था। ‘शिव शक्ति सोसायटी’ के कुछ प्लॉट्स मुस्लिमों को बेचे गए थे। इनमें से एक मुस्लिम ने खरीदे गए अपने प्लॉट पर मस्जिद खड़ी कर दी और उसे साल 2020 में कोरोना की पहली लहर के दौरान वक्फ बोर्ड में पंजीकृत करा दिया। मस्जिद बन जाने के बाद पहले सोसायटी के मुस्लिम आकर नमाज़ पढ़ते, फिर बाहर के भी मुस्लिम आकर नमाज़ पढ़ने लगे। इस तरह यह वहाँ के लोगों के एक बड़ी समस्या बन चुकी है। वहाँ के लोगों ने इसके खिलाफ कई बार शिकायत भी दी।

स्रोत: गुजरात, बेट द्वारका, वक्फ संशोधन बिल, वक्फ बोर्ड, Gujarat, Bet Dwarka, Waqf Amendment Bill, Waqf Board,
Tags: Bet DwarkaGujaratWaqf Amendment BillWaqf Boardगुजरातबेट द्वारकावक्फ बोर्डवक्फ संशोधन बिल
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