राज्यपाल रवि के ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने पर हंगामा, क्या संविधान को भी नहीं मानते ‘रामद्रोही’?

तमिलनाडु के राज्यपाल RN Ravi ने जय श्रीराम के नारे लगवा दिए और इसपर सियासत होने लगी। जबकि, संविधान में भी भगवान राम की तस्वीर है। जानें कैसे पुरखों की सोच पर आज सियासत हो रही है।

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Politics Over RN Ravi Jai Shri Ram Slogan: मेरा भारत महान… इन शब्दों को हम बरसों से सुनते आ रहे हैं और गर्व से दोहराते आए हैं। रोम-रोम में राम को बसाने वाले महान देश की विडंबना देखिए कि यहां एक-दो बार नहीं, हजारों बार राम के नाम को लेने पर सवाल खड़े हो चुके हैं। राम मंदिर के लिए आंदोलन करने वालों को गोलियों से छलनी कर दिया जाता है। राम के अस्तित्व तक को नकारने की चेष्टा की जाती है। अब तो जय श्री राम कहने पर भी लोगों की छाती में सांप लोट रहे हैं। विडंबना उस देश की है जहां संविधान में भी राम की तस्वीर उकेरी गई ताकि भविष्य में यह देश उनके आदर्शों पर चल सके। अब उसी देश में राम का नाम लेना सांप्रदायिक और असंवैधानिक तक ठहराया जा रहा है।

ताजा मामला तमिलनाडु से सामने आया है। राज्यपाल आरएन रवि (Tamil Nadu Governor) द्वारा कंबन ऋषि के सम्मान में ‘जय श्री राम’ का नारा लगाया गया। बस फिर क्या था… सोशल मीडिया पर वीडियो आग की तरह फैलने लगे। राम का विरोध करने वालों ने तुरंत सेकुलर राष्ट्र के नाम पर राम को असंवैधानिक घोषित करना शुरू कर दिया। तो चलिए, जानते हैं कि आखिर हमारा संविधान इस बारे में क्या कहता है और कब-कब इस देश में राम के नाम पर सवाल उठे हैं।

कहां से उठा है विवाद

तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि मदुरै इंजीनियरिंग कॉलेज में छात्रों को सम्मानित और संबोधित (rn ravi speech) करने पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने प्रसिद्ध तमिल कवि कंबन को याद किया। जिन्होंने 12वीं शताब्दी में ‘कंब रामायण’ नाम से रामायण का तमिल संस्करण लिखा था। राज्यपाल आरएन रवि ने कहा ‘आज के दिन हम उस महापुरुष को श्रद्धांजलि दें, जो श्रीराम के महान भक्त थे। मैं कहूंगा ‘जय श्री राम’, आप भी कहिए ‘जय श्री राम’। इसके बाद छात्रों ने तेजी से जय श्री राम का नारा लगाया।

डीएमके प्रवक्ता धरणीधरन ने कहा कि यह देश के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ है। राज्यपाल बार-बार संविधान का उल्लंघन क्यों करना चाहते हैं? उन्होंने अभी तक इस्तीफा क्यों नहीं दिया है? वह आरएसएस के प्रवक्ता हैं। हम जानते हैं कि उन्होंने देश के संघीय सिद्धांतों का उल्लंघन कैसे किया और सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें उनकी जगह कैसे दिखाई है।

इतना ही नहीं इस मामले पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता शशिकांत सेंथिल ने सोशल मीडिया में पोस्ट किया। उन्होंने राज्यपाल पर तंज कसते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से फटकार लगाए जाने और राज्य सरकार की तरफ से रोके जाने के बाद अब वो सिस्टम को परेशान करने के लिए छात्रों से जय श्री राम के नारे लगवाने जैसे हथकंडे अपना रहे हैं। कांग्रेस विधायक जेएमएच अस्सन मौलाना ने कहा कि वह धार्मिक नेता की तरह बात कर रहे हैं। बच्चों से जय श्री राम का नारा लगवाना कुछ धार्मिक विचारधारा को बढ़ावा देना है। ये आरएसएस और भाजपा के प्रचार मास्टर बन गए हैं।

सवाल उठाने लगे लोग

रविवार स्टेट प्लेटफॉर्म फॉर कॉमन स्कूल सिस्टम, तमिलनाडु ने राज्यपाल द्वारा जय श्रीराम का नारा लगवाने को पद की शपथ का उल्लंघन बताया। इतना ही नहीं उन्हें इस काम के लिए पद से हटाने की मांग की जाने लगे। एसपीसीएसएस-टीएन ने राष्ट्रपति को पत्र लिखा और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 159 का हवाला देते हुए कहा गया कि राज्यपाल भारत के संविधान का संरक्षण, बचाव और सुरक्षा करने में विफल रहे हैं। इस कारण उन्हें पद से हटाया जाए।

क्या शपथ लेते हैं राज्यपाल?

‘मैं अमुक………. , ईश्वर की शपथ लेता हूं/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं श्रद्धापूर्वक …………….(राज्य का नाम) के राज्यपाल के पद का कार्यपालन (अथवा राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन) करूंगा तथा अपनी पूरी योग्यता से संविधान और विधि का परिरक्षण, संरक्षण और प्रतिरक्षण करूंगा और मैं …………… (राज्य का नाम) की जनता की सेवा और कल्याण में निरत रहूंगा ।”

आर्टिकल-159 का हवाला कितना सही

संविधान के आर्टिकल 159 में राज्यपाल की शपथ या प्रतिज्ञान के संबंध में बताया गया है। इस अनुच्छेद में उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश या उनकी अनुपस्थिति में उच्च न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश के द्वारा राज्यपाल के शपथ की व्यवस्था बताई गई है। शपथ का जो प्रारूप संविधान (Indian Constitution) में लिखा गया है। इसमें ये कहीं नहीं कहा गया कि राज्यपाल के रूप में बैठा कोई व्यक्ति राम या किसी भी पौराणिक पात्र का नाम का नाम नहीं ले सकता है। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि जबरन आर्टिकल-159 का हवाला देकर मामले में सियासत की जा रही है।

पुरखों की सोच पर आज सियासत

लगभग 800 वर्षों से ज्यादा के औपनिवेशिक शासन के बाद भारत ने 15 अगस्त 1947 को आजाद हुआ। एक संप्रभु राष्ट्र को संवैधानिक रूप से चलाने के लिए 9 दिसंबर, 1946 को ही संविधान सभा की पहली बैठक के साथ संविधान निर्माण का काम शुरू हो गया था। 1950 में जब संविधान की रचना अपने अंतिम चरण में थी। इसी समय बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर ने संविधान की मूल प्रति में भारत की कला, महापुरुषों और देवी-देवताओं के चित्रों को शामिल करने का प्रस्ताव रखा। चर्चा के बाद यह महत्वपूर्ण कार्य प्रसिद्ध चित्रकार श्री नंदलाल बोस को सौंपा गया। उनके सुझावों के आधार पर संविधान के पन्नों में महात्माओं और पौराणिक पात्रों की तस्वीर लगाई गईं। आइये जानते हैं कि तमिलनाडु का पूरा मामला क्या है और राम का नाम लेना कितना संवैधानिक या असंवैधानिक है।

संविधान में कहां और क्यों हैं राम?

संविधान का भाग-3 में हमारे मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) बताए गए हैं। इसके पहले पेज में श्री राम, सीता जी और लक्ष्मण का चित्र छापा गया है। राम दयालु एवं निष्पक्ष थे। उनके राज्य में प्रजा के प्रति मानवीय मनोभावों के दर्शन होते हैं। रामायण काल की बातें हमें बताती हैं कि सभी के लिए न्याय सुनिश्चित होना चाहिए। इन्हीं कारणों से संविधान के भाग-3 में भगवान राम की फोटो लगाई गई है।

Politics Over RN Ravi Jai Shri Ram Slogan
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संविधान में कृष्ण और हनुमान

केवल राम ही नहीं भारत के संविधान में कृष्ण और हनुमान की भी फोटो लगाई गई है। संविधान के भाग चार की शुरुआत कुरुक्षेत्र के चित्रण के साथ होती है। इसमें भगवान कृष्ण, अर्जुन को गीता का ज्ञान देते हुए नजर आ रहे हैं। इस भाग में राज्य की नीति के निदेशक तत्व बताए गए हैं। वहीं संविधान के भाग आठ की शुरुआत में हनुमानजी का चित्र लगा है। इसनें हनुमान सीता माता की तलाश में उड़ते हुए लंका जाते दिखाई दे रहे हैं।  इस में नाम राज्य (पहली अनुसूची के भाग ग के राज्य) है।

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पहले भी आए हैं ऐसे मामले

इतना ही नहीं इससे पहले भी कई मौके आए हैं जब किसी पद पर बैठे व्यक्ति का आस्था के कारण सवाल उठाए गए हैं। भगवान राम मंदिर भूमिपूजन और उसके बाद प्राण प्रतिष्ठा के लिए PM मोदी अयोध्या पहुंचे थे। इस समय सवाल उठाया गया था कि आखिर प्रधानमंत्री किसी एक धर्म का नहीं है। वहीं कुछ समय जस्टिस चंद्रचूड़ के घर पर गणेश पूजा हुई थी। इसमें प्रधानमंत्री मोदी भी शामिल हुए थे। इस पर उनके आस्था और कर्तव्य पर सवाल उठाए गए। मतलब साफ है कि कुछ लोग देश में हिंदुओं की आस्था को ठेस पहुंचाने का ठेका लिखा रखें हैं।

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हमारे पुरखों ने जब देश के भविष्य के लिए संविधान का निर्माण किया तो शायद ही उन्होंने यह कल्पना की होगी कि राम के नाम पर विवाद खड़ा होगा। उन्होंने तो राम के चित्र के जरिए से देश को ‘रामराज्य’ के आदर्शों पर चलाने की कल्पना की थी। उन्हें क्या पता था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब इसी देश में सार्वजनिक रूप से राम के नाम को ही असंवैधानिक करार दे दिया जाएगा। देश में उत्पन्न हो रही ऐसी सियासत ये सवाल भी खड़ा करती है कि क्या वाकई में कुछ नेताओं की राजनीति राम और हिंदुओं के खिलाफ होती जा रही है।

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