Canada Election Result: कनाडा की राजनीति में बड़ा उलटफेर हुआ है। लिबरल पार्टी (Liberal Party) ने प्रधानमंत्री मार्क कार्नी (Mark Carney) के नेतृत्व में जीत हासिल की है। हालांकि, अभी भी वो बहुमत से थोड़ा दूर हैं। कंजरवेटिव नेता पियरे पोइली एव्री ने हार स्वीकार कर ली है। कुछ महीनों पहले हार की कगार पर खड़ी लिबरल पार्टी के लिए ये जीत किसी संजीवनी से कम नहीं है। हालांकि, अब सवाल ये उठता है कि जस्टिन ट्रूडो की जगह आए मार्क कार्नी भारत और अमेरिका के साथ अपने संबंध को कैसे आगे लेकर जाते हैं। क्योंकि, वो लेटरल एंट्री से आए जरूर थे लेकिन अब उन्होंने अपने दम पर सरकार बनाने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। ऐसे में कनाडा की जनता और अर्थव्यवस्था को उनसे काफी उम्मीद है जो कहीं न कहीं भारत और अमेरिका के साथ संबंधों पर निर्भर हैं।
बता दें कनाडा के हाउस ऑफ कॉमन्स में 343 सीटें हैं। यहां सरकार बनाने के लिए 172 सीटों की जरूरत होती है। सोमवार दोपहर तक जारी नतीजों (Canada Election Result) के अनुसार, लिबरल पार्टी ने 167 सीटों पर बढ़त बनाई है। वहीं उनसे मुकाबले खड़ी कंजरवेटिव पार्टी 145 सीट ही हासिल कर पाई है। मतलब साफ है कि कनाडा में अब मार्क कार्नी एक बार फिर देश के प्रधानमंत्री बनने जा रहे हैं। ऐसे में आइये जानें भारत और अमेरिका के साथ कनाडा के रिश्ते कैसे हो सकते हैं?
भारत-कनाडा रिश्तों पर असर
जस्टिन ट्रूडो सरकार ने प्रवासियों के लिए कुछ सख्त नियम बनाए थे। भारत के खिलाफ उनका रुख जगजाहिर है जो दोनों देशों के रिश्ते को गर्त में ले गया था। ऐसे में मार्क कार्नी की अगुवाई में लिबरल पार्टी की जीत ने कनाडा के लोगों के लिए नई उम्मीद हो सकती है। मार्क कार्नी की जीत पर PM मोदी ने बधाई दी है। ऐसे में भारत के साथ रिश्तों को सुधारने, व्यापार समझौते को आगे बढ़ाने के लिए कार्नी के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी है। क्योंकि, भारत के साथ कनाडा को रिश्ते सुधारना जरूरी नहीं काफी हद तक उनकी जरूरत भी है।
ट्रूडो के दौर में आई थी तल्खी
कुछ समय पहले जब जस्टिन ट्रूडो कनाडा के प्रधानमंत्री हुआ करते थे तो भारत के साथ रिश्ते खराब हुए थे। साल 2020 में उन्होंने किसान आंदोलन को लेकर कमेंट किया था। इसके साथ ही वो खलिस्तान समर्थकों के लिए नरम रहे हैं। इतना ही नहीं ट्रूडो ने अपनी सरकार बचाने के लिए हरदीप सिंह निज्जर की हत्या का आरोप भी भारत पर लगाया था। क्योंकि, वो वामपंथी न्यू डेमोक्रेटिक पार्टी (एनडीपी) और खालिस्तान समर्थक नेता जगमीत सिंह के समर्थन से अपनी अल्पमत की सरकार को किसी तरह खींच रहे थे। उनके इस बर्ताव के बाद भारत ने कनाडा के उच्चायुक्त समेत 6 डिप्लोमेट का निष्कासित कर दिया था।
कार्नी से कनाडा को उम्मीद
कनाडा में 30 लाख भारतीय प्रवासी रहते है जो अर्थव्यवस्था में अरबों डॉलर का योगदान देते हैं। ये बात कार्नी अच्छी तरह से जानते हैं। क्योंकि वह बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक ऑफ कनाडा गवर्नर रह चुके हैं। उनके बयान भी भारत के प्रति सकारात्मक रहे हैं। कार्नी ने भारत के साथ रिश्तों को महत्वपूर्ण बताया था। उन्होंने अपने भाषण में कहा है कि भारत के साथ आर्थिक, रणनीतिक और व्यक्तिगत स्तर पर गहरे संबंध हैं। हम समान मूल्यों वाले देशों के साथ व्यापारिक रिश्तों को मजबूत करेंगे।
मार्क कार्नी के दौर में बढ़ा व्यापार
भारत और कनाडा के बीच व्यापक आर्थिक भागीदारी के लिए CEPA व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौते की बात 2008 से चल रही है। साल 2010 में इसकी शुरूआत भी हो गई थी। हालांकि, 2023 में उपजे निज्जर विवाद के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया था। दोनों देशों के बीच व्यापार की बात करें तो साल 2022-23 में 8.3 और 2023-24 में 8.4 बिलियन डॉलर व्यापार हुआ है। ये आंकड़े ट्रूडो के बाद बनी सरकार का भारत के प्रति रुख बताते है कि किस तरह से व्यापार बढ़ा है।
क्या अब खलिस्तान पर लगेगा लगाम?
चुनाव प्रचार के दौरान ही मार्क कार्नी ने भारत के साथ रिश्तों को बेहद अहम बताया था। एक इंटरव्यू में के दौरान उन्होंने कहा था कि भारत जैसे समान सोच वाले देशों के साथ व्यापारिक रिश्तों को फिर से संवारने की ज़रूरत है। रिश्तों में आई दरार के लिए सिर्फ भारत को दोष नहीं दिया जा सकता। अब जरूरत है पारस्परिक सम्मान के साथ आगे बढ़ने की। हालांकि, उन्होंने निज्जर की हत्या और या उससे जुड़ी बातों पर टिप्पणी करने से बचते नजर आए हैं।
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अब सवाल उठता है कि क्या कनाडा में खालिस्तानी समर्थकों (Khalistan Movement In Canada) पर लगाम लग पाएगा? इसका जवाब घुला मिला हो सकता है। मार्क कार्नी अपने देश की अर्थव्यवस्था के लिए तो भारत के समर्थन में आ सकते हैं। हालांकि, अभी भी उनकी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं है। ऐसे में अगर ट्रूडो की तरह उनको भी अल्पमत की सरकार की लगाम हाथों में लेने के लिए जगमीत सिंह की NDP का समर्थन लेना पड़ा तो वह भारत के खिलाफ भी जा सकते हैं। भले ही जगमीत सिंह चुनाव हार गया है। लेकिन, उसकी पार्टी को 7 सीटें मिली है। अब ये डिपेंड करता है सरकार किस तरह बनती है।
ट्रंप से कैसे होंगे रिश्ते?
लिबरल पार्टी की जीत में मार्क कार्नी का नेतृत्व और ट्रंप की टैरिफ धमकियां निर्णायक रहीं। कार्नी ने अपने विजय भाषण में ट्रंप की नीतियों का खुलकर विरोध करते रहे हैं। वो ट्रंप को कनाडा को तोड़ने की साजिश करने वाला करार दिया था। कार्नी ने अमेरिका को आड़े हाथों लेते हुए कहा था कि अमेरिका हमारे संसाधनों और जमीन पर नजर गड़ाए है। लेकिन हम उन्हें कभी ऐसा नहीं करने देंगे। ऐसे में डोनाल्ड ट्रंप की व्यापारिक धमकियों के बीच कार्नी की जीत अमेरिका और कनाडा के रिश्ते में थोड़ी गर्माहट ला सकती है। ट्रंप ने कनाडा को अमेरिकी राज्य के रूप में पेश किया था। ऐसे में ट्रंप का विरोध मार्क कार्नी और लिबरल पार्टी के लिए राष्ट्रवाद का मुद्दा हो सकता है।
मार्क कार्नी के नेतृत्व में कनाडा सरकार से भारत को एक संतुलित, व्यावहारिक और सकारात्मक रुख रख सकती है। अब अगर दोनों देश निज्जर विवाद को पीछे छोड़ते हुए फिर से साथ आते हैं तो यह न सिर्फ द्विपक्षीय संबंधों के लिए ही नहीं बल्कि वैश्विक मंच पर भी दोनों की भूमिका को भी मजबूती देगा। कार्नी की जीत से उम्मीद जगी है कि नई दिल्ली और ओटावा अपने टूटे रिश्तों को सुधार सकते हैं।