2.5 से 3:0 हुआ ‘एंटी इंडिया’ मोर्चा! ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बाद सच हो रही जनरल बिपिन रावत की बात

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान जनरल बिपिन रावत के कहे ढ़ाई मोर्चे की खूब चर्चा हुई। हालांकि, अब ये पूरे तीन मोर्चे में बदल गया है। इससे देश को सावधान रहने की जरूरत है?

Operation Sindoor General Bipin Rawat

General Bipin Rawat

पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने ऑपरेशन सिंदूर के जरिए पाकिस्तान को घुटनों पर ला दिया। इस अभियान में कई आतंकी ठिकानों को नष्ट करने के साथ ही पाक सेना को उसकी औकात दिखाई गई। इस दौरान करीब पूरा देश सेना और सरकार के साथ खड़ा रहा। हम यहां करीब इसलिए कह रहे हैं क्योंकि, देश में आधा धड़ा हमेशा से भारत विरोधी रहा है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद ये आधा धड़ा पूरा होता नजर आया है। ऐसे में देश के पहले CDS जनरल बिपिन रावत की वो बात याद आती है जिसमें उन्होंने कहा था कि देश को दो नहीं ढाई मोर्चे की जंग के तैयार है। अब ये ढाई मोर्चा पूरा तीन होता  नजर आ रहा है।

साल 2017 में आर्मी चीफ रहे जनरल बिपिन रावत 1 जनवरी 2020 को देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ यानी CDS नियुक्त किए गए। आर्मी चीफ रहते हुए उन्होंने कहा था कि हम ढाई मोर्चे पर जंग के लिए तैयार है। उस दौरान भी उनके इस बयान की काफी चर्चा हुई थी। उन्होंने ढाई मोर्चे की बात कहकर पाकिस्तान, चीन के साथ आंतरिक संघर्ष की चुनौतियों की ओर इशारा किया था। उनके इस दावे के करीब 8 साल बाद जब भारत ने ऑपरेशन सिंदूर चलाया तो ये ढाई मोर्चा, तीन मोर्चे में बदलता नजर आ रहा है।

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तीसरे मोर्चे में कौन-कौन शामिल है?

तीसरा मोर्चा केवल अलगाववादियों, माओवादियों, खालिस्तानियों, जिहादियों और पाकिस्तान-चीन परस्त तत्वों तक ही सीमित नहीं है। इसकी जड़ें कहीं अधिक गहरी हैं। इसमें राजनीति, सिविल सोसायटी, अकादमिक जगत, बौद्धिक समुदाय, मीडिया में सक्रिय लोग भी शामिल हैं। इनकी पहुंचे भारत और विदेशों में भी शासन-प्रशासन से लेकर न्यायालय तक है। इस मोर्चे में वे भारतीय भी शामिल हैं जो विदेश में बस गए हैं या फिर जो देश में रहकर ही अमेरिका, चीन या पाकिस्तान के एजेंडे की पैरवी करते हैं।

ऑपरेशन सिंदूर के दौरान इनको काफी हद तक नियंत्रित किया गया था। हालांकि, इसके बाद भी वो कुछ हद तक अपने एजेंडे को आगे ले जाने में कामयाब रहे। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान माओवादियों के खिलाफ अभियान जारी रहा, जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की धरपकड़ हुई, बांग्लादेशी घुसपैठियों को पकड़ा गया और पाकिस्तान के लिए काम करने वाले की गिरफ्तारियां भी हुईं। ऐसे लोगों की संख्या  इतनी ज्यादा और गिनती कठिन है कि इन तक पहुंच भी मुश्किल हो जाती है।

आधा मोर्चा काम में लगा रहा

पहलगाम की आतंकी घटना के बाद भी देश में सांप्रदायिक तनाव नहीं आया। कश्मीरी मुसलमान भी आतंक के खिलाफ खड़े हुए। इस दौरान ऑपरेशन सिंदूर से परास्त हुई पाकिस्तान सरकार, सेना और वहां के मीडिया ने झूठ फैलाने का काम किया। उन्होंने कश्मीरी मुसलमानों और सिखों को भड़काने की पूरी कोशिश की। हालांकि, इसके बाद भी वो विफल रहे। भारत ने फर्जी और झूठी खबरों के खिलाफ तो अच्छी लड़ाई लड़ी। हालांकि, विदेशी मीडिया के झूठे नैरेटिव का सामना करने में हम अभी भी उतने सक्षम नहीं हो पाए हैं।

काम कैसे करता है एंटी इंडिया तीसरा मोर्चा?

ऑपरेशन सिंदूर के बाद ये बात सामने आई की जंग हथियारों के साथ सूचनाओं से भी लड़ा जाता है। विदेश मीडिया संस्थान लगातार भारत विरोधी एजेंडे के साथ आगे बढ़ते रहे हैं। इन्होंने लगातार भारत के खिलाफ माहौल बनाने का काम किया है। ऑपरेशन सिंदूर के बाद भी ये पाकिस्तान परस्ती में लगातार ऐसा ही कर रहे हैं।

पश्चिमी मीडिया यह बताने की कोशिश की कि पाकिस्तानी सेना भारत पर भारी पड़ी है। इससे उलट वास्तविकता यह थी कि वे अपने एयरबेस भी नहीं बचा पाए। बाद में न्यूयॉर्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट को तबाह हुए पाकिस्तानी एयरबेस की सैटेलाइट इमेज देखकर यह स्वीकार करना पड़ा कि भारतीय सेना ने पाकिस्तान को पस्त कर दिया था। इसके बाद भी कई पश्चिमी मीडिया बिना किसी प्रमाण के यह ढोल पीटते रहे कि भारत ने अपने विमान गंवा दिए हैं।

मनोवैज्ञानिक युद्ध करते हैं ये लोग

ऑब्जर्वर रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर फेलो सुशांत सरीन लिखते हैं कि जब किसी विदेशी मीडिया में भारत के संबंध में खबर लिखी जाती है तो हम उसे पढ़कर निकाल देते हैं। हमारे मन में ख्याल आता है कि कुछ तो सही होगा। हालांकि, हम उस खबर-लेख लिखने वाले की पड़ताल नहीं करते है। इन खबरों के जरिए हमारा मनोबल तोड़ने का काम किया जाता है। यह एक तरीके का मनोवैज्ञानिक युद्ध है। हमें यह मानना होगा कि इसका सामना करने में हम अभी पूरी तरह सक्षम नहीं हो सके हैं।

पश्चिमी मीडिया का सर्कुलर गेम

ऑपरेशन सिंदूर के समय पश्चिमी मीडिया में भारत विरोधी खबरें और लेख लिखने वाले पाकिस्तानी ही थे। कुछ अमेरिकी, यूरोपियन और भारतीय मूल के लोग भी ऐसी खबरें लिखते हैं। इनके लिखे की फैक्ट-चेकिंग तो दूर पुष्टि भी नहीं की गई। नतीजा यह हुआ कि स्काई न्यूज पीटीवी के हवाले से और पीटीवी स्काई न्यूज के जरिए यह बता रहा था कि भारत के दो विमान मार गिराए गए। पश्चिमी मीडिया ने यह सर्कुलर गेम खूब खेला।

भारत विरोधी और वामपंथी एजेंडे वाले ‘द इकोनॉमिस्ट’ का डिफेंस एडिटर एक भारतीय है। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान ये भारत को कमतर बताने में अपनी पूरी ऊर्जा लगाता रहा। देश-विदेश में ऐसे ‘ब्राउन सिपाहियों’ की कमी नहीं है। इनको भारत का कुछ भी पसंद नहीं आता है। इसके पीछे वैचारिक कट्टरता, सनक भरा उदारवाद, भारत के प्रति दुराग्रह और व्यावसायिक हित शामिल हैं। पश्चिमी मीडिया चीनी सरकार के विज्ञापन बिना किसी संकोच के छापते हैं। जाहिर है ये भारत के हित की कैसे लिखेंगे।

देश के भीतर तीसरे मोर्चे का काम

भारत विरोधी मोर्चे का हिस्सा बना विदेशी मीडिया यह बताने को भी उतावला रहता है कि प्रधानमंत्री मोदी के बनने के बाद भारत में मुसलमानों पर आफत टूट पड़ी है। क्या वाकई? क्या वे भारत से भाग रहे हैं? दूसरी ओर बांग्लादेशी-रोहिंग्या घुसपैठिए लगातार भारत में घुस रहे हैं। बड़े-बड़े वकील उन्हें देश में बसाने देने के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजे में पहुंच गए हैं। इसमें भारत के भी कुछ मीडिया संस्थान है जो एंटी इंडिया लिखने के आदी है। विषय कोई भी हो उनका फार्मूला तय होता है उनको सरकार और बड़ी आबादी के खिलाफ ही लिखना है। मुद्दों को ऐसे मोल्ड करना है कि इससे तनाव पैदा हो जाए।

एक्शन, सतर्कता और सावधान जरूरी

सुशांत सरीन लिखते हैं कि कहते हैं कि इससे इनकार नहीं कि बड़ी आबादी वाले भारत में हिंदू-मुस्लिम के बीच दुश्मनी, तनाव और हिंसा की घटनाएं होती रहती हैं। कभी मुस्लिमों के साथ कुछ हिंदू गलत करते हैं और कभी कुछ मुस्लिम हिंदुओं के साथ गलत कर जाते हैं। सवाल ये है कि क्या ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, अमेरिका आदि मुस्लिम-ईसाई भाईचारे के तराने गाते रहते हैं? क्या वहां लोग ‘नो गो जोन’ से तंग नहीं हैं? इसके बाद भारत के कुछ संस्थान, लोग विदेशी मीडिया के राग को लिखते-पढ़ते और फैलाते हैं। ऐसे में इनपर एक्शन के साथ इनसे सावधान रहने की भी जरूरत है।

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