प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सितंबर 2016 में सिंधु जल समझौते को लेकर हुई एक बैठक में कहा था कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते हैं। यह बयान पाकिस्तान के लिए कड़ा संदेश था और साथ ही, मौका भी था कि वो अपनी आतंकी हरकतों से बाज आ जाए। लेकिन जो सुधर जाए वो पाकिस्तान कैसा? पहलगाम में हुए आंतकी हमले में कम-से-कम 26 लोगों की मौत हो गई है। इसमें अब कोई दुविधा नहीं है कि इस हमले के पीछे पाकिस्तान का हाथ है। और इस बार भारत किसी भी सूरत में पाकिस्तान को बख्शने के मूड में नहीं है। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में दिल्ली में सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (CCS) की बैठक हुई और उसमें सिंधु जल समझौता निलंबित करने का फैसला लिया गया है।
CCS की बैठक में हुए क्या फैसले?
पीएम मोदी की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में 5 अहम फैसले लिए गए हैं। जिनमें पाकिस्तान के सीमा पार आतंकवाद बंद करने तक ‘सिंधु जल संधि’ को स्थगित रखना, अटारी को तत्काल प्रभाव से बंद करना, पाकिस्तानी नागरिकों को SAARC वीजा छूट योजना के तहत भारत की यात्रा की अनुमति ना देना, दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायोग में रक्षा, सैन्य, नौसेना और वायु सलाहकारों को अवांछित व्यक्ति घोषित करना और उच्चायोगों में तैनात लोगों की कुल संख्या वर्तमान में 55 से घटाकर 30 किए जाना शामिल हैं।
क्या है सिंधु जल संधि?
सिंधु जल संधि को समझने से पहले ज़रूरी है कि सिंधु बेसिन को समझा जाए। करीब 3200 किलोमीटर लंबी सिंधु नदी एशिया का सबसे लंबी नदियों में शामिल है। सिंधु नदी ट्रांस हिमालयन जोन के बोखर-चू ग्लेशियर से निकलती है। लद्दाख और जास्कर श्रेणियों के बीच में उत्तर-पश्चिम की ओर बहती हुई भारत में प्रवेश करती है। इसके बाद यह लद्दाख से होते हुए पीओके में चली जाती है। वहां से यह नदी गिलगित से होते हुए पाकिस्तान को कवर करते हुए अरब सागर में गिर जाती है। इसी बेसिन के इर्दगिर्द ही सिंधु घाटी सभ्यता ने जन्म लिया था।
भारत में जब ब्रिटिश राज था तो दक्षिण पंजाब में सिंधु नदी घाटी पर बड़ी नहर बनवाई गई और इसके चलते यह इलाका एशिया में एक प्रमुख कृषि क्षेत्र बन गया था। जब भारत का बंटवारा हुआ तो पंजाब को भी दो हिस्सों में बांटा गया और उसी समय सिंधु नदी घाटी और अन्य नदियों को भी बांट दिया गया। हालांकि, इस नदी का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान में था लेकिन यह भारत से होकर जाती थी तो पाकिस्तान इससे मिलने वाले पानी के लिए पूरी तरह भारत पर निर्भर था। आज़ादी के बाद से ही इसे लेकर विवाद होना शुरू हो गया। दिसंबर 1947 में इसे लेकर पहला समझौता हुआ और बंटवारे से पहले की शर्तों के मुताबिक तय हुआ कि भारत 31 मार्च 1948 तक पाकिस्तान को पानी का एक निश्चित हिस्सा देता रहेगा। अप्रैल 1948 में जैसी ही यह समझौता खत्म हुआ तो भारत ने दो प्रमुख नदियों का पानी रोक दिया जिसके चलते पाकिस्तान को बहुत नुकसान झेलना पड़ा था।
इसके बाद विवाद को निपटाने के लिए मई 1948 में एक इंटर-डोमिनियन समझौता हुआ जिसके तहत भारत को सालाना भुगतान के बदले में बेसिन के पाकिस्तानी हिस्सों को पानी देना था। हालांकि, यह स्थाई समझौता नहीं था और विवाद निपटाने को लेकर अब भी प्रयास चल रहे थे। इसी बीच 1951 में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के बुलावे पर टेनेसी वैली अथॉरिटी और अमेरिकी परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व प्रमुख डेविड लिलिएनथल भारत आए थे। अमेरिका वापस लौटने पर उन्होंने इस विवाद को लेकर एक लेख लिखा।
लिलिएनथल ने सुझाव दिया कि भारत-पाकिस्तान को नदियों पर तंत्र का साथ में विकास और उसका प्रबंधन देखना चाहिए और उन्होंने एक समझौता भी सुझाया था। उन्होंने इसके लिए वर्ल्ड बैंक को धन और सलाह देने की बात भी कही। उस समय के वर्ल्ड बैंक प्रमुख ने इस लेख को पढ़ा और विश्व बैंक ने दोनों देशों के प्रमुखों से संपर्क कर 1954 में एक प्रस्तावित समझौते का मसौदा दिया था। करीब एक दशक तक बैठकों का दौरा चलता रहा और 19 सितंबर 1960 को कराची में सिंधु नदी प्रणाली के जल के उपयोग के संबंध में भारत और पाकिस्तान के बीच संधि हुई।
भारत के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इस संधि पर हस्ताक्षर किए थे। इस संधि में सिंधु, झेलम और चेनाब को पश्चिमी नदियां बताया गया जिनका पानी पाकिस्तान के लिए तय किया गया था। जबकि रावी, व्यास और सतलुज को पूर्वी नदियां बताते हुए इनका पानी भारत के लिए तय किया गया था। वहीं, पश्चिमी नदियों के पानी के इस्तेमाल का सीमित अधिकार भारत जैसे बिजली बनाना, कृषि के लिए सीमित पानी का अधिकार भारत को दिया गया था। इसके मुताबिक जल का करीब 80% पाकिस्तान के पास चला गया था जबकि 20% भारत के पास बचा है।
इस संधि में सिंधु आयोग भी स्थापित किया गया और इस आयोग के तहत दोनों देशों के कमिश्नरों के मिलने को वर्ष में कम-से-कम एक बार बैठक करनी थी। विवाद के समाधान के त्रिस्तरीय तंत्र बनाया गया जिसमें स्थाई सिंधु आयोग (PIC), तटस्थ विशेषज्ञ और मध्यस्थता न्यायालय शामिल थे। तटस्थ विशेषज्ञ की नियुक्ति विश्व बैंक या भारत सरकार और पाकिस्तान सरकार द्वारा मिलकर की जाती है। मध्यस्थता न्यायालय में 7 सदस्यीय मध्यस्थता न्यायालय शामिल है। इस संधि में कहा गया था कि जब कोई एक देश किसी परियोजना पर काम करता है और दूसरे को कोई आपत्ति होती है तो पहले देश को इसका जवाब देना होगा।
पाकिस्तान पर क्या होगा असर?
यह समझौता पाकिस्तान के लिए जीवनरेखा माना जाता है क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था, कृषि और जलापूर्ति इन नदियों पर ही निर्भर है। पाकिस्तान जल की कमी के सूचकांक में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है जो पाकिस्तान के जल संकट को दर्शाता है। इस संधि के निलंबित होने से पाकिस्तान बूंद-बूंद को तरस जाएगा जिसका डर उसे सताने लगा है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री और उप-प्रधानमंत्री इसहाक डार ने कहा कि भारत इस तरह से एकतरफा फैसला नहीं कर सकता है। डार ने कहा कि सिंधु जल संधि बाध्यकारी है और ऐसे तो मनमानी शुरू हो जाएगी। डार का कहना है कि पाकिस्तान का कानून मंत्रालय इसका जवाब देगा।
जल संकट
पाकिस्तान में इस समझौता के निलंबित होने से गंभीर जल संकट पैदा हो सकता है। विभिन्न अनुमानों के मुताबिक, पाकिस्तान के 21 करोड़ से अधिक लोग पीने के पानी के लिए इस पर निर्भर रहते हैं। भारत पश्चिमी नदियों के जल प्रवाह को रोकता है तो कराची, लाहौर और मुल्तान जैसे प्रमुख शहरों में गंभीर जल संकट पैदा हो सकता है। शहरी क्षेत्रों में जल संकट के और भी गंभीर होने की संभावना है।
सिंचाई और खाद्य संकट
पाकिस्तान की लगभग 16 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि (करीब 80%) सिंधु नदी प्रणाली के पानी से सिंचित होती है। यदि जल प्रवाह कम होता है तो गेहूं और चावल जैसी प्रमुख फसलों की पैदावार में भारी कमी आने का अनुमान है। पहले ही पाकिस्तान में चेनाब नदी में जलस्तर में रिकॉर्ड कमी की चेतावनी दी गई थी और यह स्थिति खराब ही हुई है। इसके अलावा सिंचाई में कमी के कारण लवणता (salinity) की समस्या से कृषि भूमि बंजर होनी शुरू हो जाएगी पहले से ही पाकिस्तान की कृषि भूमि का 43% हिस्सा इससे जूझ रहा है। कृषि उत्पादन में कमी से खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है। खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ेंगी, और आयात पर निर्भरता बढ़ने से विदेशी मुद्रा भंडार पर दबाव पड़ेगा।
आर्थिक संकट
पाकिस्तान की GDP का करीब 25% हिस्सा कृषि पर निर्भर करता है। जल संकट से कृषि उत्पादन में कमी से आर्थिक विकास दर नकारात्मक रूप से प्रभावित होगी। कपास, चावल, और गेहूं जैसे कृषि उत्पाद पाकिस्तान के निर्यात का बड़ा हिस्सा हैं। उत्पादन में कमी से निर्यात आय घटेगी और इसके चलते भुगतान संतुलन (balance of payments) पर दबाव बढ़ेगा। कपड़ा उद्योग (कपास पर निर्भर), खाद्य प्रसंस्करण और चीनी मिलें जैसे कृषि-आधारित उद्योग भी प्रभावित होंगे, जिससे रोजगार और औद्योगिक उत्पादन में कमी आएगी।
ऊर्जा संकट
पाकिस्तान की बिजली उत्पादन क्षमता का एक बड़ा हिस्सा जलविद्युत परियोजनाओं (जैसे तरबेला और मंगला बांध) से आता है जो सिंधु नदी प्रणाली पर निर्भर हैं। ये बांध देश की लगभग 30% बिजली आपूर्ति करते हैं। जल प्रवाह में कमी से बिजली उत्पादन प्रभावित होगा जिससे पहले से मौजूद ऊर्जा संकट गहराने की संभावना है। बिजली की कमी से उद्योग ठप हो सकते हैं और शहरी क्षेत्रों में ब्लैकआउट की स्थिति बन सकती है। इसके चलते आर्थिक गतिविधियां भी प्रभावित होंगी।