भारत ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) के उस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई है, जिसमें पाकिस्तान को भारी भरकम आर्थिक मदद दी गई है और वह भी ऐसे समय में जब भारत खुद पाकिस्तान की जमीन और पीओके में सक्रिय आतंकवादी ठिकानों को “ऑपरेशन सिंदूर” के तहत निशाना बना चुका है। बावजूद इसके, IMF ने अपने रुख में कोई बदलाव नहीं किया और सफाई दी कि पाकिस्तान ने सभी जरूरी आर्थिक शर्तें पूरी कर दी हैं, इसलिए उसे कर्ज की अगली किस्त जारी की गई है।
IMF की इस कथित “वित्तीय तटस्थता” के तहत पाकिस्तान को लगभग 8,000 करोड़ रुपये, यानी 1 अरब डॉलर की मदद मंज़ूर की गई है। इस मदद पर कड़ी आपत्ति जताते हुए था भारत ने आईएमएफ से कहा था कि वह यह मदद दोबारा सोचकर दे, क्योंकि पाकिस्तान अपनी जमीन से भारत पर आतंकी हमलों को बढ़ावा देता है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कहा था कि पाकिस्तान को दी गई मदद एक तरह से आतंक को अप्रत्यक्ष आर्थिक सहायता देना है।
लोन देने पर 2024 में हुआ था समझौता
पाकिस्तान को लेकर अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की उदारता किसी एक किस्त तक सीमित नहीं रही है। ‘एक्सटेंडेड फंड फैसिलिटी (EFF)’ के तहत पाकिस्तान को पहले ही दो हिस्सों में कुल 2.1 अरब डॉलर की सहायता दी जा चुकी है। यह पूरा कार्यक्रम कुल 7 अरब डॉलर का है, जिस पर 2024 में सहमति बनी थी। इस योजना के तहत अब IMF ने एक और किस्त को मंज़ूरी दी है उस वक्त जब भारत ने खुलेआम पाकिस्तान की ज़मीन से संचालित आतंकवादी गतिविधियों पर हमला किया है और दुनिया को चेता दिया है।
IMF की संचार निदेशक जूली कोजैक ने इस ताज़ा मदद का बचाव करते हुए कहा कि पाकिस्तान ने अपने आर्थिक कार्यक्रम की सभी शर्तें पूरी की हैं और कुछ सुधारों में प्रगति भी दिखाई है। इसी आधार पर 9 मई को IMF बोर्ड ने समीक्षा के बाद अगली किश्त को हरी झंडी दे दी। कोजैक ने भारत और पाकिस्तान के बीच हालिया तनाव और हिंसा पर ‘दुख’ जताते हुए उम्मीद जताई कि दोनों देश इसका शांतिपूर्ण समाधान खोजेंगे लेकिन उनके इस बयान में उस ठोस नैतिक रुख की कमी साफ दिखी, जिसकी दुनिया इस वक्त अपेक्षा कर रही थी।
उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह IMF की सामान्य प्रक्रिया है कि वह समय-समय पर अपने कर्ज़ कार्यक्रमों की समीक्षा करता है। इस समीक्षा में यह जांचा जाता है कि संबंधित देश ने तय शर्तों का पालन किया है या नहीं, और क्या कार्यक्रम सही दिशा में जा रहा है। पाकिस्तान के केस में, IMF बोर्ड का मत था कि सुधारों में प्रगति हुई है, इसलिए सहायता जारी रखी गई। लेकिन यही वह बिंदु है जहां सवाल खड़े होते हैं। क्या आतंकवाद के गढ़ में आर्थिक सुधार केवल आंकड़ों से मापे जाएंगे? क्या IMF जैसे संस्थान सिर्फ टैक्स, ब्याज दर और बजट घाटे की गणना करेंगे, लेकिन आतंकी पनाहगाहों, घुसपैठ, और क्षेत्रीय अस्थिरता जैसे पहलुओं को नजरअंदाज़ करेंगे? जूली कोजैक ने यह भी जोड़ा कि अगर पाकिस्तान भविष्य में शर्तों से भटकता है, तो अगली किश्तें रोकी जा सकती हैं। लेकिन सवाल ये है कि तब तक क्या वो धनराशि उन नेटवर्क्स तक नहीं पहुंच चुकी होगी, जिनसे भारत और इस क्षेत्र की शांति को खतरा है?