स्त्रियों के महत्त्व, अधिकार, सुरक्षा और विवाह को लेकर क्या कहती है मनुस्मृति?

मनुस्मृति में कहा गया है कि नारी को विवाह से पूर्व पिता, विवाह के पश्चात पति और विधवा होने पर पुत्र के संरक्षण में रहना चाहिए।

पिछले लेख में हम लोगों ने देखा कि वर्तमान में महिलाओं को लेकर किस प्रकार के अधिकार प्राप्त हैं। अब क्रमश: मनुस्मृति में महिलाओं को लेकर कही गयी बात और उनको प्राप्त अधिकारों की चर्चा की गयी है।

परिवार में स्त्रियों का महत्त्व–
“पितृभिर्भ्रातृभिश्र्चैताः पतिभिर्देवरैस्तथा।
पूज्या भूशयितव्याश्र्च बहुकल्याणमिप्सुभिः॥” (3.55)

शोचन्ति जामयो यत्र विनश्यत्याशु तत् कुलम् ।
न शोचन्ति तु यत्रैता वर्धते तद् हि सर्वदा ॥(3.57)

जामयो यानि गेहानि शपन्त्यप्रतिपूजिताः।
तानि कृत्याहतानीव विनश्यन्ति समन्ततः॥(3.58)

तस्मादेताः सदा पूज्या भूषणाच्छादनाशनैः ।
भूतिकामैर्नरैर्नित्यं सत्कारेषूत्सवेषु च ॥(3.59)

स्त्रियां तु रोचमानायां सर्वं तद् रोचते कुलम् ।
तस्यां त्वरोचमानायां सर्वमेव न रोचते ॥(3.62)

प्रजनार्थं महाभागाः पूजार्हा गृहदीप्तयः।
स्त्रियः श्रियश्च गेहेषु न विशेषोऽस्ति कश्चन॥(9.26)

अपत्यंधर्मकार्याणिशुश्रूषारतिरुत्तमा।
दाराऽधीनस्तथा स्वर्गः पितॄणामात्मनश्च ह॥(9.28)

प्रजनार्थं स्त्रियः सृष्टाः सन्तानार्थं च मानवः।
तस्मात्साधारणो धर्मः श्रुतौ पत्न्या सहोदितः॥(9.96)

मातापितृभ्यां जामीभिर्भ्रात्रा पुत्रेण भार्यया।
दुहित्रा दासवर्गेण विवादं न समाचरेत्॥(4.180)

कालेऽदाता पिता वाच्यो वाच्यश्चानुपयन्पतिः।
मृते भर्तरि पुत्रस्तु वाच्यो मातुररक्षिता॥(9.4)

स्त्रियों के स्वाधिकार

अर्थस्य सङ्ग्रहे चैनां व्यये चैव नियोजयेत् ।
शौचे धर्मेऽन्नपक्त्यां च पारिणाह्यस्य वेक्षणे ॥(9.11)

अरक्षिता गृहे रुद्धाः पुरुषैराप्तकारिभिः ।
आत्मानमात्मना यास्तु रक्षेयुस्ताः सुरक्षिताः ॥(9.12)

स्त्रियों की सुरक्षा

इमं हि सर्ववर्णानां पश्यन्तो धर्ममुत्तमम् ।
यतन्ते रक्षितुं भार्यां भर्तारो दुर्बला अपि ॥(9.6)

सूक्ष्मेभ्योऽपि प्रसङ्गेभ्यः स्त्रियो रक्ष्या विशेषतः ।
द्वयोर्हि कुलयोः शोकमावहेयुररक्षिताः ॥(9.5)

यस्मै दद्यात् पिता त्वेनां भ्राता वाऽनुमते पितुः ।
तं शुश्रूषेत जीवन्तं संस्थितं च न लङ्घयेत् ॥(5.149)

अरक्षिता गृहे रुद्धाः पुरुषैराप्तकारिभिः ।
आत्मानमात्मना यास्तु रक्षेयुस्ताः सुरक्षिताः ॥
(9.12)

संपत्ति में अधिकार– 

यथैवात्मा तथा पुत्रः पुत्रेण दुहिता समा।
तस्यामात्मनि तिष्ठन्त्यां कथमन्यो धनं हरेत् ॥(9.130)

मातुस्तु यौतकं यत्स्यात्कुमारीभाग एव सः ।
दौहित्र एव च हरेदपुत्रस्याखिलं धनम् ॥(9.131)

यादृग्गुणेन भर्त्रा स्त्री संयुज्येत यथाविधि ।
तादृग्गुणा सा भवति समुद्रेणैव निम्नगा ॥(9.212) 

यो ज्येष्ठो विनिकुर्वीत लोभाद्भ्रातॄन्यवीयसः ।
सोऽज्येष्ठः स्यादभागश्च नियन्तव्यश्च राजभिः ॥(9.213) 

वषाऽपुत्रसु चैवं स्याद् रक्षणं निष्कुलसु च।
पतिव्रतासु च स्त्रीषु विधवास्वतुरसु च ॥(8.28)

जीवन्तीनां तु तासां ये तद् हरेयुः स्वबान्धवाः ।
तांशिष्यात्चौरदण्डेन धार्मिकः पृथिवीपतिः ॥
(8.29)

विवाह

काममामरणात् तिष्ठेद् गृहे कन्यार्तुमत्यपि।
न चैवैनां प्रयच्छेत् तु गुणहीनाय कर्हि चित्॥(9.89) 

त्रीणि वर्षाण्युदीक्षेत कुमार्यर्तुमती सती।
ऊर्ध्वं तु कालादेतस्माद्विन्देत सदृशं पतिम्॥(9.90) 

अदीयमाना भर्तारमधिगच्छेद् यदि स्वयम्।
नैनः किं चिदवाप्नोति न च यं साऽधिगच्छति॥ (9.91) 

कालेऽदाता पिता वाच्यो वाच्यश्चानुपयन्पतिः।
मृते भर्तरि पुत्रस्तु वाच्यो मातुररक्षिता॥(9.4) 

अरक्षिता गृहे रुद्धाः पुरुषैराप्तकारिभिः।
आत्मानमात्मना यास्तु रक्षेयुस्ताः सुरक्षिताः॥(9.12) 

             जो लोग स्त्रियों की सुरक्षा के नाम पर उन्हें घर की चारदीवारी में कैद रखना चाहते हैं, उनका ऐसा सोचना निरर्थक है। इसके बजाय, स्त्रियों को उचित शिक्षा, प्रशिक्षण और सही मार्गदर्शन मिलना चाहिए ताकि वे न केवल अपना बचाव स्वयं कर सकें बल्कि किसी भी गलत मार्ग पर जाने से भी बचें। स्त्रियों को स्वतंत्रता से वंचित करना महर्षि मनु की मूल शिक्षाओं के पूर्णत: विपरीत है। मनुस्मृति में कहा गया है कि नारी को विवाह से पूर्व पिता, विवाह के पश्चात पति और विधवा होने पर पुत्र के संरक्षण में रहना चाहिए। उल्लेखनीय है कि यहाँसंरक्षणका अर्थ केवल भरणपोषण से है, न कि उसे असहाय समझने या बनाने से। भारतीय सामाजिक चेतना की पारिवारिक दृष्टि समरसता और सहअस्तित्व की सहकारी भावना पर आधारित रही है। यही कारण है कि मनुस्मृति मेंसंरक्षणका तात्पर्य किसी प्रकार की बाधा उत्पन्न करने से नहीं है, बल्कि स्त्री को सुरक्षित और समर्थ बनाए रखने से है। स्वयं मनु ने लिखा है कि नारी की सुरक्षा उसे घर में बंधक बनाकर नहीं हो सकती। इस दृष्टि से, मनुस्मृति नारी के स्वतंत्र जीवन, मानसिक विकास और शारीरिक सशक्तिकरण के प्रति प्रतिबद्ध दिखाई देती है।

                           मनुस्मृति में व्यक्त नारी सशक्तिकरण के विचार, जो हजारों वर्ष पूर्व स्थापित किए गए थे, आधुनिक युग में महिला सशक्तिकरण कार्यक्रमों के रूप में परिलक्षित हो रहे हैं। हालाँकि, संविधान के माध्यम से नारीपुरुष समानता की बात की जाती है, लेकिन इसका पूर्ण क्रियान्वयन अभी भी चुनौतीपूर्ण बना हुआ है।

Exit mobile version