ओबामा ने मुंबई हमलों को लेकर बताया था मनमोहन सरकार का यह राज, पाक के खिलाफ इसलिए ‘नहीं हुई’ कड़ी कार्रवाई

तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण के बाद मुंबई के 26/11 हमलों को लेकर एक बार फिर चर्चा हो रही है

मुंबई हमलों के समय मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे

मुंबई हमलों के समय मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री थे

मुंबई में 26 नवंबर 2008 को हुए आतंकी हमलों का आरोपी तहव्वुर राणा (Tahawwur Rana) अमेरिका से प्रत्यर्पण के बाद भारत लाया गया है। भारत की राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने तहव्वुर को गिरफ्तार कर लिया है और कोर्ट ने उसे 18 दिनों की NIA की रिमांड पर भेज दिया है। तहव्वुर के प्रत्यर्पण के बाद मुंबई के 26/11 हमलों को लेकर एक बार फिर चर्चा हो रही है। पाकिस्तान के 10 आतंकियों ने अरब सागर के रास्ते मुंबई में घुसने के बाद शहर में कई जगहों पर हमला कर दिया है। इन हमलों में 160 से अधिक लोगों की मौत हुई और सुरक्षाबलों ने 9 आतंकियों को मार दिया था। जबकि एक आतंकी अजमल कसाब को ज़िंदा पकड़ा गया था जिसे बाद में सुप्रीम कोर्ट ने फांसी की सज़ा दी थी। इन हमलों में पाकिस्तान की भूमिका शुरुआत में ही सामने आने लगी थी और उस पर भारत सरकार की कमज़ोर प्रतिक्रिया को लेकर भी तत्कालीन मनमोहन सरकार पर सवाल उठाए गए थे। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अपनी किताब में भारत की प्रतिक्रिया को लेकर ज़िक्र किया था।

बराक ओबामा ने अपनी किताब ‘ए प्रॉमिस्ड लैंड’ में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ अपनी मुलाकातों और भारत-पाकिस्तान संबंधों को लेकर लिखा था। ओबामा ने अपनी और मनमोहन की मुलाकात की ज़िक्र करते हुए कहा, “प्रधानमंत्री (मनमोहन सिंह) ने कहा कि उन्हें अर्थव्यवस्था की दिक्कत सता रही थी। हालांकि, वित्तीय संकट के बाद भारत ने कई अन्य देशों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया था लेकिन वैश्विक मंदी के कारण भारत की युवा और तेजी से बढ़ती आबादी के लिए रोजगार पैदा करना मुश्किल हो जाएगा। फिर पाकिस्तान की समस्या भी थी।”

इस हमले के बाद मनमोहन सिंह क्यों पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई करने में हिचक रहे थे उसे लेकर ओबामा ने पुस्तक में आगे लिखा है, “मुंबई में होटलों और अन्य स्थलों पर 2008 के आतंकवादी हमलों की जांच करने के लिए भारत के साथ काम करने में इसकी (पाकिस्तान) निरंतर विफलता ने दोनों देशों के बीच तनाव को काफी बढ़ा दिया था, आंशिक रूप से इसलिए क्योंकि जिम्मेदार आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा के पाकिस्तान की खुफिया सेवा से संबंध होने का अनुमान लगाया गया था।” उन्होंने लिखा, “सिंह ने हमलों के बाद पाकिस्तान के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने के आह्वान का विरोध किया था लेकिन उनके संयम की वजह से उन्हें राजनीतिक रूप से नुकसान उठाना पड़ा था। उन्हें (मनमोहन) डर था कि बढ़ती मुस्लिम विरोधी भावना ने भारत की मुख्य विपक्षी पार्टी, हिंदू राष्ट्रवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के प्रभाव को मजबूत किया है।”

बराक ओबामा ने इस पुस्तक में मनमोहन सिंह के बयान को लेकर लिखा, “प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मिस्टर प्रेसिडेंट, अनिश्चित परिस्थितियों में धार्मिक और जातीय एकजुटता की भावना लोगों को आसानी से प्रभावित कर सकती है। और राजनेताओं के लिए इसका लाभ उठाना कोई नई बात नहीं है, चाहे वो भारत में हो या अन्य देशों में’।” यानी मनमोहन सरकार को पाकिस्तान को जवाब देने से ज़्यादा चिंता BJP के वोट बैंक बढ़ने को लेकर थी। बाद में कांग्रेस के कुछ नेताओं ने मुंबई हमलों से जोड़ने की कोशिश भी की थी। इस हमले के दौरान नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे और उन्होंने भी तत्कालीन मनमोहन सरकार पर निशाना साधा था। मोदी ने तब UPA सरकार से कहा था कि पाकिस्तान ने संयुक्त राष्ट्र सम्मेलनों का घोर उल्लंघन किया है और इस मामले को अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने उठाया जाए।

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