राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) लंबे समय से जातिविहीन समाज की वकालत करता रहा है। संघ की शाखाओं और वर्गों में भी इसका रूप देखने को मिलता है। हाल ही में संघ प्रमुख मोहन भागवत ने ‘एक मंदिर, एक कुआं और एक श्मशान’ की नीति अपनाकर जातिवाद खत्म करने की अपील की थी। इसके बाद अब संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने भारत को हिंदू राष्ट्र बताते हुए कहा है कि संघ जातियों में बंटे हिंदुओं को राष्ट्रीय हिंदू बना रहा है।
क्या बोले भागवत:
RSS प्रमुख मोहन भागवत हाल ही में एक कार्यक्रम में हिंदू समाज से जातिगत मतभेदों को समाप्त करने की पुरजोर अपील की। उन्होंने ‘एक मंदिर, एक कुआं और एक श्मशान’ की नीति अपनाकर सभी वर्ग के लोगों से समरसता और समानता लाने का आह्वान किया। भागवत ने यह भी कहा कि हमें सभी वर्गों को समान सम्मान देना होगा। यही हमारा धर्म है, यही हमारी संस्कृति है।
इतना ही नहीं भागवत ने यह भी कहा था, “हमें ऐसा समाज बनाना है जो न केवल सशक्त हो, बल्कि सभी वर्गों को साथ लेकर चलने वाला हो। हमारे त्योहार केवल उत्सव नहीं हैं, बल्कि वे सामाजिक एकता के अवसर भी हैं।” साथ ही उन्होंने सभी वर्ग के लोगों को साथ मिलकर त्योहार मनाने का आग्रह किया था। सीधे शब्दों में कहें तो जाति के नाम पर बंटे हुए देश के लोगों से एक साथ आकर जातिवाद को खत्म करने की अपील की।
भारत हिंदू राष्ट्र: होसबाले RSS
इसी कड़ी में अब संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने भी जातिवाद पर प्रहार करने की बात कही है। उन्होंने कहा है, “संघ बीते 100 वर्षों से हिंदू समाज को जागृत करता आ रहा है। इसलिए संघ 100 वर्षों के पश्चात भी बढ़ता जा रहा है। संघ हिंदू राष्ट्र नहीं बना रहा है। भारत हिंदू राष्ट्र तो पहले से है। संघ हिंदुओं को सेवाभावी हिंदू बनाने एवं अकेले हिंदू को शक्तिशाली बनाने का कार्य कर रहा है। जातीय हिंदू को राष्ट्रीय हिंदू बनाने का कार्य कर रहा है। हिंदुओं को समरसता की धारा में लाने का कार्य संघ ने किया है।”
उन्होंने आगे कहा, “कोई भले ही जन्म से हिंदू है, मगर उसके आचरण, स्वभाव और विचार से उसे संपूर्ण हिंदू बनाने का कार्य संघ कर रहा है। समाज के अंदर परिवर्तन लाने का कार्य हम कर रहे हैं। समाज में बहुत सारे लोग अच्छा कार्य करना चाहते हैं। ऐसे लोगों के साथ मिलकर हमें उनका हृदय जीतते हुये कार्य करना चाहिये। ऐसा करने से भारत वैभवशाली होगा। फिर समृद्ध भारत विश्व में मंगल लाने का कार्य करेगा। भारत उठ रहा है, भारत उठेगा। भारत किसी को दास बनाने के लिये नहीं उठेगा, वह तो विश्व में मंगल लाने के लिये उठेगा।”
होसबाले ने यह भी कहा, “हिंदुओं के साथ एक समस्या है, जब कोई महापुरुष आता है, तो उन्हें जगाता है। मगर वह फिर सो जाता है। ऐसा एक बार नहीं कई बार हुआ है। हिंदू समाज को बार-बार जगाना पड़ता है। मगर वह बार-बार सो जाता है। ऐसा ही काम डॉ. हेडगेवार ने किया है। संघ ने सदैव हिंदुओं को जगाने का काम किया है।”
दरअसल, सामाजिक, राजनीतिक, पारिस्थिक समेत कई अन्य कारणों के चलते देश में रहने वाले लोग जातियों में बंट गए थे। समय के साथ जातियां बढ़ती चलती गईं और अब एक बड़ी समस्या बनकर सामने आ रही है। कुछ राजनीतिक दल जातिवाद के सहारे सत्ता में भी आ चुके हैं, ऐसे में राजनीतिक फायदे के लिए लोग एकजुट समाज को तोड़कर जातिवाद को बढ़ावा देने की पुरजोर कोशिश करते आ रहे हैं।
चूंकि जातिवाद से सिर्फ एक जाति या समाज ही प्रभावित नहीं होता बल्कि इससे पूरा देश प्रभावित हो रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो जातिवाद एक कैंसर की तरह इस देश की एकता को खोखला करता जा रहा है और राजनीतिक फायदे के लिए कुछ राजनेता इस कैंसर का इलाज ढूँढ़ने के बजाय इसके सहारे सत्ता में काबिज हो और भी आगे बढ़ाने की जुगत में लगे रहते हैं।
इसके चलते ही राष्ट्रीय स्वयं संघ (RSS) जातिवाद के खिलाफ लड़ाई की बात कर रहा है। उल्लेखनीय है कि मोहनदास गांधी और भीमराव अंबेडकर ने भी संघ की शाखा और शिविर में जातिवाद ना होने या यूं कहें कि सभी वर्गों से साथ होने के चलते जाति का पता ना चलने को लेकर संघ की तारीफ की थी।
मोहनदास गांधी ने कहा था, “बरसों पहले मैं वर्धा में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(RSS) के एक शिविर में गया था। उस समय इसके संस्थापक श्री हेडगेवार जीवित थे। स्व. श्री जमनालाल बजाज मुझे शिविर में ले गये थे और वहाँ मैं उन लोगों का कड़ा अनुशासन, सादगी और छुआछूत की पूर्ण समाप्ति देखकर अत्यन्त प्रभावित हुआ था। तब से संघ काफी बढ़ गया है। मैं तो हमेशा से यह मानता आया हूँ कि जो भी संस्था सेवा और आत्म-त्याग के आदर्श से प्रेरित है, उसकी ताकत बढ़ती ही है।”
वहीं भीमराव आंबेडकर ने भी आरएसएस (RSS) के प्रति अपने विचार खुले मन से साझा किए थे। विश्व संवाद केंद्र के अनुसार, 2 जनवरी 1940 को डॉ. आंबेडकर ने महाराष्ट्र के कराड में आरएसएस की एक शाखा का दौरा किया। यह वह समय था जब संघ का नाम अपनी अनुशासित कार्यशैली के लिए जाना जाने लगा था। शाखा के इस दौरे पर डॉ. आंबेडकर ने स्वयंसेवकों से मुलाकात की और उन्हें संबोधित करते हुए कहा, “हालांकि हमारे विचार कुछ मुद्दों पर अलग हो सकते हैं, लेकिन संघ को मैं अपनेपन की भावना से देखता हूं।” यह बयान एक बड़े सामाजिक नेता के संघ के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण को दर्शाता है। यदि संघ में जातिवाद होता तो वह इस तरह की टिप्पणी नहीं करते।