टैम्बोरा का ‘महाप्रलय’, काल के गाल में समा गए 1 लाख लोग, कई दिन ओझल रहा सूरज; 200 साल से गूंज रही आवाज

Tambora Volcano Eruption: आज हम आपको तांबोरा ज्वालामुखी विस्फोट की कहानी बता रहे हैं। जिसने दिन में रात और गर्मी में सर्दी का मौसम कर दिया था।

Tambora Volcano Eruption

Tambora Volcano Eruption

Tambora Volcano Eruption: सूरज के चारो ओर एक ही गति में शांति घूमती हमारी धरती…हमें जल, जंगल, जमीन के साथ कई मौसम से जवाजती है। खुद पर पनप रही सभ्यताओं को जीवन देती है। हालांकि, ये हमेशा नहीं होता है। कई बार धरती धकती है और उसे गुस्सा भी आता है। इसका नतीजा किसी विध्वंस की सक्ल में बाहर आता है। जब कभी ऐसा होता है तो उसे ही आपदा कहा जाता है। इसका खामयाजा उन जीवों या सभ्यताओं को तो होता ही है जो धरती में पल रहे होते हैं। इसका असर वर्षों तक जारी रहता है। हालांकि, इससे भविष्य के लिए कई बदलाव के रास्ते भी खुलते हैं और हमारे पास अपनी गलतियों को सुधारने का एक मौका भी होता है।

आज हम एक ऐसी ही घटना (Story Of 1815 Tambora Volcano) के बारे में बात कर रहे हैं जिसने कुछ सालों के लिए मौसम का चक्र बदल दिया। दुनिया के नक्शे में एक नए पहाड़ को जन्म दिया और व्यापक प्रलयकाल में करीब 1 लाख लोगों की जान ले ली। हम बात कर रहे हैं आज से 210 साल पहले यानी अप्रैल 1815 में इंडोनेशिया में हुए एक विस्फोट की जिसे 200 साल बाद भी वैज्ञानिक और इतिहासकर लिखने और समझने में व्यस्त हैं।

5 अप्रैल से शुरू हो गई थी तबाही (tambora history)

इंडोनेशिया के सुम्बावा द्वीप पर स्थित माउंट तांबोरा का नाम (tambora volcano) इतिहास की सबसे भयानक और विनाशकारी घटनाओं (Volcano Eruption in Sumbawa Indonesia) में शुमार है। 5 अप्रैल से 17 अप्रैल 1815 के बीच फटा ज्वालामुखी इतना भीषण था कि इसे इतिहास का सबसे भयानक विस्फोट कहा जाता है। पर्वत की ढलानों से बहती जलती राख ने जंगलों को निगल लिया। जमीन कांपी और जावा सागर तक सुनामी की लहरें उठ गईं। करीब 12 दिन तक चले इस मंजर में तो 1000 हजार लोगों की मौत हो गई थी। इतिहासकार बताते हैं कि इसके बाद इसके असर से करीब 1 लाख लोगों की मौत हुई है।

17 अप्रैल तक चला ज्वालामुखी का गुस्सा

सुम्बावा का 13,000 फुट ऊंचा माउंट तांबोरा 5 अप्रैल को अचानक जाग उठा। शुरू में इसने अपना गुस्सा दिखाना शुरू किया तो बस थोड़ी सी गड़गड़ाहट हुई। इसके बाद 10 अप्रैल ज्वालामुखी पूरी ताकत से फट पड़ा। किसी खंबे की तरह आग आसमान में उठने लगी। धुआं व गैस 25 मील ऊपर तक पहुंच गए। इसके बाद 12 अप्रैल को जबरदस्‍त धमाका हुआ। इसकी शॉकवेव्‍स काफी दूर तक पहुंची और इलाके के कई मकान धराशाई हो गए। अभी भी लोगों को इसके बारे मं बहुत कुछ पता नहीं था। इसी बीच 17 अप्रैल ने रही सही कस पूरी हो गई।

10 हजार लोगों का काल

17 अप्रैल 1815 को ज्‍वालामुखी के मुख से लावा बाहर आने लगा था। खेत जंगल और घर आग का गोला बन गए। इसकी चपेट में जो भी आया खाक हो गया। गड़गड़ाहट करब डेढ़ सौ किलोमीटर दूर तक सुनाई पड़ रही थी। कुछ दिनों के बाद जब ज्वालामुखी शांत हुआ तो ये करीब 10 हजार लोगों का काल बन चुका था। आसपास के द्वीपों पर रहने वाले बचे नहीं। इसने लोगों की सोच को बदलकर रख दिया था। लगातार हुए धमाकों कारण तमबोरा का चेहरा बदल गया था।

दुनिया में छोड़ी छाप

जब ज्वालामुखी फटा तो 12 क्यूबिक मील गैस, धूल, और पत्थर आसमान में उगल दिए। ज्वालामुखी की ऊंचाई 14,000 फुट तक पहुंच गई। गर्म राख की नदियां पहाड़ के किनारों से नीचे बहीने लगीं। इसन सबकुछ जला डाला-घास, जंगल, सब तबाह हो गए। जमीन इतनी कांपी कि जावा सागर में सुनामी दौड़ पड़ी। एक पल में 10,000 लोगों की जान चली गई। इसके बाद भी इससे दुनियाभर में करीब 1 लाख लोगों की मौत हुई। तांबोरा के विस्फोट का असर सुम्बावा तक नहीं रुका। इसने पूरी दुनिया पर अपनी छाप छोड़ी।

सूरज पर पड़ी काली छाया

Tambora Eruption से से निकली राख और गैस आसमान में फैल गईं। सूरज की रोशनी मानों की काली चादर से ढ़क दी गई थी। कुछ दिनों तक तो दिन ही नहीं हुआ। सबसे गहरी चोट पृथ्वी के वातावरण को हुई थी। राख और सल्फर से भरे बादल पूरी पृथ्वी के आसमान में फैल गए थे। हालात कुछ ऐसे बने थे कि आज भी 1816 के साथ को बिना गर्मी वाला साल (Global Cooling Year) कहा जाता है।

– अमेरिका में बर्फबारी और ओले जुलाई तक चले
– यूरोप में फसलें नष्ट हो गईं
– आयरलैंड में अकाल और टायफस फैला
– चीन और तिब्बत में हजारों जानवर मारे गए

अमेरिका, यूरोप और एशिया में तबाही (tambora impact)

अमेरिका के न्यू इंग्लैंड, वर्जीनिया तक मई में बर्फ पड़ने लगी। जून में लोग स्लेज चला रहे थे। जुलाई में पानी जमने लगा। आयरलैंड में 8 हफ्ते तक बारिश होती रही। फसल खत्म बर्बाद हो गईं। भुखमरी ने यूरोप और ब्रिटेन की हालत खराब कर दी। यहां टायफस नाम की बीमारी के कारण हजारों लोगों की जान चली गई। चीन और तिब्बत में ठंड इतनी बढ़ी कि पेड़ तक जम गए। मावेशी मरने लगे और रही कसर बाढ़ ने पूरी कर दी।

ये भी पढ़ें: कुछ ऐसे सर्वाइवर जो भीषण आपदाओं में भी सकुशल निकल आए!

पलायन से बने नए राज्य

बेहतर मौसम की उम्मीद में अमेरिका के न्यू इंग्लैंड से हजारों लोग ओहायो नदी के पास चले गए। इस वजह से इंडियाना 1816 में और इलिनॉय 1818 में स्टेट बने। राज्य ही नहीं बने बल्की कई भूतिया और डरावनी कहानियों को भी जन्म दिया। ऐसी कहानियां जो इंसान के प्रकृति के साथ छेड़खानी के खतरों को दिखाती है।

वैज्ञानिकों की आंखों में चेतावनी

वैज्ञानिकों ने पाया कि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ में तांबोरा की राख आज भी मिलती है। यह आज के लिए चेतावनी है कि अगर प्रकृति का इतना असर हो सकता है, तो मानवजनित प्रदूषण का क्या असर होगा? यह जीवन, प्रकृति और हमारी सीमाओं को समझने की एक यात्रा थी। तांबोरा की ज्वाला ने जहां तबाही मचाई, वहीं आज यह हमें याद दिलाती है कि धरती और इंसान एक-दूसरे से कितने गहराई से जुड़े हैं।

‘खेल बंद करो बरना अंजाम भयानक होगा’

तांबोरा का विस्फोट (mount tambora eruption) आज भी हमें चेतावनी देता है। वैज्ञानिक इसके सल्फर के निशान ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ में ढूंढते हैं। ये इस बात का सबूत है कि एक छोटा सा ज्वालामुखी कितना बड़ा बदलाव ला सकता है। ग्लोबल वॉर्मिंग और ओजोन लेयर के खतरे के दौर में तांबोरा हमें याद दिलाता है कि हमें अपनी धरती का ख्याल रखना होगा। ये कहानी सिर्फ एक ज्वालामुखी की नहीं बल्कि उसकी ताकत, उसके असर और उससे मिले सबक की है। तांबोरा का तूफान हमें कहता है कि प्रकृति के साथ खेलना बंद करो वरना अंजाम भयानक होगा।

Exit mobile version