11 अगस्त 1947 को दुनिया के नक्शे पर आधिकारिक रूप से पाकिस्तान के बनने में बस 3 दिन बाकी थे और मोहम्मद अली जिन्ना इसके पहले गवर्नर जनरल बनने वाले थे। 11 अगस्त को जिन्ना ने एक भाषण दिया जिसमें इस बात को रेखांकित किया गया था कि पाकिस्तान के बनने के बाद राष्ट्र किस दिशा में आगे बढ़ेगा, जिन्ना ने अपने भाषण में कहा, “आप आजाद हैं, आप अपने मंदिरों में जाने के लिए आजाद हैं, आप अपने मस्जिदों में या और पूजा के किसी भी स्थान में जाने के लिए पाकिस्तान में आजाद हैं। आप किसी भी मजहब, जाति या संप्रदाय से ताल्लुक रखते हों, सरकार का इससे कोई लेना-देना नहीं है।” इस बात को 78 साल बीत चुके हैं। अब अप्रैल 2025 में पाकिस्तान के आर्मी प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर पूर्वजों का हवाला देकर हिंदू और मुसलमान को हर तरह से अलग बता रहे हैं।
जनरल असीम मुनीर ने इस्लामाबाद में ओवरसीज पाकिस्तानी सम्मेलन में कहा, “हमारे पूर्वजों का मानना था कि हम हर आयाम में हिंदुओं से अलग हैं। हमारा मज़हब, रिवाज, परंपरा, सोच और मकसद सब अलग हैं। इसी सोच की बुनियाद पर ‘दो राष्ट्र’ के सिद्धांत का जन्म हुआ था। हम (हिंदू-मुस्लिम) एक राष्ट्र नहीं है बल्कि हम दो राष्ट्र हैं।” हालांकि, मुसलमान और हिंदू के नाम पर असीम मुनीर ‘दो राष्ट्र की थ्योरी’ को सही साबित करने पर तुले हुए हैं लेकिन वो थ्योरी तो 1971 में ही धराशायी हो गई, जब पाकिस्तान के दो टुकड़े हुए और दुनिया के नक्शे पर बांग्लादेश नामक एक नए राष्ट्र का जन्म हुआ।
इन सबके बीच एक चर्चा जो होनी चाहिए वो ये कि क्यों आखिर 78 साल बाद, पाकिस्तान के सेना प्रमुख को एक फेल हो चुकी थ्योरी याद आ रही है? जिस बांग्लादेश के चलते यह थ्योरी फेल हुई है, वहां अब तख्तापल्ट हो चुका है और मोहम्मद युनूस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार चल रही है। सियासी हलकों में यह दावा किया जाता है कि असल में युनूस सरकार की बागडोर बांग्लादेश की कट्टरपंथी संस्थाओं के हाथों में है। इस बीच बांग्लादेश व पाकिस्तान के बीच नज़दीकियां बढ़ रही हैं। हालांकि, हालात खुद भी पाकिस्तान के अच्छे नहीं है और देश लगभग कंगाली की कगार पर है। सामाजिक और आर्थिक असुरक्षा से घिरा हुआ पाकिस्तान तिलमिला रहा है। और ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि ‘टू नेशन थ्योरी’ का यह ज़िक्र मुस्लिमों को उकसाने की एक रणनीति तो नहीं है?
मुनीर ने ‘टू नेशन थ्योरी’ के अपने इस भाषण में कश्मीर का भी ज़िक्र किया है। उनका कहना है, “कश्मीर हमारी गले की नस था, है और रहेगा। हम इसे कभी नहीं भूलेंगे। हम अपने कश्मीरी भाइयों को उनके वीरतापूर्ण संघर्ष में अकेले नहीं छोड़ेंगे।” दरअसल, मुनीर की नीयत पर शक इसी बात से होता है। एक ओर मुनीर ‘कश्मीरी भाइयों’ के संघर्ष में साथ देने की बात कर रहे हैं और दूसरी ओर हिंदुओं-मुसलमानों को एक-दूसरे के खिलाफ भड़का रहे हैं। कहीं, उनका मकसद शांत और तरक्की के रास्ते पर चल रहे कश्मीर के मन में अलगाव का बीज बोना तो नहीं है? लेकिन इसके ज़रिए मुनीर और पाकिस्तान हासिल क्या करेगा?
असल में पाकिस्तान केवल एक भौगोलिक देश ना होकर कुछ कट्टरपंथियों की सोच का जीवंत स्वरूप है और मुनीर जैसे लोग फिर उसी कट्टरपंथी सोच को आगे बढ़ा रहे हैं। पाकिस्तान लगातार यही करता आया है और आगे भी उसकी कोशिश वैसी ही है। इन दिनों भारत में वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर कई मुस्लिम संगठन और नेता जब मुस्लिमों को भड़काने की कोशिश कर रहे हैं तो ऐसे में मुनीर के इस बयान के भी कई मायने निकाले जा रहे हैं। क्या मुनीर का संदेश सिर्फ पाकिस्तान के लिए ना होकर भारतीय और बांग्लादेशी मुसलमानों के लिए भी है? क्या मुनीर मुसलमानों को एकजुट होने का संदेश देकर यह बता रहे हैं कि भारत में मुसलमान और हिंदू भी एकसाथ नहीं रह सकते हैं?
साथ ही, मुनीर के इस बयान में पाकिस्तान के हिंदुओं के लिए भी संदेश छिपा हुआ है। जो हिंदू जिन्ना की बात मानकर शायद पाकिस्तान में रुक गए थे, उन्हें अब मुनीर ने स्पष्ट कर दिया है कि पाकिस्तान की सोच हिंदू और मुस्लिमों को लेकर क्या है। पाकिस्तान में लाखों हिंदू रहते हैं और मुनीर का यह बयान उन लोगों के लिए चेतावनी की तरह है। बात सिर्फ मुनीर की नहीं बल्कि इस्लाम के मानने वाले लोगों की सोच की भी है। क्या इस्लाम इस हद तक असहिष्णु है कि मुसलमान हिंदुओं के साथ रहने को तैयार नहीं है? एक सवाल यह भी है कि क्या अब मुनीर पाकिस्तान में रहने वाले मुसलमानों को एक नया राष्ट्र देने जा रहे हैं।
मुनीर के इस बयान में सबसे बड़ा अंतर कथनी और करनी का है, एक और जहां वो मुसलमानों को एकजुट करने की बात कर रहे हैं तो दूसरी और लाखों अफगान मुसलमानों को पाकिस्तान से वापस भगाया जा रहा है। दो राष्ट्रों की बात करने वाले मुनीर ये क्यों भूल जाते हैं कि पाकिस्तान के भीतर कितने देश बनने की मांग उठ रही हैं। बलूचिस्तान से लेकर सिंध, खैबर पख्तूनख्वा तक कोई भी ऐसी जगह नहीं है जहां पाकिस्तान की सेना के ज़ुल्म-ओ-सितम के खिलाफ आक्रोश ना हो। मुसलमानों को एकजुट करने का आह्वान करने वाला पाकिस्तान रोटी तक को मोहताज है लेकिन देश के लोगों को उलझाए रखने के लिए मुनीर इस तरह के तर्क दे रहे हैं। हो सकता है कि कुछ मुसलमान उनके झांसे में आ भी जाएं लेकिन उनका हश्र क्या होगा? क्या वे सभी मुसलमान पाकिस्तान में चले जाएंगे?