नेपाल फिर बनेगा ‘हिन्दू राष्ट्र’?

पोखरा में कुछ समय धार्मिक स्थलों पर बिताने के बाद पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह जब काठमांडू लौटे तो सड़कों पर भारी जनसैलाब उनके स्वागत में उतर आया था

240 वर्ष तक राजशाही में रहा नेपाल 2008 में लोकतंत्र आने के बाद से अब तक 13 बार सरकार बदलते देख चुका है

240 वर्ष तक राजशाही में रहा नेपाल 2008 में लोकतंत्र आने के बाद से अब तक 13 बार सरकार बदलते देख चुका है

कोई भी आम हिन्दू यही सोचता है कि जब इतने सारे मुल्कों के अपने मजहब-रिलिजन हो सकते हैं तो फिर देश का धर्म हिन्दू धर्म हो, इसपर आपत्ति होती ही क्यों है? ये एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब कभी भी संतोषजनक तरीके से तथाकथित प्रगतिशील दे नहीं पाए। भारत में ऐसी बात कभी उठती भी है तो मीडिया के एक बड़े हिस्से पर नियंत्रण रखने वाले गिरोह फ़ौरन ऐसी बातें करने वाले को सांप्रदायिक, फासीवादी इत्यादि घोषित करके उसे सिरे से खारिज कर डालते हैं। ये ‘कैंसिल कल्चर’ स्वस्थ बहसों के विरुद्ध है और ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ को भी हाशिये पर धकेल देता है। फिर सवाल ये है कि ये आजाद सोच के जुमले तो तथाकथित लिबरल लोग सिर्फ उछालने के लिए रखते हैं। असल में निजता और व्यक्ति की स्वतंत्र सोच को कुचल देने का उनका पूरा इतिहास ही रहा है।

नेपाल में संविधान का आना

हिंसा की कई छोटी-बड़ी वारदातों के बाद वर्ष 2015 में नेपाल की संविधान सभा ने अपना पहला संविधान बना लिया था। इस दौर तक नेपाल दुनिया का एकमात्र हिन्दू राष्ट्र हुआ करता था जो इस संविधान के लागू होते ही धर्मनिरपेक्ष बन गया। इसमें कहा गया था कि सभी धर्मों को आज़ादी दी जाएगी लेकिन सनातन धर्म को बचाए रखना देश का पहला फर्ज होगा। इसके विरुद्ध नेपाली कांग्रेस और कई हिन्दू संगठनों का तर्क यही है कि जब कई देश स्वयं को ईसाई या इस्लामिक कह सकते हैं तो नेपाल स्वयं को हिन्दू राष्ट्र क्यों नहीं कह सकता? इसके लिए जनमत संग्रह करवाकर, नेपाल को हिन्दू राष्ट्र का अधिकारिक दर्जा मिले या धर्मनिरपेक्ष रखा जाए, ये फैसला कर लेने की वकालत कई राजनैतिक दल वहां करते रहे हैं। पहले वरिष्ठ नेता इस प्रश्न से दूरी बनाए रखते थे लेकिन 2023 बीतते-बीतते कांग्रेस के बड़े नेता शशांक कोइराला ने भी ये मांग उठा दी

राजा महेन्द्र वीर विक्रम शाह ने देश को सेक्युलर घोषित करने की पहल की थी। जब 2008 में राजपरिवार का शासन समाप्त हो गया और देश में लोकतंत्र आया तो कहा जाने लगा कि हिन्दू होने से वो कट्टर दिखते हैं जिससे कई देशों से रिश्ते अच्छे नहीं बन पा रहे हैं। इस बात में सच्चाई कितनी थी पता नहीं। ऐसी बहसों का परिणाम भी निकला। नेपाल की 2021 की जनगणना के मुताबिक, वहाँ 81% से अधिक हिन्दू हैं, 8% के लगभग बौद्ध और 5% से थोड़े अधिक ईसाई हैं। पिछले दशक की तुलना में हिन्दुओं की आबादी में 0.11 प्रतिशत और बौद्धों की आबादी में 0.79 प्रतिशत की कमी आई जबकि मुस्लिम आबादी 4% से बढ़कर 5% हो गई है। आबादी में जो बदलाव होते रहे हैं, वो हिंदी भाषा के विरोध के रूप में भी कभी-कभी हिंदी फिल्मों पर प्रतिबन्ध के रूप में दिख जाते हैं। भारत की सीमा पर, दूसरी तरफ चीन से सटे हुए मुल्क में होने वाले बदलाव भारत के लिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

हिन्दू संगठनों की भूमिका

नेपाल में एक हिन्दू स्वयंसेवक संघ है जिसका नारा ‘धर्मो रक्षति रक्षितः’ है। ये नारा भी भारत में अक्सर हिन्दू संगठनों में सुनाई देता है। इस संगठन के द्वारा ‘हिमाल दृष्टि’ नाम की मासिक पत्रिका भी निकाली जाती है। इसके अलावा विश्व हिन्दू महासंघ और हिन्दू जागरण समिति जैसे संगठन हैं। नेपाल हिन्दू राष्ट्र पुनःस्थापना मंच भी फिर से नेपाल को हिन्दू राष्ट्र बनाने की वकालत के आधार पर ही बना हुआ है।

नेपाल के राजा की वापसी

पोखरा में कुछ समय (करीब दो महीने) धार्मिक स्थलों पर बिताने के बाद पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह जब काठमांडू लौटे तो सड़कों पर भारी जनसैलाब उनके स्वागत में उतर आया। काठमांडू के राजमहल को राजा के लिए खाली किये जाने की बात उठी। नारों में ‘राजा वापस आओ, देश को बचाओ’ सुनाई दिया। एसोसिएट प्रेस और अन्य मीडिया के सूत्र बताते हैं कि दस हजार से अधिक लोग सड़कों पर उतर कर राजशाही वापस लाने के समर्थन में नारे लगाते दिखे।  नेपाल की राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी पहले से ही राजतन्त्र के समर्थन में है और वो भी इस आन्दोलन के समर्थन में खुलकर उतरी। राजतन्त्र की वकालत की एक बड़ी वजह ये भी है कि जिस 2006 के आन्दोलन के जरिये राजतन्त्र को हटाया गया, उसमें अब कई लोगों को चीनियों का हाथ होना दिखाई देने लगा है। 240 वर्ष तक राजशाही में रहा नेपाल 2008 में लोकतंत्र आने के बाद से अब तक 13 बार सरकार बदलते देख चुका है। पीटीआई के हवाले से 7 मार्च को बताया गया कि प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने कहा है कि कुछ लोगों के नारे लगाने से लोकतंत्र हटाकर राजशाही का आना संभव नहीं।

नेपाल हिन्दू राष्ट्र बना कैसे था?

जिसे आज नेपाल कहा जाता है वो कभी छोटी-छोटी रियासतों में बंटा हुआ था। राजा पृथ्वी नारायण शाह ने 1768 में इन्हें मिलकर एक नेपाल राज्य बनाया। राज्य भले बन गया हो लेकिन 1800 के शुरुआती दौर तक इन छोटी-छोटी रियासतों में भी अपने प्रधानमंत्री हुआ करते थे। राजा त्रिभुवन शाह 1950 में इस क्षेत्र पर शासन कर रहे थे और उन्होंने राजनैतिक सत्ता जब पूरी तरह हाथ में ली तो 2006 तक उनके परिवार का शासन रहा। राजा त्रिभुवन शाह के पुत्र महेंद्र शाह को एक आधुनिक हिन्दू राष्ट्र के रूप में नेपाल को आगे बढ़ाने का श्रेय जाता है। उनका समय आने तक राष्ट्रीय एकता की भावना के साथ नेपाल में ‘एक राजा, एक भेष, एक भाषा’ का नारा सुनाई देने लगा था। उनकी मृत्यु के बाद सत्ता उनके सबसे बड़े पुत्र राजा बिरेन्द्र के हाथ में आ गई। कई बड़े प्रदर्शनों के बाद 1990 में राजा बिरेन्द्र नेपाल को राजशाही से लोकतंत्र में बदलने और एक संसद को शक्तियां देने को तैयार हुए।

इतने पर नेपाल में शांति नहीं हुई क्योंकि 1990 के दशक में चीन समर्थन वाले माओवादी आतंकी भी नेपाल में सक्रिय थे। ऐसे माओवादियों के नेताओं में से एक पुष्प कमल दहल ‘प्रचंड’ बाद में नेपाल का प्रधानमंत्री भी बने। राजमहल में हुए एक गोलीकांड में 1 जून 2001 को राजा बिरेन्द्र, रानी ऐश्वर्या और राजपरिवार के आठ सदस्य मारे गए। ऐसा कहा जाता है कि राजकुमार दीपेन्द्र को अपनी पसंद से शादी नहीं करने देने के कारण वो नाराज़ थे। नशे की हालत में उन्होंने पहले परिवार के लोगों को और फिर स्वयं को गोली मार ली। बेहोशी की सी हालत में वो तीन दिनों के लिए राजा बनाए गए लेकिन उनकी मृत्यु हो गयी और उसके बाद राजा ज्ञानेंद्र शाह राजगद्दी पर आये हैं। उन्होंने देश में 2005 में आपातकाल लागू किया जिसके बाद सात राजनैतिक दलों ने मिलकर उनके खिलाफ आन्दोलन छेड़ दिया। आखिरकार राजा ज्ञानेंद्र को 2007 में फिर से लोकतंत्र बहाल करना पड़ा। इसके बाद 2008 में नेपाल में जो सरकार आई उसमें माओवादी बहुमत में थे और उन्होंने राजतन्त्र को समाप्त करने के लिये मतदान दिया।

नेपाल को जब 28 मई 2008 को अधिकारिक रूप से संघीय लोकतांत्रिक गणराज्य घोषित किया गया और राजा ज्ञानेंद्र शाह को राजभवन – नारायणहिती महल खाली करना पड़ा। राजमहल को संग्रहालय बना दिया गया था। भारत में सुनाई देने वाले ‘सिंहासन खाली करो कि जनता आती है’ की तर्ज पर अब नेपाल में ‘नारायणहिती खाली करो, हमारे राजा आ रहे हैं’ का नारा सुनाई दे रहा है। क्या फिजा बदलेगी का सवाल अभी भविष्य के गर्भ में है लेकिन पड़ोस में हो रहे बदलावों से भारत अनजान बैठा रहे, ऐसा तो होना नहीं चाहिए।

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