तेज हॉर्न सेहत पर कैसे डालते हैं असर? नितिन गडकरी निकालेंगे समाधान

Horns Affect Health: तेज हॉर्न का सेहत पर बुरा असर पड़ता है। हालांकि, ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) इसका हल लाने वाले हैं।

Loud Horns Health Minister Nitin Gadkari

Loud Horns Health Minister Nitin Gadkari

Horns Affect Health: कैसा हो अगर घर से निकलने पर ट्रैफिक में पी…पॉ… की आवाज ही न आए। कानों को चुभने के साथ सेहत पर बुरा असर डालने वाली इन आवाजों को जगह आपको लाल बत्ती पर भारतीय संगीत, शंख, गिटार, शहनाई और बांसुरी की आवाज सुनाई दे। भला कितना अच्छा लगेगा…सोच में पड़ गए। भारत में ऐसा होने की उम्मीद हैं। ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं क्योंकि केंद्रीय ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ने इस संबंध में कानून बनाने की बात कही है। अगर ऐसा होता है तो न सिर्फ ध्वनि प्रदूषण में कमी आएगी बल्कि लोगों के सेहत में भी सुधार होगा। आइये जाने गडकरी ने क्या कहा है और इससे सेहत का कनेक्शन कैसे बनता है?

आपको पता ही होगा की तमाम तरह के प्रदूषणों में ध्वनि प्रदूषण भी एक तत्व है। इसका हमारे वातावरण के साथ हमारे शरीर पर भी असर (Loud Horns Affect Health) पड़ता है। कानों के रास्ते ध्वनि प्रदूषण दिमाग पर असर करता है। खैर अगर देश में ऐसा कानून बन जाता है कि हॉर्न में संगीत सुनाई देने लगे तो यह काफी हद तक कम हो सकता है।

क्या बोले नितिन गडकरी?

सोमवार को एक कार्यक्रम में नितिन गडकरी (Nitin Gadkari On Loud Horns) ने कहा कि वह एक ऐसा कानून बनाने पर विचार कर रहे हैं जिसमें वाहनों के हॉर्न में केवल भारतीय संगीत वाद्ययंत्रों की ध्वनि का ही इस्तेमाल किया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि बांसुरी, तबला, वायलिन, हारमोनियम जैसे वाद्य यंत्रों का इस्तेमाल कर हॉर्न बजाने पर फोकस है।

पहले जानें ध्वनि प्रदूषण

कोई भी ध्वनि या आवाज जिसका स्तर आपको परेशान करने वाला हो या आपको असुविधा में डालता है, ध्वनि प्रदूषण कहलाता है। ये अलग-अलग हालात और स्थान के आधार पर अलग हो सकता है। इससे इंसान ही नहीं वन्य जीवों के प्रवास पैटर्न और भोजन की आदतों आदि में प्रभाव पड़ सकता है। ये प्राकृतिक आपदाओं, घरेलू उपकरणों, कारखानों, वाहनों आदि से पैदा हो सकता है। इसे डेसीबल या DB में नापा जाता है। WHO लंबे समय के लिए 70 डेसीबल के कम आवाज की सलाह देता है।

ट्रैफिक हॉर्न का सेहत पर असर

ट्रैफिक हॉर्न और उसके सेहत पर असर को लेकर कई रिपोर्ट हैं। फरवरी 2018 में Sciencedaily ने इस पर एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें साफ तौर पर कहा गया है कि ट्रैफिक में वाहनों की आवाज न केवल झुंझलाहट, चिड़चिड़ापन पैदा करती है इससे सुनने की क्षमता में कमी आती है। इतना ही नहीं इससे मेमोरी में कमी, नींद की समस्या और अतिसक्रियता जैसी समस्याएं पैदा हो सकती है।

दिल की बीमारी: रिसर्च में सामने आया है कि तेज आवाज के कारण ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है। इसका सीधा असर दिल पर पड़ता है। ये दिल की बीमारी के साथ ही स्ट्रोक का कारण बन सकता है।

सुनने में कमी: लंबे समय तक तेज यातायात शोर में रहने के कारण कान के अंदर की संरचना को नुकसान पहुंच सकता है। इससे सुनने की क्षमता कम हो जाता है। इसके साथ टिनिटस यानी कानों में घंटी बजने की बीमारी हो सकती है।

नींद संबंधी परेशानियां: ट्रैफिक से पैदा होने वाली आवाज नींद में बाधा डाल सकती है। इससे अनिद्रा, बेचैनी हो सकती है। यह समस्या धीरे-धीरे आपको दिमागी रूप से परेशान कर सकती है।

अन्य समस्याएं: यातायात के शोर के कारण श्वसन संबंधी समस्याएं, तनाव और चिंता, ध्यान में कमी आती है। बच्चों को इस समस्या से ज्यादा परेशान होना पड़ सकता है। क्योंकि, बच्चों का कान ज्यादा कमजोर होता है।

कई मिलियन लोग हैं परेशान

साल 2017 में यूरोपीय संघ ने भी एक रिपोर्ट जारी की थी। इसमें बताया गया था कि परिवहन से होने वाले शोर के कारण कम से कम 18 मिलियन लोग परेशान हैं। 5 मिलियन लोगों को नींद की परेशान है। इसके लिए संघ ने साल 2030 तक परिवहन शोर से प्रभावित लोगों की हिस्सेदारी को 30% कम करने का उद्देश्य रखा है।

भारत का ऑटो सेक्टर

बड़ा भारत का ऑटो सेक्टर दुनिया में तीसरे नंबर पर है। साल 2014 में भारत का ऑटो सेक्टर 14 लाख करोड़ का था। ये अब बढ़कर 22 लाख करोड़ पर पहुंच गया है। वायु प्रदूषण की बात करें तो 40 प्रतिशत प्रदूषण इसे सेक्टर से होता है। इसे आप भारत के मेट्रो सिटी की सड़कों पर आसानी से देख सकते हैं। सुबह घर से निकलने पर वाहनों की लंबी कतार लग जाती है। सफर घंटों में बदल जाता है और इस दौरान हमें भारी आवाज का सामना करना पड़ता है।

मानक से ज्यादा के होते हैं हॉर्न

भारत में परिवहन कानून के अनुसार भारी वाहनों को 45 से 55 डेसीबल के हॉर्न लगाने की अनुमति होती है। जबकि, नियमों को ताक पर रखकर 125 से डेसीबल के हॉर्न लगाए जा रहे हैं। वहीं टीनेजर की बाइक और उसकी आवाज किसी से छिपी नहीं है। जानकार बताते हैं कि अगर 60 डेसीबल से अधिक तीव्रता की ध्वनि के बीच 8 से 10 घंटे रहे तो थकान, अनिद्रा, चिड़चिड़ापन, सिरदर्द की परेशानी बढ़ जाएगी। इससे नवजात बच्चों और गर्भस्थ शिशुओं के विकास भी प्रभावित होता है।

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संगीत को न बनाएं कोलाहल

अब सवाल आता है कि आखिर नितिन गडकरी अगर कानून बना भी देते हैं तो इसका कितना असर होगा? केवल कानून बना देने से समस्या का एक हद तक निवारण (Loud Horns Affect Solution) हो जाएगा। हालांकि, इसके लिए आम लोगों को ध्यान देना होगा कि ट्रैफिक में वो जबरन हॉर्न न बजाए। सोचिए अगर आप ट्रैफिक में हैं और बिना सुर ताल के ढोलक, मंजूरी, हारमोनियम, पियानो सरीके तमाम आवाज आने लगे तो ये पॉ..पी.. से ज्यादा खतरनाक हो सकती है। इस लिए जरूरी है कि अनावश्यक होने पर जबरन हॉर्न न बजाएं।

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