ऑपरेशन सिंदूर की बड़ी सफलता: इंडियन आर्मी ने मसूद अजहर के भाई और IC-814 हाईजैकर अब्दुल रऊफ को भेजा जहन्नुम

जानें IC-814 हाईजैक की कहानी

Abdul Rauf Azhar

Abdul Rauf Azhar

पहलगाम के अमरनाथ यात्रियों पर हुए कायराना आतंकी हमले के बाद भारत ने जिस “ऑपरेशन सिंदूर” की शुरुआत की थी, अब उसमें सबसे बड़ी कामयाबी सामने आई है। भारतीय सेना और खुफिया एजेंसियों की इस सटीक कार्रवाई में जैश-ए-मोहम्मद का टॉप कमांडर और खूंखार आतंकी अब्दुल रऊफ अजहर मारा गया है वही रऊफ, जो साल 1999 के कंधार विमान अपहरण (IC-814 Hijack) की साजिश का मास्टरमाइंड था।

ये वही नाम है, जिसकी साजिश ने उस वक्त पूरे देश को झकझोर कर रख दिया था। रऊफ न केवल आतंकी मसूद अजहर का सगा भाई था, बल्कि उसी की रिहाई के लिए उसने भारतीय यात्रियों की जान को बंधक बनाकर पूरी राष्ट्र की आत्मा को बंधक बना लिया था। आज, भारत ने उस अधूरे अध्याय का अंत किया है। ‘ऑपरेशन सिंदूर’ सिर्फ एक जवाबी हमला नहीं ये भारत की उस नीति की घोषणा है, जिसमें अब शब्दों से नहीं, सीधी कार्रवाई से हिसाब चुकता किया जाता है। आइए, जानते हैं कि क्या थी वो कंधार हाईजैक की कहानी, जिसने 1999 की सर्दी में पूरे हिंदुस्तान का खून जमा दिया था…

कंधार हाईजैक की कहानी

24 दिसंबर 1999 की शाम, जब पूरा देश क्रिसमस की पूर्व संध्या पर खुशियाँ मना रहा था, तभी एक खबर ने पूरे भारत को सन्न कर दिया। काठमांडू से दिल्ली आ रही इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट IC-814 को पाँच आतंकियों ने हाईजैक कर लिया। विमान भारतीय सीमा में दाखिल हो चुका था और 16:53 बजे के आसपास इसे कब्जे में ले लिया गया। कुछ ही पलों में देश की सामान्य शाम, डर और बेचैनी में बदल गई।

प्लेन को पहले लाहौर ले जाने की कोशिश हुई, लेकिन पाकिस्तान ने लैंडिंग की इजाज़त नहीं दी। ईंधन की कमी की वजह से प्लेन को अमृतसर में ज़बरदस्ती उतारा गया। वहां पर भारतीय सुरक्षा एजेंसियों के पास वक्त था, मौका था, लेकिन केंद्रीय स्तर पर समन्वय की कमी के चलते NSG कमांडो समय से नहीं पहुँच सके और पंजाब पुलिस के विशेष दस्ते को कार्रवाई की अनुमति नहीं मिली। यह चूक भारत की रणनीतिक असहायता का प्रतीक बन गई।

55 मिनट तक विमान अमृतसर में खड़ा रहा, लेकिन फिर आतंकियों ने पायलट को धमकाकर प्लेन को दुबई की ओर उड़वा लिया। दुबई में 27 यात्रियों को रिहा किया गया और एक मृत यात्री, रूपिन कटियाल का शव उतारा गया, जिसे आतंकी ज़हूर मिस्त्री ने निर्ममता से मार डाला था।

वहीं से फ्लाइट को कंधार ले जाया गया उस वक्त तालिबान शासित अफगानिस्तान में, जिसकी सरकार को भारत मान्यता तक नहीं देता था। अब भारत के पास कोई सीधा संपर्क नहीं था, लेकिन फिर भी मजबूरी में सरकार को तालिबान से संवाद करना पड़ा। छह दिनों तक यात्री बंदूक की नोक पर बंधक बने रहे। इस बीच यात्रियों के परिवार दिल्ली की सड़कों पर उतर आए, टीवी चैनलों ने उनके आँसुओं को हर घर तक पहुंचाया, और सरकार पर दबाव दिन-ब-दिन बढ़ता गया।

आतंकियों ने 36 आतंकवादियों की रिहाई और 20 मिलियन डॉलर की फिरौती की मांग रखी। हालांकि आखिरकार बातचीत में तीन खूंखार आतंकियों मसूद अजहर, अहमद उमर सईद शेख और मुश्ताक अहमद ज़रगर को रिहा किया गया। इन्हीं में से मसूद अजहर बाद में पुलवामा हमले का मास्टरमाइंड बना, और उमर शेख ने अमेरिकी पत्रकार डैनियल पर्ल का सिर कलम कर दुनिया को दहला दिया। कंधार हाईजैक भारत के लिए एक ऐसा जख्म बन गया, जो वर्षों तक नासूर बना रहा। लेकिन ऑपरेशन सिंदूर में अब्दुल रऊफ अजहर की मौत ने उस पुराने ज़ख्म पर निर्णायक प्रहार किया है।

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