जयंती विशेष: अखंड भारत के अप्रतिम राष्ट्रभक्त – अब्दुल हमीद कैसर ‘लखपति’

अब्दुल हमीद कैसर

अब्दुल हमीद कैसर (Image Source: Google)

आज अब्दुल हमीद कैसर की जन्म जयंती है, और हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके योगदान को पुनः स्मरण करते हैं। वह महान राष्ट्रभक्त थे जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी अखंड भारत के सपने को साकार करने के लिए समर्पित कर दी। लेकिन अफसोस की बात है कि उन जैसे वीर स्वतंत्रता सेनानियों को इतिहास में वह सम्मान और स्थान नहीं मिला, जिसके वे पूरी तरह से हकदार थे। आइए, आज उनकी जयंती पर हम आपको अब्दुल हमीद कैसर से परिचित कराते हैं, एक ऐसे वीर राष्ट्रभक्त से, जिनका नाम इतिहास के पन्नों में दबा रह गया, लेकिन उनकी संघर्षों की गूंज देश की स्वतंत्रता के संघर्ष में कभी भी फीकी नहीं पड़ी।

अब्दुल हमीद कैसर का जन्म और प्रारंभिक जीवन 

अब्दुल हमीद कैसर का जन्म 5 मई 1929 को राजस्थान के झालावाड़ जिले के बकानी कस्बे में हुआ था। उनके पिता कोटा रियासत में तहसीलदार थे। एक लाख रुपये की लाटरी जीतने के बाद वे ‘लखपति’ के नाम से प्रसिद्ध हुए, लेकिन यह प्रसिद्धि जीवन के कठिन समय में बदल गई। 3 साल की उम्र में उनके पिता का निधन हुआ, और उनके रिश्तेदारों ने उनकी संपत्ति पर कब्जा कर लिया, जिसके बाद वे बूंदी आकर बस गए।

उन्होंने कोटा के हितकारी विद्यालय से शिक्षा प्राप्त की, जहां उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और प्रजामंडल के नेता श्री शम्भूदयाल सक्सेना से प्रेरणा ली। 1942 में जब ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ की लहर उठी, तो अब्दुल हमीद कैसर और उनके मित्र रामचंद्र सक्सेना ने इस आंदोलन को समर्थन दिया और सक्रिय रूप से भाग लिया।

स्वतंत्रता संग्राम में भागीदारी 

अंग्रेजों ने जब कांग्रेस के नेताओं को गिरफ्तार किया, तब प्रजामंडल के कार्यकर्ताओं और छात्रों ने कोटा में हड़ताल कर दी। 13 अगस्त को कोटा रियासत ने प्रजामंडल के नेताओं को गिरफ्तार कर लिया, और इसका विरोध करने के लिए जनसमूह ने कोतवाली का घेराव कर दिया। इस दौरान घुड़सवार पुलिस ने लाठियां चलाईं, और इस संघर्ष में अब्दुल हमीद कैसर के सिर भी फट गए। इसके बावजूद आंदोलनकारी अपना संघर्ष जारी रखते हुए, 20 अगस्त को नेताओं की रिहाई तक कोतवाली का घेराव करते रहे।

कैसर ने अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद अलीगढ़ में पढ़ाई की, लेकिन उनके विरोधी कभी भी उन्हें अपना आदर्श नहीं मान सके। 1946 में, उन्होंने भारतप्रेमी नगरपालिका अध्यक्ष श्री रफीक अहमद किदवई की जान बचाई, जब उन पर हमला किया गया था। इसके बाद उन्होंने बूंदी में वकालत शुरू की और सामाजिक न्याय के लिए काम किया। श्री कैसर ने 1961 में यह वचन लिया था कि वे निर्धनों और वनवासियों के मुकदमे निःशुल्क लड़ेंगे, और उन्होंने इसे जीवनभर निभाया। उनका संघर्ष हमेशा राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए था, लेकिन वे कभी राजनीति में सक्रिय नहीं रहे, क्योंकि उन्हें देश के लिए काम करने का तरीका कहीं और दिखता था।

निधन और विरासत 

अब्दुल हमीद कैसर का निधन 18 जुलाई 1998 को हुआ। उनकी तपस्या, उनके संघर्ष, और उनका समर्पण हमेशा याद रखा जाएगा। वे कभी भी मुख्यधारा में नहीं आए, लेकिन उनका काम और उनके विचार आज भी हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। वे राष्ट्रभक्ति और समाजसेवा के वास्तविक नायक थे, जिनकी कहानी को भारतीय समाज को कभी नहीं भूलना चाहिए। आज उनकी जयंती पर हम उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और उनके योगदान को याद करते हैं, ताकि आने वाली पीढ़ियां उनके संघर्ष और उनके जीवन से प्रेरणा ले सकें।

Exit mobile version