भारत-पाकिस्तान युद्ध की स्थिति में क्या हो सकता है चीन का रुख?

भारत और पाकिस्तान के बीच हुए पिछले युद्धों के दौरान क्या रही है चीन की भूमिका, पढ़ें

जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ ताबड़तोड़ एक्शन लेना शुरू कर दिया है। भारत की जवाबी कार्रवाई के बाद दोनों देशों के बीच युद्ध की अटकलें लगाई जा रही हैं। पाकिस्तान के कई नेता तो परमाणु बम की गीदड़ भभकी तक दे रहे हैं। भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर लगातार दुनिया भर के नेताओं से बातचीत कर पाकिस्तान की इस कायराना हरकत की जानकारी दे रहे हैं। वहीं, पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री व विदेश मंत्री इशाक डार ने भी दुनिया के कई नेताओं से बातचीत की है। इस कड़ी में इशाक डार ने रविवार (27 अप्रैल) को चीन के विदेश मंत्री वांग यी से बातचीत की है। वांग यी ने इस बातचीत के दौरान पाकिस्तान की ‘निष्पक्ष जांच’ की मांग का समर्थन किया है।

पहलगाम हमले पर क्या बोला था चीन?

पहलगाम में हुए हमले में पाकिस्तान से आए और उसके समर्थित आतंकियों ने कम-से-कम 26 निर्दोष नागरिकों की गोली मारकर हत्या कर दी थी। चीन के राजनयिकों ने इस हमले के अगले ही दिन निंदा की थी। भारत में चीन के राजदूत जू फेइहोंग ने 23 अप्रैल को इस हमले की निंदा करते हुए कहा, “पहलगाम में हुए हमले से स्तब्ध हूं और इसकी निंदा करता हूँ। पीड़ितों के प्रति गहरी संवेदना और घायलों तथा शोक संतप्त परिवारों के प्रति हार्दिक सहानुभूति। सभी प्रकार के आतंकवाद का विरोध करें।”

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गुओ जियाकुन ने भी इस हमले की निंदा की थी। चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स की एक खबर के मुताबिक, जियाकुन ने एक सवाल के जवाब में कहा, “हम सभी प्रकार के आतंकवाद का दृढ़तापूर्वक विरोध करते हैं, पीड़ितों के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करते हैं तथा शोक संतप्त परिवारों और घायलों के प्रति हार्दिक सहानुभूति व्यक्त करते हैं।”

यहां यह बात भी गौर करने लायक है कि जब अमेरिका, इज़रायल और ब्रिटेन समेत दुनिया के कई देशों के प्रमुखों ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन कर इस हमले की निंदा की है और अपने-अपने स्तर पर भी बयान जारी किए हैं तब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने इस हमले के खिलाफ अब तक कुछ नहीं कहा है।

पांडिचेरी विश्वविद्यालय में पॉलिटिक्स और इंटरनेशनल स्टडीज़ विभाग के HOD डॉ. नंदा किशोर एमएस ने इस मामले को लेकर TFI से बातचीत के दौरान कहा, “कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले की चीन द्वारा की गई ‘मौन निंदा’ एक सावधानीपूर्वक संतुलित कूटनीतिक रुख को दर्शाती है। अन्य प्रमुख शक्तियों के विपरीत जिन्होंने उच्चतम स्तर पर हमले की निंदा की, चीन की प्रतिक्रिया दक्षिण एशिया में उसके रणनीतिक हितों को दर्शाती है। पाकिस्तान के साथ चीन की गहरी और स्थायी साझेदारी चीन को कश्मीर में आतंकवाद से जुड़े मुद्दों पर सावधानी से कदम उठाने के लिए मजबूर करती है।”

डॉ नंदा ने इसकी कई वजह बताई हैं, उनका कहना है, “कड़ी निंदा को पाकिस्तान की आलोचना के रूप में देखा जा सकता है, जिससे उनके ‘सदाबहार’ संबंधों में तनाव पैदा हो सकता है। इसके अलावा चीन का आधिकारिक रुख कश्मीर को एक विवादित क्षेत्र मानता है और एक स्पष्ट, उच्च-स्तरीय निंदा से इस क्षेत्र पर भारत की संप्रभुता को मान्यता मिलने का जोखिम है, और इससे बीजिंग बचना चाहता है। सीमा पर टकराव और बढ़ती भू-राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के चलते चीन और भारत के बीच प्रतिस्पर्धात्मक संबंधों को देखते हुए, बीजिंग द्वारा नई दिल्ली को बिना किसी शर्त के कूटनीतिक समर्थन देने की संभावना बेहद कम है। अपने प्रत्यक्ष हितों के आधार पर आतंकवाद की चुनिंदा निंदा करने का चीन का पैटर्न भी उसकी कम-प्रोफाइल प्रतिक्रिया को स्पष्ट करता है। चीन की नपी-तुली प्रतिक्रिया पाकिस्तान के साथ उसका रणनीतिक गठबंधन, उसकी कश्मीर नीति और भारत के साथ उसकी व्यापक प्रतिद्वंद्विता का मिश्रण दर्शाती है, जो दर्शाती है कि भू-राजनीतिक हित किस प्रकार मानवीय प्रतिक्रियाओं को भी आकार देते हैं।”

चीन-पाकिस्तान के विदेश मंत्रियों की बातचीत

जब भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव अपने चरम की तरफ बढ़ रहा है तो ऐसे में चीन के विदेश मंत्री वांग यी और पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशाक डार की फोन पर बातचीत हुई है। ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन कश्मीर में आतंकवादी हमले के बाद पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव की उभरती स्थिति पर बारीकी से नज़र रख रहा है। साथ ही, चीन ने ‘निष्पक्ष जांच’ की तत्काल शुरुआत का समर्थन किया है। गौरतलब है कि इस हमले के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने निष्पक्ष जांच की बात कही थी, उनका कहना था कि पाकिस्तान को बदनाम किया जा रहा है।

वहीं, डार ने वांग यी के साथ बातचीत के दौरान कहा कि पाकिस्तान हमेशा आतंकवाद का मुकाबला करने में दृढ़ रहा है और ऐसी कार्रवाइयों का विरोध करता है जो तनाव बढ़ा सकती हैं। वांग यी ने कहा कि आतंकवाद से लड़ना सभी देशों की साझा ज़िम्मेदारी है और चीन लगातार पाकिस्तान की आतंकवाद विरोधी कार्रवाई का समर्थन करता है। इसके बाद वांग यी ने कहा कि उम्मीद है कि दोनों पक्ष संयम बरतेंगे, एक-दूसरे की ओर बढ़ेंगे और तनाव कम करने के लिए काम करेंगे। उन्होंने पाकिस्तान की चिंताओं को लेकर कहा कि चीन, पाकिस्तान की वैध सुरक्षा चिंताओं को पूरी तरह समझता है और उसकी संप्रभुता और सुरक्षा हितों को बनाए रखने के उसके प्रयासों का समर्थन करता है।

पुराने भारत-पाक युद्ध में क्या रहा है चीन का रुख?

पहला भारत-पाक युद्ध

पहला भारत-पाक युद्ध 1947 में शुरू हुआ था, पाकिस्तान उस समय किसी भी तरह से तत्कालीन जम्मू और कश्मीर राज्य को हड़पना चाहता था और पाकिस्तानी सैनिकों ने कबीलाई लड़ाकों के वेश में  हमला कर दिया था। तब तक महाराजा हरि सिंह ने तय नहीं किया था कि वे पाकिस्तान के साथ जाएंगे या हिंदुस्तान के। अक्टूबर 1947 में पाकिस्तान से आए इन हज़ारों सैनिकों और लड़ाको ने जम्मू-कश्मीर में कहर बरपाना शुरू कर दिया। निर्दोष लोगों की हत्या की गई, महिलाओं पर अत्याचार किए गए और गांव-शहरों में जमकर तबाही मचाई गई। हालांकि, इसके बाद महाराजा ने विलय पत्र में हस्ताक्षर किए और जम्मू-कश्मीर भारत का अंग बन गया। इसके तुरंत बाद भारतीय सेना ने मोर्चा संभाल लिया और पाकिस्तानियों को मुंह की खानी पड़ी।

1947-48 के भारत-पाक युद्ध के दौरान भारतीय सैनिक

उस समय पाकिस्तान नया-नया बना था और चीन गृह युद्ध से जूझ रहा था। दोनों देशों के बीच कोई औपचारिक संबंध नहीं थे इसलिए तब चीन ने पाकिस्तान की कोई मदद नहीं की। पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट के मुताबिक, पाकिस्तान और चीन ने 21 मई 1951 को राजनयिक संबंध स्थापित किए थे। पाकिस्तान उन पहले देशों में से एक था जिसने पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना को मान्यता दी थी। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की वेबसाइट कहती है कि पाकिस्तान, चीन को अपने सबसे करीबी दोस्तों और भागीदारों में से एक मानता है और चीन, पाकिस्तान को अपना आयरन ब्रदर मानता है।

1965 का भारत-पाक युद्ध

युद्ध की शुरुआत 24 अप्रैल 1965 को हुई, जब पाकिस्तानी सेना ने कच्छ के रण में भारतीय क्षेत्र पर हमला किया और भारतीय क्षेत्र में छह से आठ मील तक घुस आई। भारतीय क्षेत्र पर अवैध कब्जे का यह कृत्य भारत-पाक सीमा समझौते 1960 और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुसार अंतरराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन था। इसके बाद पाकिस्तानी सेना ने ऑपरेशन जिब्राल्टर की शुरुआत करके कश्मीर में घुसपैठ की जिसका भारतीय सेना के जवाब दिया। जब पाकिस्तान का ऑपरेशन जिब्राल्टर धराशायी हो गया तो पाकिस्तान ने 1 सितंबर 1965 में ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम शुरू किया जिसका लक्ष्य अखनूर पर कब्जा करना था। 3 सितंबर 1965 को तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की अध्यक्षता वाली कैबिनेट की आपातकालीन समिति ने एक व्यापक सैन्य प्रतिक्रिया को ‘हरी झंडी’ दी और पाकिस्तान की फिर से मुंह की खानी पड़ी।

कच्छ का रण मे शुरू हुआ 1965 का भारत-पाक युद्ध

इस युद्ध में पाकिस्तान की मदद करने वाले देशों में चीन, ईरान, तुर्की और सऊदी अरब शामिल थे। 1962 के चीन-भारत युद्ध के बाद पाकिस्तान के चीन के साथ संबंध और गहरे हो गए थे। चीन ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया और भारत के आक्रमणों को ‘नग्न आक्रमण’ करार दिया और भारत पर ही युद्ध विराम के लिए दबाव डाला था। भारत-पाक युद्ध के बीच में 16 सितंबर 1965 को चीन ने औपचारिक रूप से भारत को चेतावनी दी कि वह 3 दिनों के भीतर चीन-सिक्किम सीमा पर या उससे आगे के सभी सैन्य प्रतिष्ठानों को नष्ट कर दे वरना ‘गंभीर परिणाम’ भुगतने के लिए तैयार रहे। इसके चलते भारत को चीन से सटी सीमा पर सैनिक भेजने पड़े जो अप्रत्यक्ष तौर पर पाकिस्तान की मदद ही थी।1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान चीन ने पाकिस्तान को ‘एंटी-टैंक मिसाइल’ और ‘सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल’ सहित सैन्य उपकरण प्रदान कर सहयोग दिया

अमेरिका खुफिया एजेंसी की 1966 की एक टॉप सीक्रेट फाइल में लिखा गया था, “चीन पिछले साल पाकिस्तान का सैन्य हार्डवेयर का प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन गया थी। अब तक बीजिंग ने शायद एक दर्जन IL-28 बीगल जेट लाइट बॉम्बर, लगभग 50 MIG-19 फार्मर जेट फाइटर और लगभग 100 टैंक उपलब्ध कराए हैं। तोपखाना, छोटे हथियार और गोला-बारूद भी भेजे गए हैं। चीनी इस सहायता को उस सुविधा-संबंध को बनाए रखने की कीमत के रूप में देखते हैं जो मुख्य रूप से भारत के प्रति साझा विरोध भावना पर आधारित है। पाकिस्तान ने सैन्य सहायता के लिए बीजिंग की ओर रुख किया क्योंकि उसे 1965 में भारत के साथ सीमा युद्ध के बाद जितनी जल्दी हो सके अपने सशस्त्र बलों का पुनर्निर्माण करने की आवश्यकता थी।”

CIA की रिपोर्ट में कहा गया था, “भारत ने यह भी आशंका जताई है कि चीन-पाकिस्तान सैन्य सहयोग सैन्य सहायता कार्यक्रम से आगे भी जाता है। उदाहरण के लिए, नई दिल्ली के अधिकारियों का दावा है कि पेकिंग ने गुप्त रूप से रावलपिंडी को परमाणु हथियार कार्यक्रम में सहायता करने पर सहमति जताई है। अभी तक इन अफवाहों की कोई पुष्टि नहीं हुई है।”

1971 का भारत-पाक युद्ध

1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ा था। पाकिस्तान के पूर्वी हिस्से (अब बांग्लादेश) में भाषा, संस्कृति और राजनीतिक असमानताओं के कारण नागरिक उथल-पुथल शुरू हो गई थी। मार्च 1971 में, पाकिस्तान की सेना ने बांग्लादेश मुक्ति संग्राम को कुचलने के लिए हिंसा का सहारा लिया, जिसके चलते लाखों लोग मारे गए और बड़ी संख्या में लोग भारत में शरण लेने आ गए। पाकिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 को भारत पर आक्रमण किया जिसके जवाब में भारत ने पश्चिमी और पूर्वी मोर्चे पर पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध शुरू कर दिया। भारतीय सेना ने कई अहम शहरों पर नियंत्रण प्राप्त किया और 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान की सेना ने ढाका में आत्मसमर्पण कर दिया जिसके बाद बांग्लादेश स्वतंत्र हो गया।

ढाका में पाक सेना ने किया आत्मसमर्पण

1971 के युद्ध में कूटनीति तौर पर चीन ने खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया था। ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ की नवंबर 1971 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, “चीन ने भारत और पाकिस्तान से अपने सीमा विवाद का शांतिपूर्ण समाधान खोजने का आह्वान किया लेकिन चेतावनी दी कि वह युद्ध की स्थिति में पाकिस्तान का ‘दृढ़ता से समर्थन’ करेगा। यह चेतावनी चीन के कार्यवाहक विदेश मंत्री ची पेंग-फेई ने दी थी। ची ने घोषणा की, ‘हमारे पाकिस्तान के लोग निश्चिंत रहें कि यदि पाकिस्तान पर विदेशी आक्रमण होता है, तो चीनी सरकार और लोग हमेशा की तरह पाकिस्तान सरकार और लोगों का दृढ़ता से समर्थन करेंगे’।”

यह युद्ध शुरू होने के बाद अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने भारत पर दबाव बढ़ाने के लिए चीन से कहा कि वह अपने सैन्य बलों को सीमा पर ले आए लेकिन चीन ने इसपर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी। स्पष्ट था कि चीन वह औपचारिक रूप से किसी भी सैन्य टकराव में शामिल नहीं होना चाहता था। इस युद्ध के बाद भी चीन अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान का समर्थन करता रहा था। ‘टाइम’ की सितंबर 1972 की खबर के मुताबिक, चीन ने 1972 में बांग्लादेश की संयुक्त राष्ट्र सदस्यता का वीटो कर दिया था। यह सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्य के रूप में चीन का पहला वीटो था। चीन ने तर्क दिया कि पाकिस्तानी युद्धबंदियों और नागरिकों की वापसी से संबंधित दो संयुक्त राष्ट्र प्रस्ताव लागू नहीं किए गए थे। बांग्लादेश के प्रवेश पर सुरक्षा परिषद के महत्वपूर्ण मतदान में अमेरिका, रूस और भारत सहित सुरक्षा परिषद के 15 सदस्यों में से 11 ने सदस्यता की सिफारिश करने के लिए मतदान किया 3 ने मतदान से परहेज किया और केवल चीन ने बांग्लादेश के प्रवेश का विरोध करने के लिए मतदान किया।

चीन ने लंबे समय तक बांग्लादेश को मान्यता तक नहीं दी थी। बांग्लादेश के संस्थापक और पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान की 15 अगस्त 1975 को ढाका में एक सैन्य विद्रोह के दौरान हत्या कर दी गई थी। इस तख्तापलट में उनके परिवार के अधिकांश सदस्य भी मारे गए। उनकी हत्या के तुरंत बाद खोन्दकार मुश्ताक अहमद ने सत्ता संभाली और एक नई सरकार बनाई। मुश्ताक अहमद को भारत विरोधी माना जाता था और पाकिस्तान ने पहले ही दिन उस सरकार को मान्यता दे दी थी। इसके बाद 1975 में 31 अगस्त को चीन ने भी बांग्लादेश को मान्यता दी थी।

1999 का भारत-पाक का युद्ध

1999 का कारगिल युद्ध पाकिस्तान की पीठ में छुरा घोंपने की नीति का सबसे स्पष्ट उदाहरण था। फरवरी 1999 में भारत-पाकिस्तान के बीच लाहौर घोषणा पर हस्ताक्षर किए गए जिसमें दोनों देशों के सीमा विवाद के शांतिपूर्ण समाधान की बात की गई थी लेकिन कुछ ही समय में पाकिस्तान ने इसका उल्लंघन कर दिया। पाकिस्तानी सेना ने आतंकवादियों के वेश में नियंत्रण रेखा के भारतीय हिस्से में घुसपैठ की और ‘ऑपरेशन बद्र’ के तहत उन चौकियों पर कब्जा कर लिया जिन्हें भारतीय सेना ने सर्दियों में खाली कर दिया था। मई 1999 की शुरुआत में भारत को इस घुसपैठ का पता चला था। इसका उद्देश्य कश्मीर और लद्दाख के बीच संपर्क को काटना और भारत को कश्मीर विवाद के समाधान के लिए बातचीत करने के लिए मजबूर करना था। भारतीय सेना को जैसे ही इस घुसपैठ का पता चला तो भारत ने ‘ऑपरेशन विजय’ के तहत इसका जवाब दिया। भारतीय सेना द्वारा बड़े हमले किए गए और फिर से उन चौकियों पर कब्ज़ा कर लिया। भारतीय वायुसेना ने भी इस युद्ध में हिस्सा लिया था।

कारगिल वॉर मेमोरियल

इस युद्ध में चीन की भूमिका को तटस्थ माना जाता है। हालांकि, कई लोग यह दावा ज़रूरत करते हैं कि संभव है कि चीन पर्दे के पीछे से पाकिस्तान के साथ था। चीन ने भारत और पाकिस्तान दोनों को स्थिति को और बिगड़ने से रोकने के लिए संयम बरतने की सलाह दी थी। 12 जून 1999 को जब पाकिस्तान के विदेश मंत्री सरताज अज़ीज़ जब चीन का समर्थन मांगने के लिए बीजिंग गए तो चीन ने पाकिस्तान से कहा कि वह ‘भारत के साथ अपने विवादों को बातचीत और वार्ता के माध्यम से शांतिपूर्ण ढंग से सुलझाए’।

हालांकि, इस युद्ध के दौरान कारगिल में 121 ब्रिगेड के कमांडर सुरिंदर सिंह का दावा इससे अलग था, 1999 में जब भारत-पाकिस्तान के बीच कारगिल में युद्ध छिड़ा था तब वह खुद मोर्चे पर तैनात थे। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की सितंबर 2013 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, “सुरिंदर सिंह ने दावा किया, ‘कारगिल युद्ध से पहले और उसके दौरान, चीन ने कारगिल के करीब पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (PoK) में के2 तोपों की स्थिति में भारी तोपों को शामिल किया था और उन्हें तैनात किया था तथा युद्ध के दौरान पाकिस्तानी सेना को फायर सपोर्ट दिया थी’।” सुरिंदर ने यह भी दावा किया है कि चीन ने संघर्ष के दौरान अक्साई चिन में अपने सैनिकों को भेजकर पाकिस्तान का समर्थन किया था। हालांकि, उनके दावों को लेकर तमाम सवाल भी उठे थे।

अब युद्ध हुआ तो क्या होगी चीन की भूमिका?

भारत-पाकिस्तान के बीच जिस तरह हालात लगातार बिगड़ रहे हैं तो उसमें किसी भी संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में चीन की भूमिका को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। माना जा रहा है कि भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध छिड़ता है तो चीन की भूमिका एक आयामी ना होकर जटिल होगी जो उसकी भू-राजनीतिक रणनीति, पाकिस्तान के साथ गठबंधन और आर्थिक स्थिति, विशेष रूप से अमेरिका के साथ चल रहे टैरिफ वॉर से प्रभावित होगी। चीन और पाकिस्तान के बीच मजबूत सैन्य और आर्थिक संबंध हैं। युद्ध की स्थिति में चीन के लिए चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) भी बुरी तरह प्रभावित हो सकता है जिससे वह बचना चाहता है। वर्तमान में अमेरिका के साथ टैरिफ वॉर के कारण चीन आर्थिक दबाव का सामना कर रहा है। यह स्थिति उसकी सैन्य और आर्थिक संसाधनों को सीमित कर सकती है।

डॉ. नंदा किशोर चीन की भूमिका को लेकर बताते हैं, “युद्ध या टकराव की स्थिति में चीन की प्रतिक्रिया रणनीतिक सोच और क्षेत्रीय शक्ति संतुलन पर आधारित होगी। चीन और पाकिस्तान के बीच ‘हर मौसम की रणनीतिक साझेदारी’ है और चीन पाकिस्तान में चल रहे चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) का अहम हिस्सा है। चीन पाकिस्तान को मजबूत राजनयिक, आर्थिक और खुफिया समर्थन दे सकता है लेकिन सीधे युद्ध में शामिल नहीं होगा जब तक कि उसके खुद के अहम हितों को खतरा न हो। चीन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों का इस्तेमाल कर पाकिस्तान की कूटनीतिक रूप से मदद कर सकता है। वह ‘क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने’ के नाम पर युद्धविराम की अपील भी कर सकता है।”

डॉ. नंदा किशोर बताते हैं, “चीन ‘ग्रे-ज़ोन रणनीति’ अपना सकता है, यानी सीधे युद्ध में उतरे बिना भारत पर दबाव बनाना। जैसे, वह LAC (वास्तविक नियंत्रण रेखा) पर तनाव बढ़ा सकता है, जिससे भारत को दोनों मोर्चों पर टकराव के लिए तैयार होना पड़े। हालांकि, चीन यह भी चाहेगा कि युद्ध ज्यादा न बढ़े, क्योंकि इससे उसके बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) और व्यापारिक हितों को नुकसान हो सकता है। इसलिए चीन सावधानी से काम लेगा, जहां वह दबाव और बातचीत दोनों का संतुलन बनाए रखेगा, ताकि भारत से सीधे टकराव से बचे और साथ ही एशिया में अपनी ताकत बढ़ाने के लंबे लक्ष्य को भी आगे बढ़ा सके।”

भारत के लिए चीन की तैयारी

ऐतिहासिक तौर पर चीन के रुख को देखते हुए यह संभव है कि भारत को दोनों मोर्चों पर लड़ाई के लिए तैयारी तो करनी पड़ सकती है। भारत सरकार इसे लेकर सजग है और चीन को लेकर भी भारत ने रणनीति बनानी शुरू कर दी है। भारत को पता है कि पिछले कुछ समय में बेशक चीन के साथ संबंध पटरी पर लौट रहे हों लेकिन चीन, पाकिस्तान को ही अपना ‘आयरन ब्रदर’ मानता है। दक्षिण एशिया में भारत का प्रभाव जिस तरह से बढ़ा है उससे भी चीन के मन में भय बना हुआ है। भारत यह सुनिश्चित करने की दिशा में काम कर रहा है कि वह किसी भी चुनौती से निपटने को तैयार रहे।

डॉ. नंदा किशोर भारत की तैयारी को लेकर बताते हैं, “भारत मानता है कि अगर पाकिस्तान के साथ युद्ध होता है, तो चीन पाकिस्तान को राजनयिक समर्थन, आर्थिक मदद, और शायद LAC पर दबाव बनाकर भारत की सेना को दो दिशाओं में बांटने की कोशिश करेगा। इसी को ध्यान में रखते हुए, भारत ने मल्टी-डोमेन तैयारी (यानि कई क्षेत्रों में एक साथ तैयारी) की रणनीति अपनाई है। इसमें उत्तरी सीमाओं पर सैन्य ढांचे को मजबूत करना और हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए समुद्री क्षमताओं को बढ़ाना शामिल है।”

उन्होंने आगे बताया, “साथ ही, भारत ने क्वाड जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों के ज़रिए समान सोच वाले देशों से रिश्ते मज़बूत किए हैं और हथियारों की खरीद के लिए कई स्रोतों को चुना है ताकि पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं पर निर्भरता कम हो। राजनयिक स्तर पर भारत कोशिश करेगा कि अगर चीन कोई हस्तक्षेप करता है, तो उसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाकर ऐसा दिखाए कि चीन की ये हरकतें क्षेत्र में अस्थिरता फैलाने वाली हैं ताकि दुनिया की राय भारत के पक्ष में बने। साथ ही, भारत ने ऐसी रणनीति अपनाई है जिसमें दुश्मन को पहले ही रोक देना (deterrence by denial) और अगर हमला हो तो सख्त जवाब देना (deterrence by punishment) शामिल है। इसका मकसद यह है कि अगर दो मोर्चों पर एक साथ चुनौती आए तो भारत उसे संभाल सके, अपनी रणनीतिक स्वतंत्रता बनाए रखे और यह साफ संकेत दे कि अगर जरूरत पड़ी तो वह लंबे समय तक चलने वाले युद्ध के लिए भी तैयार है।”

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