पश्चिम बंगाल में वक्फ संशोधन कानून 2025 को लेकर हिंसा का दौर लगातार जारी है। मुर्शिदाबाद ज़िले से शुरू हुई हिंसा आस-पास के ज़िलों में फैलने लगी है और कम-से-कम 3 हिंदुओं की हत्या कर दी गई है। पश्चिम बंगाल की ममता सरकार के कई मंत्री खुलेआम भड़काऊ बयानबाज़ी कर रहे हैं और राजधानी की सड़कों को जाम करने की धमकी दे रहे हैं। खुद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी देश की संसद द्वारा पारित वक्फ संशोधन कानून को राज्य में ना लागू करने की बात कह चुकी हैं और उन्होंने इस बात को दोहराया भी है। ममता और उनके मंत्रियों के बयान के बाद कट्टरपंथियों के हौसले इस कदर बुलंद हैं कि पुलिस भी हिंसा पर काबू पाने में सफल नहीं हो पा रही है। BSF को मैदान में उतारा गया है जिसके बाद स्थिति को नियंत्रण में लाने की कोशिश जारी है। खौफ के इस माहौल के चलते सैकड़ों हिंदू अपना घर छोड़कर जाने को मजबूर हैं।
पलायन पर TMC के बेतुके बोल
हिंसा के बाद एक ओर जहां लोग घर छोड़ने को मजबूर हैं तो दूसरी ओर तृणमूल कांग्रेस (TMC) के नेता जले पर नमक छिड़कने का काम कर रहे हैं। TMC के वरिष्ठ नेता और ममता सरकार में मंत्री फिरहाद हकीम ने कह दिया है कि राज्य में सब ठीक है। उन्होंने पलायन को लेकर कह दिया है कि लोग बंगाल के भीतर ही पलायन कर रहे हैं। उनका कहना है कि जो लोग हिंसा से प्रभावित इलाकों से अपना घर छोड़कर जा रहे हैं, वे बंगाल छोड़कर नहीं जा रहे हैं। उन्होंने इसे पीछे तर्क दिया है कि बंगाल सुरक्षित हैं जिसके चलते लोग बंगाल में ही पलायन कर रहे हैं। बंगाल में हिंसा के चलते हज़ारों लोग प्रभावित हैं और बीजेपी ने मुर्शिदाबाद से 400 से अधिक हिंदुओं के पलायन की बात कही है।
बंगाल छोड़कर दूसरे राज्यों में जा रहे लोग
फिरहाद हकीम जैसे नेता हिंसा के बाद बेशक आंखें मूंदकर बैठे हैं लेकिन असल में लोग डर के चलते ना सिर्फ ज़िला छोड़ने को मजबूर हैं बल्कि राज्य को छोड़कर दूसरे राज्यों में शरण ले रहे हैं। ईटीवी भारत की एक रिपोर्ट के मुताबिक, बंगाल से हिंसा प्रभावित लोग झारखंड के अलग-अलग इलाकों में पहुंच रहे हैं। पलायन के बाद पश्चिम बंगाल के हिंदू झारखंड के साहिबगंज, पाकुड़ और राजमहल में पहुंच गए हैं और इनके आने का सिलसिला अभी जारी ही है। बंगाल छोड़कर जा रहे परिवार दंगाइयों की ज़्यादतियों की कहानी सुना रहे हैं। पीड़ितों का कहना है कि हिंसा के कई घंटे बाद पुलिस घटनास्थल पर पहुंची और जब तक पुलिस पहुंची तब तक बहुत देर हो चुकी थी। झारखंड पहुंचे एक पीड़ित परिवार के एक सदस्य का कहना है कि वे अपनी मां को मरीज़ बनाकर एंबुलेंस के माध्यम से हिंसा की लपटों से बचकर निकले हैं।
हिंसा के बाद लोगों के बंगाल छोड़ने की दर्ज़नों दर्दनाक कहानियां हैं। मुर्शिदाबाद से हिंदू जान बचाकर अलग-अलग जगहों पर भाग रहे हैं और TMC के नेता को इसमें ‘पर्यटन’ नज़र आ रहा है। हिंसा के बाद लोगों के घर या इलाका छोड़ने का इतिहास बहुत पुराना है। आज़ादी के समय हुए दंगों के बाद करोड़ों लोगों को अपना घर छोड़ने को मजबूर होना पड़ा था। कश्मीर घाटी से हिंदुओं को रातों-रात अपने घर छोड़कर कैसे भागना पड़ा, उसकी जानकारी हम सभी को है। इस घटना को दशकों बीत गए हैं लेकिन कश्मीरी पंडित आज भी अपनी वापसी का इंतज़ार कर रहे हैं। देश के जिस भी हिस्से में हिंसा होती है, वहां लोगों को इसी तरह पलायन करने को मजबूर कर दिया जाता है और उनकी प्रॉपर्टी पर एक धर्म के विशेष को लोग कब्ज़ा कर लेते हैं। संभल में 1978 में हुए दंगों के बाद लोगों को घर छोड़कर जाना पड़ा था। उनमें से कई घरों पर कब्जा कर लिया गया, यहां तक कि मंदिर को नहीं छोड़ा गया। पिछले दिनों कई ऐसे मंदिर यूपी में मिले थे।
बंगाल में हिंसा के हालात ने एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े किए हैं खासकर पुलिस और प्रशासन की निष्पक्षता और विश्वसनीयता पर। जब हिंसा के पीड़ित खुद पुलिस पर सवाल उठा रहे हों तो यह स्पष्ट है कि सुरक्षा एजेंसियों के प्रति आम लोगों का भरोसा डगमगा चुका है। बार-बार होने वाली हिंसक घटनाएं और इनमें भी खासकर धार्मिक आधार पर निशाना बनाए जाने की खबरें बताती हैं कि बंगाल की व्यवस्था में कहीं न कहीं कमी है। जब राज्य के मंत्री हिंसा के बीच ‘सब ठीक’ होने का दावा करते हैं या किसी धर्म विशेष के लोगों को भड़काने का काम करते हैं तो यह न केवल शासन की विफलता को दिखाता है बल्कि लोगों के बीच विभाजन की खाई को और गहरा करता है।
पुलिस अगर पक्षपात करने लगे तो आम नागरिक के पास क्या विकल्प बचता है? बंगाल में हाल के वर्षों में जिस तरह हिंदू समुदाय को निशाना बनाया गया है, उससे यह लगभग स्पष्ट हो जाता है कि यह हिंसा एक योजनाबद्ध तरीके से की जा रही है। हिंदू समुदाय के लोगों को डराया जाए, उनका मनोबल तोड़ा जाए और फिर उन्हें पलायन के लिए मजबूर कर दिया जाए। हालांकि, यह समझना होगा कि ऐसी स्थितियों में पलायन कोई समाधान नहीं है। पलायन तो उसी डर को जीत देना है जिसके लिए हिंसा को थोपा जा रहा है। अब समय आ गया है कि हिंदू समुदाय इस अन्याय के खिलाफ एकजुट हो।
अब लगता है कि पलायन के बजाय बंगाल में और हिंदुओं को पहुंचना जाना चाहिए और बताना चाहिए कि जिन लोगों को निशाने बनाने की साज़िश हो रही है वे अकेले नहीं हैं। एकजुटता ही बंगाल की हिंसा का प्रति उत्तर हो सकती है। यह समय केवल शिकायत करने का नहीं बल्कि साहस के साथ खड़े होने, संगठित होने का और हर उस व्यक्ति का साथ देने का जो इस हिंसा का शिकार हो रहा है। हिंसा शारीरिक तो होती ही है लेकिन यह मनोवैज्ञानिक और सामाजिक स्तर पर भी समाज को तोड़ती है। अगर पुलिस और प्रशासन अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा रहे तो नागरिकों को खुद अपनी रक्षा के लिए कदम उठाने ही होंगे। यह हिंसा को बढ़ावा देने की बात नहीं है लेकिन आत्मरक्षा और एकजुटता का अधिकार हर नागरिक का है। यह राह मुश्किल ज़रूर है लेकिन अब डर के खिलाफ मजबूती से खड़े होने का समय है।