High Court On ST SC Act: धर्मनिरपेक्षता और आरक्षण का खेल देश में लंबे समय से आता रहा है। खास कर उन इलाकों से जहां मिशनरियों में अपना मिशन पूरी रफ्तार से चलाया है। ईसाई बनने के बाद भी कुछ लोग पिछड़ेपन राग अलापते रहते हैं। इसके बदले में कई बार आरक्षण तो कई बार ST/SC एक्ट का भी लाभ लेते हैं। हालांकि, अब ऐसे लोगों को आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट (Andhra Pradesh High Court) ने आईना दिखा दिया है। अदालत ने साफ कर दिया है कि धर्म बदला तो समझो जाति हाथ से गई। कोर्ट ने साफ किया है कि धर्म बदलने के बाद कोई SC/ST एक्ट (ST SC Act) के ‘सुरक्षा कवच’ का उपयोग नहीं कर सकता है। ये फैसला ईसाई पादरी की शिकायत पर आया है। हालांकि, आरक्षण कोटे को लेकर मामला कुछ दूसरा है। ये केस टू केस डिपेंड करता है।
आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट का ये फैसला आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh HC)के गुंटूर जिले में कोट अपलेम कस्बे के रहने वाले पादरी चिंतदा आनंद के मामले में आया है। पादरी ने दावा किया कि दिसंबर 2020 से जनवरी 2021 के बीच उसे जातिगत गालियां दी गईं। उसके साथ मारपीट हुई और धमकियां भी मिली। पुलिस ने भी मामले में चार्जशीट बनाकर फाइल कर दी। मामला कोर्ट में पहुंचा तो पता चला की शिकायत कर्ता तो 10 साल से ईसाई धर्म का पालन कर रहा है। ऐसे में कोर्ट ने आरोपियों को बरी कर साफ कहा कि धर्म बदलने पर SC होने का लाभ नहीं (No ST SC Act For Converts) मिलेगा।
कोर्ट का आधार क्या है?
जस्टिस हरिनाथ की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए पाया कि पॉल ने 10 साल पहले ईसाई धर्म अपना लिया था। वह चर्च में सक्रिय भूमिका निभा रहा है। उसकी पत्नी और गवाहों के बयानों ने भी यही पुष्टि हुई। इसपर जस्टिस हरिनाथ ने कहा कि ईसाई धर्म में जाति व्यवस्था का कोई स्थान नहीं है। ऐसे में धर्म परिवर्तन के बाद पॉल SC का दर्जा खो (Converts Loses Caste Status) चुके हैं। इसलिए SC/ST एक्ट का लाभ नहीं ले सकते। कोर्ट ने मामले में नियमों की जानकारी के बिना चार्जशीट फाइल करने पर पुलिस को भी फटकार लगाई।
आरक्षण पर सवाल
इस मामले में आए कोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर आरक्षण को लेकर भी चर्चा सुरू हो गई है। हालांकि, ये केस आरक्षण से अलग है लेकिन ST/SC एक्ट का लाभ आरक्षित को ही मिलता है। ऐसे में लोग ये सवाल कर रहे हैं कि अगर धर्म बदलने पर ST/SC एक्ट (ST SC Act) का लाभ नहीं मिलता तो क्या कोटे का आरक्षण मिलेगा? ऐसे में आइये जानें इन सवालों के जवाब।
किसे मिलेगा आरक्षण किसे नहीं?
अनुच्छेद-341 के तहत जारी संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश, 1950 कहता है कि SC दर्जा केवल हिंदू, सिख, या बौद्ध धर्म के अनुयायियों को मिलता है। ईसाई या इस्लाम अपनाने पर SC दर्जा समाप्त हो जाता है। अगर व्यक्ति पुनः हिंदू/सिख/बौद्ध धर्म अपनाता है तो समुदाय की राय पर उसे कोटा मिल सकता है। हालांकि, कुछ केस में अदालतों ने इसे भी खारिज कर दिया है। क्योंकि, धर्म बदलना और वापस आना केवल आरक्षण के लाभ के लिए किया गया था। SC दर्जा तो खत्म हो जाता है लेकिन ST धर्म बदलने के बाद भी आरक्षण का लाभ ले सकते हैं।
पढ़े कुछ उदाहरण
संबवा जाति प्रमाणपत्र मामला: केरल हाई कोर्ट ने 1 फरवरी 2021 को एक फैसला सुनाया था। इसमें कहा गया कि याचिकाकर्ता के परिवार का ईसाई धर्म में सक्रिय होना साबित करता है कि वह हिंदू SC नहीं है। ऐसे में उसे SC कोटे का लाभ नहीं दिया जा सकता है। भले उसकी मां SC से आती है लेकिन उसके पिता, दादा ईसाई है। इससे याचिकाकर्ता का हिंदू होना साबित नहीं होता।
माइकल (मणिकम) का मामला: तमिलनाडु के एक दलित ईसाई ने आर्य समाज के माध्यम से हिंदू धर्म अपनाया ताकि वह SC कोटे का लाभ ले सके। उनकी बेटी को SC प्रमाणपत्र मिल गया। उसने नीट निकालकर स्कॉलरशिप भी हासिल कर ली। हालांकि, अधिकारियों ने प्रमाणपत्र को फर्जी घोषित कर दिया। अभी इस मामले में अंतिम फैसला नहीं आया। हालांकि, उसे आरक्षण से वंचित होना पड़ा।
ये भी पढ़ें: जातीय जनगणना पर मुहर के साथ मोदी कैबिनेट की बड़ी सौगातें – कैबिनेट बैठक में लिए गए ये अहम फैसले
सी सेल्वारानी मामला: 2024 में पुडुचेरी की सी सेल्वारानी क्लर्क की नौकरी के लिए SC प्रमाणपत्र की मांग की। उसने दावा किया कि वह हिंदू धर्म में परिवर्तित हो चुकी है और वल्लुवन जाति (SC) से है। सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि उसके माता पिता ईसाई हैं। कोर्ट ने इसे संविधान पर धोखाधड़ी करार दिया और कहा कि केवल आरक्षण का लाभ लेने के लिए किया गया धर्म परिवर्तन मान्य नहीं है।
सोसई बनाम भारत संघ: दलित ईसाईयों ने आदेश, 1950 को चुनौती दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने माना कि धर्म परिवर्तन के बाद भी जाति का अस्तित्व रह सकता है। हालांकि, दलित ईसाइयों की सामाजिक और आर्थिक पिछड़ेपन दलित हिंदुओं के समान है। ये बात साबित करने के लिए पर्याप्त डेटा उपलब्ध नहीं था। इस कारण कोर्ट ने आंकड़े जुटाने पर जोर दिया।
कुल मिलाकर विभिन्न अदालती फैसलों और सरकारी नीतियों से स्पष्ट है कि भारत में ईसाई धर्म अपनाने वाले व्यक्तियों को आम तौर पर SC कोटे का लाभ नहीं मिलता है। कानूनी प्रावधान और अदालती व्याख्या इस बात पर जोर देती हैं कि SC का दर्जा उन समुदायों को दिया गया है जो हिंदू धर्म के भीतर अस्पृश्यता और सामाजिक भेदभाव का शिकार रहे हैं। ईसाई धर्म में जाति व्यवस्था का अभाव धर्म परिवर्तन के बाद SC पहचान और उससे जुड़े लाभों के दावे को कमजोर करता है।