22 अप्रैल को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने एक बार फिर पूरे देश को झकझोर दिया। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, हमले के पीछे पाकिस्तान की भूमिका के संकेत सामने आने लगे, और भारत-पाकिस्तान के बीच का तनाव एक बार फिर चरम पर पहुँच गया है। एक तरफ सीमा पार से लगातार एलओसी पर उकसावे वाली हरकतें हो रही हैं, वहीं पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख और नेता भड़काऊ बयान देने से भी बाज़ नहीं आ रहे। वहीं भारत की और से भी सीमाओं से लेकर कूटनीतिक गलियारों तक पाकिस्तान को घेरने की डिप्लोमैटिक आक्रामकता सक्रिय हो चुकी है। सिर्फ सीमाओं पर ही नहीं, देश के भीतर भी सरकार ने संभावित युद्ध या आपदा की स्थिति को देखते हुए तैयारी तेज़ कर दी है। इसी क्रम में केंद्र सरकार ने 7 मई को देश के 244 जिलों में एक साथ सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल कराने का आदेश दिया है।
इस अभ्यास का मकसद है आम नागरिकों को सिखाना कि किसी हमले या युद्ध की स्थिति में खुद को और अपने परिवार को कैसे सुरक्षित रखा जाए। यह एक ऐसा कदम है जो न सिर्फ तैयारियों को परखने वाला है, बल्कि देश को मानसिक रूप से भी सतर्क रहने का संदेश देता है। तो आज के इस लेख में हम आपको सरल भाषा में बताने जा रह हैं कि यह सिविल मॉक ड्रिल क्या होती है, इसका महत्व क्या है और इससे पहले भारत में कब-कब ऐसा अभ्यास किया गया है…
क्या होती है सिविल डिफेन्स मॉक ड्रिल
सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल सिर्फ एक औपचारिक अभ्यास नहीं, बल्कि ज़िंदगी बचाने की तैयारी है। यह हमें सिखाती है कि जब हालात बिगड़ते हैं चाहे वो जंग हो, आतंकी हमला हो या कोई प्राकृतिक आपदा तब घबराने की बजाय समझदारी और अनुशासन से कैसे हालात पर काबू पाया जा सकता है। यह ड्रिल एक आम नागरिक को सिर्फ दर्शक नहीं, बल्कि एक सक्रिय सहयोगी बनने की ताक़त देती है, जो मुश्किल घड़ी में खुद को और दूसरों को सुरक्षित रखने का हुनर जानता है।
इस अभ्यास के दौरान पांच अहम चीज़ों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा:
- हवाई हमले की चेतावनी देने वाला सायरन बजाया जाएगा – ताकि लोग पहचान सकें कि संकट का संकेत कैसा होता है और तुरंत सतर्क हो जाएं। यह एक मानसिक अभ्यास है जो हर नागरिक को संकट की पहली आहट से सजग बनाता है।
- हमले की स्थिति में अपनी सुरक्षा कैसे करें, इसकी ट्रेनिंग दी जाएगी – आम लोग कैसे जल्दी सोचें, कहां छिपें, किस तरह दूसरों की मदद करें—ये सब छोटे-छोटे अभ्यासों के ज़रिए समझाया जाएगा। यह ट्रेनिंग हर उम्र के व्यक्ति के लिए अहम है।
- पूरा इलाका कुछ समय के लिए ब्लैकआउट में रहेगा – यानी बिजली बंद कर दी जाएगी ताकि लोग अंधेरे और सीमित संसाधनों के बीच खुद को संभालना सीखें। ऐसी परिस्थितियों में संयम और दिशा-निर्देशों का पालन करना ही असली बहादुरी होती है।
- ज़रूरी संस्थानों और ठिकानों को हमले से कैसे बचाया जाए, इसका अभ्यास होगा – स्कूल, हॉस्पिटल, सरकारी दफ्तर जैसे स्थानों की सुरक्षा के लिए एक रणनीति बनाई जाएगी ताकि कोई संकट आने पर इन जगहों को निशाना न बनाया जा सके।
- लोगों को सुरक्षित स्थानों तक पहुँचाने का अभ्यास कराया जाएगा – यानी अगर किसी इलाके को खाली कराना पड़े, तो भीड़भाड़ के बीच कैसे शांति और अनुशासन बनाए रखा जाए, यह सिखाया जाएगा।
देश में आखिरी बार कब हुई थी मॉक ड्रिल
आज जब देश एक बार फिर सुरक्षा की कसौटी पर है, और सीमाओं पर तनाव चरम पर है, तो यह जानना बेहद जरूरी हो जाता है कि आखिरी बार इस तरह का राष्ट्रव्यापी नागरिक सुरक्षा अभ्यास कब और क्यों हुआ था। भारत में इससे पहले सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल का सबसे बड़ा और संगठित आयोजन 54 साल पहले 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान किया गया था।
उस समय, दोनों देशों के बीच हालात लगातार बिगड़ते जा रहे थे। युद्ध भले ही आधिकारिक रूप से 3 दिसंबर 1971 को शुरू हुआ हो और 16 दिसंबर को पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल ए.ए.के. नियाज़ी द्वारा ढाका में भारतीय सेना के समक्ष आत्मसमर्पण के साथ समाप्त हुआ हो, लेकिन युद्ध जैसे हालात कई महीनों पहले से ही बन चुके थे।
मीडिया रिपोर्ट्स बताती हैं कि युद्ध शुरू होने से कुछ दिन पहले ही देशभर में सिविल डिफेंस मॉक ड्रिल्स शुरू कर दी गई थीं, जो युद्ध समाप्त होने तक लगातार जारी रहीं। इन ड्रिल्स का मुख्य उद्देश्य आम जनता को युद्धकालीन परिस्थितियों के प्रति मानसिक रूप से तैयार करना और उन्हें आपात स्थिति में कैसे सुरक्षित रहना है, इसकी ट्रेनिंग देना था।
इन अभ्यासों के दौरान ब्लैकआउट, सायरन, सुरक्षित स्थानों की पहचान और नागरिकों को सुरक्षित निकालने की रिहर्सल जैसी कई गतिविधियाँ की गईं। यह केवल एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं थी बल्कि यह एक राष्ट्रीय प्रयास था, जिसमें हर नागरिक को यह समझाया गया कि आपदा या युद्ध की स्थिति में वह खुद भी एक ‘सुरक्षा योद्धा’ की भूमिका निभा सकता है। 1971 की वह मॉक ड्रिल, केवल एक सैन्य प्रतिक्रिया नहीं बल्कि एक सामाजिक चेतना का परिचायक थी जिसमें पूरा देश एकजुट होकर खड़ा हुआ। आज जब फिर से तनाव के बादल मंडरा रहे हैं, ऐसे अभ्यास फिर से उतने ही प्रासंगिक और जरूरी हो गए हैं।