दिल्ली में जस्टिस यशवंत वर्मा के घर पर मिले नोटों के भंडार के बाद न्यायपालिका की जवाबदेही को लेकर नए सिरे से बहस शुरू हुई है जिसमें एक बड़ा सवाल जजों की संपत्ति को लेकर भी उठाया जा रहा है। कुछ दिनों पहले सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए सभी कार्यरत न्यायाधीश और भविष्य में नियुक्त होने वाले न्यायाधीशों की संपत्ति सार्वजनिक करने की बता कही थी जिसे सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर अपलोड किया जाना था। सुप्रीम कोर्ट और देश के 25 उच्च न्यायालयों की वेबसाइटों पर उपलब्ध आंकड़ों की समीक्षा से यह सामने आया है कि 11 अप्रैल 2025 तक देश की अलग-अलग अदालतों कार्यरत केवल 11.94% न्यायाधीशों ने ही अपनी संपत्ति का सार्वजनिक रूप से खुलासा किया है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के 33 में से 30 न्यायाधीशों ने मुख्य न्यायाधीश को अपनी संपत्ति का विवरण सौंपा है, लेकिन तकनीकी समस्याओं के कारण ये जानकारी फिलहाल सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है।
‘बार ऐंड बेंच’ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस मामले में उच्च न्यायालयों की स्थिति वाकई चिंता का विषय है। देशभर में कार्यरत 762 हाईकोर्ट जजों में से सिर्फ 95 यानी करीब 12.5% न्यायाधीशों की संपत्ति की जानकारी ही उनकी संबंधित अदालतों की वेबसाइटों पर उपलब्ध है। हैरानी की बात यह है कि देश के 18 उच्च न्यायालयों ने तो अब तक अपने जजों की संपत्ति की कोई भी जानकारी सार्वजनिक नहीं की है। इस सूची में इलाहाबाद हाई कोर्ट भी शामिल है जो देश का सबसे बड़ा हाई कोर्ट है और जहां फिलहाल 81 जज कार्यरत हैं। साथ ही बॉम्बे, कलकत्ता, गुजरात और पटना जैसे प्रमुख हाई कोर्ट भी इस पारदर्शिता से अब तक दूर हैं। वहीं, केरल उच्च न्यायालय के 44 में से 41 करीब 93% न्यायाधीशों ने अपनी संपत्ति सार्वजनिक की है हालांकि यह सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले के बाद हुआ है। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के 12 में से 11 जजों ने संपत्ति सार्वजनिक की हुई है।
जजों की संपत्ति को लेकर क्या कहता है कानून?
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों के लिए अपनी संपत्ति की घोषणा करना कानूनन अनिवार्य नहीं है। सुप्रीम कोर्ट न्यायाधीश (वेतन और सेवा शर्तें) अधिनियम, 1958 और हाईकोर्ट न्यायाधीश (वेतन और सेवा शर्तें) अधिनियम, 1954, और इनके तहत बने नियमों में इस तरह की कोई बाध्यता नहीं है। अब तक जो भी घोषणाएं न्यायाधीशों ने की हैं वो पूरी तरह स्वैच्छिक रही हैं और ये सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक संस्तुतियों के आधार पर की गई हैं।
वहीं, संसद की एक समिति ने न्यायधीशों की संपत्ति को सार्वजनिक किए जाने की बात कही थी। अगस्त 2023 में कार्मिक, लोक शिकायत और विधि एवं न्याय पर संसद की स्थायी समिति ने कहा था कि न्यायाधीशों को अपनी संपत्ति और देनदारियों का खुलासा करना चाहिए। इसके लिए समिति ने सांसदों या विधायकों की संपत्ति सार्वजनिक किए जाने से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया था। समिति ने इसके लिए एक कानून तक लाने की सिफारिश की थी। बाद में सरकार ने राज्यसभा में बताया था कि यह मुद्दा सुप्रीम कोर्ट के सामने उठाया गया और SC ने इस पर एक कमिटी का गठन भी किया। बाद में कमिटी ने प्रस्ताव दिया कि SC की वेबसाइट पर उन न्यायाधीशों के नाम प्रदर्शित किए जाने चाहिए जिन्होंने मुख्य न्यायाधीश के सामने अपनी संपत्ति की घोषणा कर दी है। जिसके बाद जजों के नाम सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर प्रकाशित किए गए थे।