सीएम योगी के इस फैसले ने उड़ाई ‘गौशालाओं में दुर्गंध’ ढूंढने वालों की नींद

गोसेवा से सीधे रोज़गार और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ेंगे कदम

सीएम योगी

सीएम योगी (Image Source: Hindustan Times)

मार्च 2025 में समाजवादी पार्टी प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने ‘गौशाला की दुर्गंध बनाम इत्र की सुगंध’ वाले बयान से न केवल राजनीतिक माहौल को गर्मा दिया, बल्कि करोड़ों गोभक्तों की आस्था पर सीधा प्रहार कर बैठे। अखिलेश ने कहा था, “भाजपा के लोग दुर्गंध पसंद करते हैं, इसलिए गौशाला बना रहे हैं।” यह बयान उनकी मानसिकता और सनातन परम्पराओं के प्रति उनकी वितृष्णा को उजागर करता है। सूबे के सीएम योगी समेत भाजपा के अन्य नेताओं ने इस अपमानजनक टिप्पणी की कड़ी आलोचना की, वहीं आम जनमानस ने भी सोशल मीडिया पर अखिलेश को आड़े हाथों लिया मीम से लेकर तीखे शब्दों तक, हर मोर्चे पर अखिलेश पर निशाना साधा था।

लेकिन अब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक ऐसा फैसला लिया है जो ‘गौशालाओं में दुर्गंध’ ढूंढने वाले नेताओं की नींद ही नहीं, उनकी पूरी ‘सुगंध राजनीति’ को हवा में उड़ा देने वाला है। सीएम योगी ने आदेश दिया है कि उत्तर प्रदेश के सभी सरकारी भवनों में अब गोबर से बने प्राकृतिक पेंट का उपयोग किया जाएगा। साथ ही, इन गोबर पेंट निर्माण इकाइयों की संख्या में तेजी से वृद्धि की जाएगी, जिससे न सिर्फ ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बल मिलेगा, बल्कि गोवंश आधारित सतत विकास का मॉडल भी स्थापित होगा। यही नहीं, मुख्यमंत्री ने ये भी निर्देश दिया है कि जिन गरीब परिवारों के पास पशुधन नहीं है, उन्हें ‘मुख्यमंत्री निराश्रित गोवंश सहभागिता योजना’ के अंतर्गत गायें उपलब्ध कराई जाएंगी। यानी, जो लोग अब तक गोशालाओं में ‘दुर्गंध’ ढूंढकर सनातन पर तंज कसते थे, उन्हें अब उसी गोबर से बने आत्मनिर्भर भारत के रंगों से रंगे सरकारी दफ्तरों में बैठकर काम करना होगा।

मुख्यमंत्री निराश्रित गोवंश सहभागिता योजना से देंगे गाय 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अब गोसेवा को सिर्फ आस्था का विषय नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और ग्रामीण समृद्धि का मजबूत आधार बना रहे हैं। हाल ही में सीएम योगी ने प्रदेश के निराश्रित गोवंश संरक्षण केंद्रों को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में बड़ा फैसला लिया है। उन्होंने अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए हैं कि इन केंद्रों में मौजूद गोबर का बेहतर उपयोग करते हुए प्राकृतिक पेंट के निर्माण को प्रोत्साहित किया जाए। यही नहीं, जैविक खाद और अन्य गो-आधारित उत्पादों के उत्पादन के लिए भी ठोस रणनीति तैयार की जाए, जिससे ये केंद्र आर्थिक रूप से सक्षम हो सकें। सीएम ने यह भी स्पष्ट किया कि प्राकृतिक पेंट प्लांट्स की संख्या राज्य में बढ़ाई जाए, ताकि ग्रामीण स्तर पर उत्पादन से लेकर विपणन तक का एक स्वावलंबी मॉडल तैयार हो सके। यह कदम न केवल पर्यावरण के लिए लाभदायक होगा, बल्कि गौवंश आधारित अर्थव्यवस्था को भी नया जीवन देगा।

फिलहाल प्रदेश के 7,693 गो-आश्रय स्थलों में करीब 11.49 लाख गोवंश संरक्षित हैं, जिनकी निगरानी अब CCTV कैमरों से की जा रही है। मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया है कि इन स्थलों पर केयरटेकर की समय पर नियुक्ति, उनका वेतन, भूसा बैंक की स्थापना, हरे चारे की उपलब्धता और पशु चिकित्सा सेवाओं की सुविधा हर हाल में सुनिश्चित की जाए। सबसे मानवीय और दूरगामी निर्णय यह रहा कि जिन गरीब परिवारों के पास पशुधन नहीं है, उन्हें ‘मुख्यमंत्री निराश्रित गोवंश सहभागिता योजना’ के तहत गायें प्रदान की जाएंगी। इससे न केवल इन परिवारों को पोषण का बेहतर साधन मिलेगा, बल्कि उन्हें दूध से आय का भी जरिया मिलेगा यानी गोसेवा से सीधे रोज़गार और आत्मनिर्भरता की ओर कदम।

गौधन से समृद्धि तक

गांवों में तो सदियों से गोबर का उपयोग घर की दीवारों और ज़मीन को लीपने के लिए होता रहा है, लेकिन अब उसी गोबर से आत्मनिर्भर भारत की दीवारें रंगने लगी हैं। गायों के गोबर से बना यह पेंट न केवल स्वदेशी है, बल्कि पूरी तरह से पर्यावरण के अनुकूल और रासायनिक पेंट्स का वैकल्पिक समाधान भी है। पारंपरिक केमिकल पेंट्स जहां जहरीले होते हैं और उनमें तेज़ गंध होती है, वहीं यह गोबर पेंट नॉन-टॉक्सिक है, इसमें किसी तरह की बदबू नहीं है और यह पूरी तरह से एंटी-फंगल व एंटी-बैक्टीरियल गुणों से भरपूर है।

यही नहीं, इसे घर के अंदर और बाहर दोनों जगह लगाया जा सकता है। डिस्टेंपर और एमल्शन पेंट की तुलना में यह पेंट दीवारों को न केवल ठंडा रखता है, बल्कि गर्मियों में घर के तापमान को भी संतुलित करता है। खास बात ये है कि इसमें न तो सीसा है, न आर्सेनिक, क्रोमियम या कैडमियम जैसी कोई ज़हरीली धातु यानी यह पेंट बच्चों, बुज़ुर्गों और पर्यावरण, सभी के लिए पूरी तरह सुरक्षित है। कीमत की बात करें तो यह स्वदेशी पेंट बाज़ार में बिकने वाले रासायनिक पेंट्स के मुकाबले करीब आधे दाम पर उपलब्ध है। यही वजह है कि इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है और लोग इसे केवल उत्पाद नहीं, बल्कि सनातनी जीवनशैली से जुड़ा गौरव मानकर अपना रहे हैं।

 

 

Exit mobile version