‘स्वस्थ बालिग बेटियों को नहीं है पिता से भरण-पोषण मांगने का आधिकार’: हाई कोर्ट ने पलटा निचली अदालत का फैसला

हाई कोर्ट बालिग लड़कियों को पिता से भरण-पोषण मांगने का अधिकार नहीं

(प्रतीकात्मक चित्र)

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने कहा है कि शारीरिक एवं मानसिक रूप से स्वस्थ और बालिग अविवाहित बेटी अपने पिता से भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकती है। कोर्ट ने कहा कि जम्मू एवं कश्मीर दंड प्रक्रिया संहिता (J&K CrPC) की धारा 488 के तहत पत्नी व बच्चों को भरण-पोषण देने का प्रावधान है, लेकिन इसके तहत बेटियां भरण-पोषण का दावा नहीं कर सकतीं। इतना ही नहीं कोर्ट ने इसी मामले में बेटे द्वारा पिता को भरण-पोषण के लिए हर माह 2000 रुपए दिए जाने का भी आदेश दिया। बेटियों 

क्या है मामला:

दरअसल, दो बालिग लड़कियां अपने पिता से भरण-पोषण की मांग करते हुए कोर्ट पहुंची थीं। जहां जिला अदालत यानी न्यायिक मजिस्ट्रेट ने पिता को आदेश दिया था कि वह अपनी दोनों अविवाहित बेटियों को 1200-1200 रुपये का भरण-पोषण दें। जिला अदालत के इस फैसले के खिलाफ पिता ने हाई कोर्ट में अपील की थी। साथ ही पिता ने अपने बेटे से भरण-पोषण की मांग करते हुए एक अन्य याचिका भी दायर की थी। 

इस पर जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख हाईकोर्ट की श्रीनगर पीठ के जस्टिस राहुल भटरी की बेंच ने मामले की सुनवाई की। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि धारा 488 को देखें तो समझ आता है कि दोनों अविवाहित पुत्रियां वयस्क हैं, लेकिन उनमें कोई शारीरिक या मानसिक असामान्यता या चोट नहीं है, जिसके चलते वे अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हों। ऐसे में इस मामले को देखें तो किसी भी तरह से CRPC की धारा 488 लागू नहीं की जा सकती।

सीधे शब्दों में कहें तो कोर्ट ने यह पाया कि बालिग लड़कियों की मांग कानून संगत नहीं है। इसलिए पिता बालिग बेटियों को किसी भी प्रकार की भरण-पोषण राशि देने के लिए बाध्य नहीं है।

इतना ही नहीं, कोर्ट ने पिता की उस याचिका पर भी सुनवाई की, जिसमें उसने खुद को पुत्र पर आश्रित बताते हुए भरण-पोषण राशि की मांग की थी। इस याचिका पर कोर्ट ने पुत्र को आदेश दिया कि वह अपने पिता को भरण-पोषण के लिए हर महीने 2000 रुपए देगा।

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