‘शिमला समझौता’ टूटा तो घुटनों पर आ जाएगा पाकिस्तान, समझें इस समझौते की पूरी ABCD

जानें, शिमला समझौता क्या था और इसके रद्द होने से किस तरह का असर हो सकता है?

इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो ने शिमला समझौते पर किए थे हस्ताक्षर

इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो ने शिमला समझौते पर किए थे हस्ताक्षर

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए वीभत्स आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के पेंच कसने शुरू कर दिए हैं जिसके बाद पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। इस हमले में आतंकियों ने धर्म पूछ-पूछकर लोगों को मारा था जिसके बाद भारत कड़ी कार्रवाई के मूड में है। भारत ने सिंधु जल समझौता सस्पेंड कर दिया है तो पाकिस्तान ने भी शिमला समझौता रद्द करने की गीदड़ भभकी दी है और भारत द्वारा सिंधु जल समझौता सस्पेंड किए जाने को ‘युद्ध की कार्रवाई’ बताया है। पाकिस्तान शिमला समझौता रद्द करने की गीदड़ भभकी बेशक दे रहा है लेकिन असल में यह उस पर ही भारी पड़ सकता है। इस लेख में समझते हैं कि शिमला समझौता क्या था और इसके रद्द होने से किस तरह का असर हो सकता है।

क्यों पड़ी इस समझौते की ज़रूरत?

शिमला समझौता 2 जुलाई 1972 को भारत और पाकिस्तान के बीच हस्ताक्षरित एक ऐतिहासिक द्विपक्षीय समझौता था, जिसका उद्देश्य 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद शांति स्थापित करना और आपसी संबंधों को सामान्य करना था। हालांकि, यह समझौता 3 जुलाई की सुबह हुआ था लेकिन इसके कागज़ों पर तारीख 2 जुलाई की दर्ज है। यह युद्ध पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) में पाकिस्तानी सेना द्वारा किए जा रहे दमन के चलते शुरू हुआ था और इस युद्ध के कारण ही दुनिया के नक्शे पर एक नए देश ‘बांग्लादेश’ का निर्माण हुआ था। भारत ने इस युद्ध में जीत हासिल की और पाकिस्तान के करीब 93,000 सैनिकों को युद्धबंदी बना लिया था। इस युद्ध के दौरान भारत ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कुछ क्षेत्र को भी कब्ज़ा लिया था। युद्ध के बाद भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो ने शिमला में वार्ता की ताकि युद्धबंदियों, कब्ज़ाए गए क्षेत्रों और भविष्य के संबंधों पर सहमति बन सके।

क्या था शिमला समझौता?

शिमला समझौते में भारत-पाकिस्तान ने मतभेदों को शांतिपूर्ण तरीके से सुलझाने और रिश्तों में सुधार लाने की प्रतिबद्धता जताई थी। शिमला समझौते में कहा गया था कि भारत और पाकिस्तान सरकार ने यह संकल्प लिया है कि दोनों देश अपने संबंधों को खराब करने वाले संघर्ष और टकराव को समाप्त करें और मैत्रीपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने तथा उपमहाद्वीप में स्थायी शांति की स्थापना के लिए काम करें। इसमें किए गए प्रमुख प्रावधान निम्नलिखित थे-

Shimla Agreement- यहां पढ़ें पूरा समझौता

शिमला समझौता रद्द हुआ तो घुटनों पर आएगा पाकिस्तान?

अगर पाकिस्तान शिमला समझौते को रद्द करता है तो इसका नुकसान भारत को होने के बजाय पाकिस्तान को ही ज्यादा मुश्किलें आ सकती हैं। शिमला समझौता अगर खत्म होता है तो इसका सीधा फायदा भारत को ही होने की उम्मीद है।

कश्मीर के मुद्दे पर भारत को फायदा

शिमला समझौता कश्मीर को एक द्विपक्षीय मुद्दा बनाता है जिसके तहत भारत और पाकिस्तान बिना तीसरे पक्ष (जैसे संयुक्त राष्ट्र) के हस्तक्षेप के बातचीत करने के लिए बाध्य हैं। शिमला समझौता रद्द होने से भारत संपूर्ण जम्मू-कश्मीर को पूरी तरह अपना हिस्सा घोषित कर सकता है और इस पर उसे अंतर्राष्ट्रीय समर्थन भी मिल जाएगा। पाकिस्तान इन दिनों पूरी दुनिया में अलग-थलग पड़ा हुआ है। विश्व में भारत की मौजूदा स्थिति को देखें तो उसमें मजबूती नज़र आती हैं तो वहीं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में पाकिस्तान की साख लगभग गिर चुकी है और तमाम देश भारत के समर्थन में आने के लिए तैयार हैं।

LoC के नाम पर भारत को मिलेगी खुली छूट

अगर समझौता रद्द होता है, तो LoC की वैधता पर सवाल उठ सकता है। जिससे भारत को सैन्य या कूटनीतिक रूप से अधिक आक्रामक रुख अपनाने की छूट मिल जाएगी। भारत मजबूत सैन्य और आर्थिक स्थिति में है और ऐसे में LoC को फिर से तय करने के लिए पाकिस्तान को बाध्य किया जा सकता है। पाकिस्तान की कमज़ोर अर्थव्यवस्था और कम सैन्य संसाधन उसे संघर्ष में लंबे समय तक टिकने नहीं देंगे।

आतंकियों पर कड़ी कार्रवाई की छूट

भारत में हमला करने के बाद आतंकी शरण लेने के लिए पाकिस्तान में चले जाते हैं। भारत कई बार कार्रवाई करने में हिचकता रहा है क्योंकि शिमला समझौते के तहत कोई देश दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का उल्लंघन नहीं कर सकता है। लेकिन अगर यह समझौता रद्द हो जाता है तो भारत को आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई करने की और खुली छूट मिला जाएगी।

पाकिस्तान कर चुका है शिमला समझौते का उल्लंघन

दोनों देशों के बीच शांति स्थापित करने वाले इस समझौते का पाकिस्तान ने कई बार उल्लंघन किया है। 1984 में पाकिस्तान ने सियाचिन ग्लेशियर क्षेत्र पर कब्ज़ा करने के लिए इस क्षेत्र में सैन्य गतिविधियां शुरू की थीं। जिसके जवाब में भारत ने ऑपरेशन मेघदूत शुरू किया और सियाचिन ग्लेशियर पर अपना नियंत्रण स्थापित किया था। इसके बाद 1999 में पाकिस्तानी सेना और सेना के समर्थित आतंकवादियों ने LoC को पार करके कारगिल क्षेत्र में भारतीय चौकियों पर कब्जा कर लिया। यह शिमला समझौते का स्पष्ट उल्लंघन था। भारत ने ऑपरेशन विजय शुरू किया और क्षेत्र को वापस ले लिया। इसके अलावा पाकिस्तान लगातार कश्मीर में आतंक को बढ़ावा देने वाली गतिविधियों में संलिप्त रहता है और भारत के लिए मुश्किलें खड़ी करता रहा है। 2008 का मुंबई हमला हो या 2025 का पहलगाम हमला, इसमें शामिल आतंकियों को पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षण, हथियार और वित्तीय सहायता दी जाती रही है।

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