National Herald Case: आजादी से पहले पंडित नेहरू के साथ कुछ नेताओं ने नेशनल हेराल्ड की स्थापना की और इसे अंग्रेजों के खिलाफ हथियार की तरह इस्तेमाल करने लगे। साल 1938 में शुरू हुआ ये अखबार आजादी के बाद कांग्रेस का मुखपत्र बन गया। सिलसिला 21वीं सदी तक चलता रहा। कांग्रेस का लगाव इससे इतना हुआ कि अखबार का प्रकाशन करने वाली कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) को करोड़ों का कर्ज दे दिया। हालांकि, जब वो कर्ज नहीं चुका पाई तो 2010 में कांग्रेस ने एक नई कंपनी के जरिए इसका अधिग्रहण कर लिया। क्योंकि, इसके पास देश में करोड़ों की संपत्ति थी। इतना ही नहीं इसके शेयर राहुल गांधी और सोनिया गांधी को बांट दिए गए। जब बवाल हुआ तो मामला देश के सामने आ गया और ED ने इस पर मामला दर्ज कर लिया। अब इसी का खामियाजा गांधी परिवार के साथ ही पूरी कांग्रेस को भुगतना पड़ रहा है। आइये जानें नेहरू की विरासत कांग्रेस की मुसीबत कैसे बन गई?
National Herald केस में ताजा अपडेट ये है कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) की 700 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्तियों को अपने कब्जे में लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। ये संपत्तियां दिल्ली के बहादुर शाह जफर मार्ग स्थित प्रतिष्ठित हेराल्ड हाउस के अलावा मुंबई और लखनऊ जैसे प्रमुख शहरों में हैं। ईडी ने कहा कि यह कार्रवाई PMLA-2002 की धारा 8 और उससे संबंधित नियमों के तहत की जा रही है। इससे पहले नवंबर 2023 में इन अचल संपत्तियों को अटैच किया गया था।
क्या है अब तक का घटनाक्रम?
- AJL की 700 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्तियों को ईडी ने अटैच कर कब्जे में लेने की प्रक्रिया शुरू की है।
- जांच में सामने आया कि यंग इंडियन के 76% शेयर राहुल और सोनिया के पास हैं।
- ईडी का दावा है कि 18 करोड़ रुपये फर्जी दान, 38 करोड़ एडवांस किराया और 29 करोड़ फर्जी विज्ञापन के रूप में जुटाए गए।
ईडी का यह कदम नेशनल हेराल्ड केस में बड़ी कार्रवाई माना जा रहा है। एजेंसी का कहना है कि वह अब इन अचल संपत्तियों को अपने नियंत्रण में लेने के लिए अगली प्रक्रिया जल्द पूरी करेगी। मामला फिलहाल न्यायिक जांच के अधीन है और कांग्रेस पार्टी इस मामले को राजनीतिक प्रतिशोध बता चुकी है। हालांकि, ईडी के दस्तावेज और अब तक की जांच रिपोर्ट से संकेत मिलते हैं कि जांच एजेंसी इस मामले को जल्द ही चार्जशीट दाखिल कर सकती है।
यहां से शुरू होती है कहानी
साल 1938, देश में आजादी की लड़ाई चल रही थी। इसे नए आयाम में ले जाने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू ने अंग्रेजी अखबार ‘नेशनल हेराल्ड’ की शुरुआत की। इसके साथ ही एक हिंदी और एक उर्दू अखबार का प्रकाशन शुरू हुआ। इसका नाम ‘नवजीवन’ और उर्दू में ‘कौमी आवाज’ हुआ करता था। इनके प्रकाशन का जिम्मा एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) नाम की कंपनी ने लिया। इसे नेहरू के साथ मिलकर अन्य नेताओं ने खड़ा किया था।
आजादी के पहले तक अखबार भारत की आवाज था। इसी कारण ब्रिटिश हुकूमत इससे घबराती थी। साल 1942 में ये अंग्रेजों को खटकने लगा और इस अखबार पर बैन लगा दिया गया। हालांकि, 3 साल बाद बैन हट गया। साल 1947 में देश आजाद हो जाता है। तीनों अखबारों की प्रतिष्ठा उसी तरह बनी रही। हालांकि, कुछ समय बाद इनके प्रकाशन में दिखने लगा कि ये किसी पार्टी का मुखपत्र हैं।
कांग्रेस ने दिया गैरकानूनी कर्ज
वर्षों तक ऐसा ही चलता रहा। अंत में 2008 तक ये आर्थिक तंगी के कारण AJL ने इसका प्रसारण रोक दिया। साल 2010 में कांग्रेस की दरियादिली जागती है। पार्टी ने AJL को अलग-अलग समय में कुल मिलाकर 90 करोड़ रुपये बतौर कर्ज दिए। जबकि, द रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपुल्स एक्ट 1950 के मुताबिक कोई राजनीतिक पार्टी किसी को कर्ज नहीं दे सकती। इसलिए यह कानूनी रूप से विवादास्पद हो गया।
कांग्रेस ने कैसे अपने हाथ में लिया स्वामित्व
AJL and National Herald: नवंबर 2010 में नई गैर-लाभकारी कंपनी ‘यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड’ की स्थापना होती है। इसके निदेशक कांग्रेस के विश्वस्त सुमन दुबे और सैम पित्रोदा जैसे लोग बने। अब ‘यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड’ ने 90 करोड़ के कर्ज के 50 लाख के बदले माफ कर दिया और AJL के सारे शेयर ले लिए। इसी के साथ यंग इंडियन के नियंत्रण में भारत के 7 शहरों में फैली AJL करोड़ की संपत्तियों आ गई।
सोनिया राहुल को ट्रांसफर हुए शेयर
ठीक एक महीने बाद ही दिसंबर 2010 में राहुल गांधी (Rahul Gandhi National Herald) और फिर जनवरी 2011 में सोनिया गांधी (Sonia Gandhi National Herald) इसके बोर्ड में शामिल कर लिया गया। इतना ही नहीं उनके नाम कंपनी के 76 प्रतिशत शेयर कर दिए गए।
कोर्ट में याचिका से हुआ विस्फोट
साल 2012 में बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने इस डील को “घोटाला” बताते हुए कोर्ट में केस किया। उनका आरोप था कि यंग इंडियन ने फर्जीवाड़ा कर महज 50 लाख में बहुमूल्य संपत्तियों पर कब्जा कर लिया गया है। AJL के अधिकांश पुराने शेयर धारकों को इसकी जानकारी तक नहीं दी गई। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर असली उद्देश्य समाचार पत्र को पुनः प्रकाशित करना था तो ऐसा क्यों नहीं किया गया? इससे साफ हो गया कि असली मंशा सिर्फ संपत्तियों पर कब्जे की थी।
ईडी की एंट्री और गांधी परिवार की मुश्किलें
प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मनी लॉन्ड्रिंग के एंगल से जांच शुरू की। जांच में सामने आया कि यंग इंडियन और AJL की संपत्तियों से फर्जी दान, एडवांस किराया और विज्ञापनों के नाम पर करोड़ों रुपये की अवैध कमाई की गई। इन आरोपों के बाद सोनिया गांधी और राहुल गांधी से पूछताछ भी हुई, जिसके चलते कांग्रेस ने इसे “राजनीतिक बदले” की कार्रवाई बताते हुए विरोध प्रदर्शन किए।
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विरासत से विवाद तक कांग्रेस (Nehru Legacy Become Problem)
नेहरू की विरासत का प्रतीक बना ‘नेशनल हेराल्ड’, अब एक कानूनी और राजनीतिक घमासान का कारण बन गया है। जहां कांग्रेस इसे षड्यंत्र करार देती है, वहीं बीजेपी इसे भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्रवाई का उदाहरण मानती है। सवाल सिर्फ इतिहास का नहीं, बल्कि उस राजनीति का भी है जो विरासत के नाम पर संपत्ति की बंदरबांट से जुड़ी हुई दिखती है। यह केस सिर्फ गांधी परिवार की छवि नहीं पर ही नहीं बल्कि भारतीय राजनीति की पारदर्शिता पर भी असर डाल सकता है।