सऊदी अरब और UAE में महिलाओं के लिए ‘लिबरल’ होता इस्लाम, भारत में कब टूटेंगी ‘कट्टरपंथ’ की दीवारें; ट्रंप के स्वागत से समझें क्या है मामला?

जानें क्या है पूरा मामला

अबू धाबी पहुंचते ही डोनाल्ड ट्रंप का हुआ पारंपरिक 'अल-अयाला' नृत्य से स्वागत

अबू धाबी पहुंचते ही डोनाल्ड ट्रंप का हुआ पारंपरिक 'अल-अयाला' नृत्य से स्वागत

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस हफ्ते मंगलवार को सऊदी अरब पहुंचे। यह उनके दूसरे कार्यकाल की पहली बड़ी कूटनीतिक यात्रा है, जो सऊदी अरब, कतर और संयुक्त अरब अमीरात (UAE) जैसे प्रभावशाली मुस्लिम देशों तक फैली हुई है। इस यात्रा का उद्देश्य अमेरिका में अरबों डॉलर के निवेश को आकर्षित करना है, लेकिन इस दौरे के दौरान जो दृश्य सामने आए उन्होंने भारत में इस्लाम की वर्तमान स्थिति पर नई बहस को जन्म दे दिया है।

पहला दृश्य सऊदी अरब का है, जहां ट्रंप के स्वागत के लिए बुर्का पहने महिलाओं की एक लंबी कतार लगी थी। वे राष्ट्रपति से हाथ मिला रही थीं, मुस्कुरा रही थीं और सऊदी समाज के भीतर एक बदले हुए इस्लामी रवैये का संकेत दे रही थीं। ये वही सऊदी अरब है जहां एक समय में महिलाओं को सार्वजनिक जीवन में सीमित भूमिका दी जाती थी। अब वही देश महिला-पुरुष संवाद और सामाजिक खुलेपन को सार्वजनिक रूप से अपना रहा है।

दूसरा दृश्य अबू धाबी(UAE) से आया। गुरुवार को जब ट्रंप संयुक्त अरब अमीरात की राजधानी पहुंचे, तो उनका स्वागत पारंपरिक सफेद पोशाक में सजी महिलाओं ने एक सांस्कृतिक नृत्य के माध्यम से किया। महिलाएं खुले बालों में, लयबद्ध अंदाज़ में नाच रही थीं, और ये दृश्य राष्ट्रपति भवन कासर अल वतन तक में दोहराया गया। यह सिर्फ एक औपचारिक परंपरा नहीं थी, यह इस्लामी दुनिया में सांस्कृतिक आत्मविश्वास और बदलाव का प्रतीक था।

इन दोनों घटनाओं ने भारत में एक बुनियादी सवाल को फिर से जीवित कर दिया है। जब सऊदी अरब और यूएई जैसे देश, जिन्हें इस्लाम की कट्टरता का पर्याय माना जाता रहा है, आज समय के साथ अपने धार्मिक और सामाजिक मूल्यों में संतुलन ला रहे हैं, तो भारत में अब भी कुछ मुस्लिम समूह कट्टरपंथ की जकड़न में क्यों फंसे हुए हैं? यहां इस्लाम को आज की परिपाटी में ढालने की बात करना आज भी संदेह और विरोध का कारण क्यों बनता है? मस्जिदों और मदरसों में अब भी महिलाओं की भागीदारी, मजहबी सहिष्णुता या वैश्विक बदलावों की चर्चा नहीं के बराबर होती है। क्या भारत का मुस्लिम समाज खुद को बदलती दुनिया से काट रहा है या उसे जानबूझकर रोक दिया गया है? ट्रंप के इस दौरे ने इस बात को स्पष्ट कर दिया है कि इस्लाम के भीतर भी विविधता और बदलाव संभव हैं। एक इस्लाम वह है जो समय के साथ खुद को ढाल रहा है और दूसरा वह जो भारत में अब भी बीते युग की दीवारों में कैद है। सवाल यह नहीं कि बदलाव मुमकिन है या नहीं, सवाल यह है कि भारत का मुस्लिम नेतृत्व कब तक बदलाव से डरता रहेगा?

पारंपरिक ‘अल-अयाला’ नृत्य से स्वागत

कतर की संक्षिप्त यात्रा के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप गुरुवार को संयुक्त अरब अमीरात (UAE) पहुंचे, जहां उनका भव्य स्वागत हुआ। UAE के राष्ट्रपति मोहम्मद बिन जायद अल नाहयान ने खुद एयरपोर्ट पर ट्रंप का अभिवादन किया। लेकिन इस स्वागत समारोह का एक दृश्य ऐसा था जिसने इंटरनेट पर धूम मचा दी।

ट्रंप के स्वागत में प्रस्तुत किया गया पारंपरिक अमीराती ‘अल-अयाला’ नृत्य न सिर्फ सांस्कृतिक गौरव का प्रतीक बना, बल्कि इसने सोशल मीडिया पर वैश्विक दर्शकों का ध्यान खींच लिया। सफेद पारंपरिक परिधान में सजी महिलाएं दोनों ओर कतारबद्ध खड़ी होकर अपने लंबे बालों को लहराती नजर आईं, जो इस नृत्य की प्रतीकात्मक और प्रभावशाली विशेषता है। उनके पीछे छड़ी लिए पुरुष समूह गीत गाते और नाचते दिखे, जो ‘अल-अयाला’ नृत्य की मुख्य पहचान है।

इस क्षण को राष्ट्रपति की विशेष सहायक और संचार सलाहकार मार्गो मार्टिन ने अपने एक्स (पूर्व ट्विटर) अकाउंट पर साझा किया, और लिखा: “The welcome ceremony in UAE continues!”। इस वीडियो ने कुछ ही घंटों में वायरल रूप ले लिया और दुनियाभर में लोगों की उत्सुकता और प्रशंसा बटोरी। यूनेस्को के अनुसार, अल-अयाला एक जीवंत और लोकप्रिय अमीराती सांस्कृतिक प्रस्तुति है जिसमें ढोल की ताल, काव्यात्मक गीत और समन्वित नृत्य-गतिविधियाँ शामिल होती हैं, जो पारंपरिक युद्ध की झलक पेश करती हैं। इस नृत्य में सबसे आगे युवतियां पारंपरिक पोशाक में खड़ी होकर अपने बालों को बाएं-दाएं लहराती हैं, जबकि पीछे की दो पंक्तियों में लगभग बीस-बीस पुरुष एक-दूसरे के सामने खड़े होकर पतली बांस की छड़ियों के साथ युद्धाभ्यास जैसा दृश्य रचते हैं।

यह परंपरा न सिर्फ उम्र, लिंग और सामाजिक सीमाओं को तोड़ती है, बल्कि यह दर्शाती है कि परंपरा और समावेशिता एक साथ कैसे जीवंत हो सकते हैं। लेकिन यही दृश्य अब भारत में एक पुरानी, मगर अनसुलझी बहस को फिर से हवा दे रहा है। एक बार फिर लोग पूँछ रहे हैं क्या इस्लाम में बदलाव की हवा यहां तक कभी पहुंचेगी? दरअसल सोशल मीडिया पर जब यह वीडियो वायरल हुआ, तो कई यूज़र्स ने सीधे सवाल उठाना शुरू कर दिया कि जब इस्लाम के गढ़ माने जाने वाले देश जैसे सऊदी अरब और यूएई परंपरा और आधुनिकता के बीच संतुलन बनाकर महिलाओं को सार्वजनिक और सांस्कृतिक जीवन में सम्मानजनक भागीदारी दे रहे हैं, तो भारत में इस्लाम अब भी ‘पहले हिजाब फिर किताब’ जैसे नारों में क्यों उलझा हुआ है?

यह एक ऐसा प्रश्न है जो सिर्फ मजहबी विचारधारा तक सीमित नहीं, बल्कि समाज की मानसिकता, नेतृत्व की दिशा और भविष्य की सोच से जुड़ा हुआ है। भारत में जहां एक तरफ इस्लाम को ‘अपरिवर्तनीय’ बताकर कट्टरता को धार्मिक आस्था का नाम दे दिया जाता है, वहीं खाड़ी देशों में वही इस्लाम आज नृत्य, स्वागत, संगीत और संवाद के ज़रिए दुनिया से जुड़ने का माध्यम बन रहा है। सवाल सिर्फ यह नहीं है कि क्या इस्लाम में बदलाव संभव है, सवाल यह है कि भारत का इस्लामी नेतृत्व कब इस सच्चाई को स्वीकार करेगा और कट्टरता को सुधार से बदलने का साहस दिखाएगा? क्योंकि जब सऊदी की महिलाएं दुनिया के सबसे ताकतवर राष्ट्राध्यक्ष का स्वागत बाल लहराते नृत्य से कर सकती हैं, तब भारत के मौलवी अब भी हिजाब की दीवार से सोच को क्यों ढकना चाहते हैं?

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