अफगानों को पाकिस्तान से अपने घर क्यों ले जा रहा है जर्मनी?

तालिबान के डर से Afghan Refugees को जर्मनी में नया ठिकाना दिया जा रहा है। हालांकि, वहां के सियासी हालात उनके भविष्य पर सवाल खड़ा कर रहे हैं।

Germany Give Shelter To Afghan Refugees

Germany Give Shelter To Afghan Refugees

Germany Give Shelter To Afghan Refugees: 16 अप्रैल 2025, दिन बुधवार को जर्मनी के लाइपजिग शहर में एक विमान उतरता है। इसमें 138 लोग सवार थे जिन्हें जर्मनी सरकार सुरक्षित पनाह देने के लिए अपनी धरती में लेकर आई है। विमान पाकिस्तान के इस्लामाबाद से उड़ान भरकर लाइपजिग पहुंचा था। इसमें सवाल सभी 138 लोग पाकिस्तान के नहीं बल्कि अफगानिस्तान के हैं। ये सभी नागरिक जीवन के नई उम्मीद लेकर जर्मनी पहुंचे हैं। ऐसे में अब सवाल उठता है कि जर्मनी, अफगान नागरिकों को पाकिस्तान की धरती से अपने देश में क्यों ले जा रहा है और यहां उनका भविष्य कितना सुरक्षित है?

फिलहाल 138 अफगान नागरिकों को एक खास शिविर में रखा जाएगा। यहां से उन्हें जर्मनी के अलग-अलग राज्यों में भेजा जाएगा। हालांकि, वर्तमान सरकार के ज्यादा दिन बचे नहीं है। कुछ दिन में जर्मनी में नई सरकार बनने जा रही है। ऐसे में सवाल खड़ा हो रहा है कि जर्मनी ऐसा क्यों कर रहा है और इन नागरिकों के भविष्य का क्या होगा?

जर्मनी की मानवता

जर्मनी ने मानवता का परिचय देते हुए जिन अफगान नागरिकों (Afghan Refugees) को सुरक्षित अपने देश में पनाह दी है। ये सभी ऐसे अफगान नागरिक हैं जिन्हें तालिबान की ओर से निशाना बनाए जाने का खतरा है। इसमें पत्रकार, वकील और जर्मन संस्थानों के लिए काम करने वाले कर्मचारी शामिल हैं।

9/11 से शुरू हुआ सफर

जर्मनी का अफगानिस्तान से रिश्ता 2001 के 9/11 हमलों से जुड़ा है। अल-कायदा ने अमेरिका के ट्रेड टावर समेत कई जगहों पर हमला किया था। उस वक्त अफगानिस्तान अल-कायदा का गढ़ था। जवाब में अमेरिका ने नाटो के आर्टिकल 5 का इस्तेमाल किया, जिसके तहत सभी सदस्य देशों को सैन्य सहायता देनी थी। जर्मनी इस कारण जर्मनी ने भी अपने सैनिक अफगानिस्तान भेजे थे।

दिसंबर 2001 में जर्मनी की अहम भूमिका के साथ ‘इंटरनेशनल सिक्योरिटी असिस्टेंट फोर्स’ (ISAF) बनाई गई। इसका मकसद अफगानिस्तान में नई सरकार का गठन करना था। इसके साथ ही ISAF नई अफगान सरकार को सुरक्षा देने के साथ अफगान सेना का प्रशिक्षण भी दिया।

इसके बाद कुछ साल तक ऐसे ही चलता रहा। साल 2014 में ये मिशन पूरा हो गया और अमेरिका ने साल 2015 में ‘रेजॉल्यूट सपोर्ट मिशन’ (RSM) शुरू किया। हालांकि, अप्रैल 2021 में अमेरिका ने RSM खत्म कर दिया। इसके बाद अफगानिस्तान की कमान तालिबान ने अपने हाथों में ले ली।

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अफगान नागरिकों से जर्मनी को प्रेम क्यों?

2001 से 2021 तक जर्मन सेना या संस्थानों के साथ कई अफगान नागरिक काम कर रहे थे। ये मानवाधिकार या लोकतंत्र के लिए जर्मनी का साथ दे रहे थे। हालांकि, देश के सियासी हालात बदलने के बाद ये तालिबान के निशाने पर आ रहे हैं। बड़ी संख्या में ये लोग बॉर्डर क्रॉस कर पाकिस्तान में पहुंच गए और शरणार्थी (Afghan Refugees) बन गए। जर्मनी का मानना है कि इन नागरिकों ने हमारे देश और सेना का साथ दिया था। इस कारण उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जानी चाहिए।

2025 में 599 अफगान पहुंचे जर्मनी

अधर में अटक सकता है भविष्य

जर्मनी में जल्द ही क्रिश्चियन डेमोक्रेटिक यूनियन (CDU) के नेतृत्व में नई सरकार बनने की उम्मीद है। इस पार्टी का रुख शरणार्थी नीतियों को लेकर सख्त रहा है। हाल के कुछ हमलों में अफगान शरणार्थियों की भूमिका सामने आई थी। इसके बाद जर्मनी में शरण नीतियों और कई शरणार्थियों (Afghan Refugees) को वापस को लेकर बहस छिड़ गई। पिछले संसदीय चुनावों में भी ये मुद्दा गर्म था। इस कारण नई सरकार बनने के बाद अफगानों के लिए चल रहा विशेष शरण कार्यक्रम बंद किया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो जर्मनी में पहुंच रहे अफगान नागरिकों का भविष्य अधर में लटक सकता है।

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